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केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली तथा राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति के द्वारा संयुक्त तत्त्वावधान में नई दिल्ली स्थित प्रज्ञान भवन में उत्कर्ष महोत्सव हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। ये तीनों विश्वविद्यालय निरन्तर संस्कृत की सेवा करने में सदैव तत्पर रहे हैं, इन विश्वविद्यालयों से अध्ययन कर हजारों छात्रों ने देश के प्रतिष्ठित पदों को अलंकृत किया है। भारत सरकार द्वारा 30 अप्रैल 2020 को तीनों मानित विश्वविद्यालयों को केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में घोषित किया गया।
उत्कर्ष महोत्सव में मुख्यातिथि के रूप में पधारे भारत सरकार के वस्त्र मन्त्रालय के केन्द्रीय मन्त्री श्री गिरिराज सिंह जी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत की पहचान संस्कृत भाषा, प्रकृष्ट संस्कृति एवं विशिष्ट वेशभूषा से है। भारत धर्म की भूमि है, भारत के लोग भावनाओं को प्रधानता देने वाले हैं, ऐसे में भारत भूमि पर माननीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा इन तीन संस्कृत विश्वविद्यालयों को केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया जाना, भारत की संस्कृति, परम्परा एवं सभ्यता के सर्वतोमुखी विकास का संकल्प है। हम भारत को भारत के रूप में जानें, यही हमारे लिए गौरव की बात है। हम संस्कृत हैं, हम संस्कृत ही बने रहें और संस्कृत को अपने जीवन में अपनायें तभी हमारा देश विकसित भारत के रूप में प्रतिष्ठित हो सकता है।
भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मन्त्रालय के दन्तोपन्त ठेंगड़ी राष्ट्रीय श्रमिक शिक्षा एवं विकास परिषद् के अध्यक्ष श्री विरजेश उपाध्याय जी ने कहा कि यदि कोई भारत को जानना चाहता है, तो उसे सबसे पहले संस्कृत को जानना जरूरी है। संस्कृत केवल भाषा नहीं, अपितु भारतीयता की पहचान है। इसके विना हमारा ज्ञान, हमारा विज्ञान, हमारी परम्परा, हमारी संस्कृति अपूर्ण है। श्रमिक शिक्षा के अन्तर्गत शुक्रनीति, अर्थशास्त्र, मिताक्षरा आदि संस्कृत ग्रन्थों का अध्ययन कराना चाहिए जिससे सभी को कर्त्तव्यादि का सूक्ष्म रूप से चिन्तन करने का अवसर मिल सके। संस्कृत ही है, जिसने भारत को भारत बनाने में प्रमुख भूमिका निभायी है। हमें समाज को संस्कृत से जोड़कर भारतीय विचारधारा को निरन्तर प्रवाहित करना है। हमारे युवावर्ग विकृत विचारों से प्रभावित न हों, इसलिए उन्हें संस्कृत पढ़ाना बहुत जरूरी है। देश के जनसामान्य के साथ संस्कृत को जोड़ना अत्यन्त जरूरी है।
इस अवसर पर सारस्वत अतिथि के रूप में उपस्थित पद्मश्री चमूकृष्ण शास्त्री जी ने संस्कृत की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि संस्कृत, भाषा के साथ-साथ एक बृहद् वाङ्मय को अपने में समाहित किये हुए है। हमें निरन्तर संस्कृत की सेवा करनी चाहिए, संस्कृत में व्यवहार करना चाहिए।
उत्कर्ष महोत्सव में संस्कृत सेवा में निरन्तर संलग्न विद्वानों आचार्य बनारसी त्रिपाठी, आचार्य देवेन्द्र मिश्र, आचार्य सुमेधा, आचार्या इन्दुमती कटदरे, प्रो. डी. के. हरि, प्रो. डी. के. हेमा हरि, आचार्य सूर्यनारायण भट्ट एवं आचार्य के. हयग्रीव शर्मा को ‘प्राच्यविद्याभूषण’ उपाधि से सम्मानित किया गया। इसी के साथ श्री नीलेश बोडास एवं व्योमा लिंग्विस्टिक लैब्स फाउंडेशन को ‘संस्कृतसेवाव्रती’ सम्मान से विभूषित किया गया।
इस अवसर पर श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कई ग्रन्थों का लोकार्पण किया गया, जिसमें शोधप्रकाशन विभाग की शोधपत्रिका शोधप्रभा, विश्वविद्यालयवार्ता तथा डॉ. विजय गुप्ता द्वारा सम्पादित ‘भारतीयदर्शनेषु वादविमर्शः’ नामक ग्रन्थ सहित अन्य प्रकाशित ग्रन्थों विमोचन किया गया। साथ ही केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली एवं राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति से प्रकाशित शोधपत्रिकाओं एवं ग्रन्थों का भी लोकार्पण किया।
उत्कर्ष महोत्सव में श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो. मुरलीमनोहर पाठक एवं केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी तथा राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति के कुलपति प्रो. जी.एस.आर. कृष्णमूर्ति तीनों विश्वविद्यालयों ने अपने-अपने विश्वविद्यालय की सम्पूर्ण गतिविधियों को विस्तारपूर्वक बताया।
इस अवसर पर सभागार में विभिन्न विश्वविद्यालयों के विभिन्न अधिकारी, पीठप्रमुख, विभागाध्यक्षों सहित आचार्य, सहा आचार्य, सहायक आचार्य एवं 1000 से अधिक की संख्या में छात्र उपस्थित हुए। कार्यक्रम समन्वयक प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी द्वारा अभ्यागतों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रो. भागीरथि नन्द ने किया।
इसके पश्चात् आयोजित द्वितीय सत्र में विकसितभारतस्य कृते भारतीयभाषाः विषय पर संवाद संगोष्ठी अयोजित की गयी, जिसमें देश के प्रसिद्ध विद्वानों प्रसार भारती के पूर्व मुख्यकार्याधिकारी श्री शशिशेखर वेम्पटि एवं आईजीएनसीए के सदस्य सचिव प्रो. सच्चिदानन्द जोशी ने व्याख्यान दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष पद्मश्री चमूकृष्ण शास्त्री ने किया। संयोजन श्री गिरिधर राव द्वारा किया गया।
तृतीय सत्र में विकसितभारतस्य कृते भारतीयज्ञानपरम्परा शोधश्च विषय पर आयोजित संवाद संगोष्ठी में शिक्षा मन्त्रालय के भारतीय ज्ञान परम्परा के समन्वयक प्रो. गन्ती सूर्यनारायण मूर्ति, उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला की अध्यक्ष प्रो. शशिप्रभा कुमार एवं केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर के निदेशक प्रो. रमाकान्त पाण्डेय ने उद्बोधित दिया। इस सत्र की अध्यक्षता केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने किया। इस सत्र का संयोजन प्रो. ए.एस्. आरावमुदन् द्वारा किया गया। इसके पश्चात् सायंकाल में सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्तर्गत सुनयना संस्था, नई दिल्ली द्वारा ‘नवग्रह’ नामक संस्कृत नाट्य प्रस्तुति की गयी।