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आज हम सभी विज्ञान और तकनीक के युग में जी रहे हैं। सूचना क्रांति, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), कंप्यूटर का युग है। इस युग में सांस लेते हुए मनुष्य को बहुत बार यह अनुभव होता है कि ईश्वर है या नहीं। विज्ञान ईश्वर को नहीं मानता लेकिन विज्ञान यह जरूर स्वीकार करता है कि इस ब्रह्मांड में कोई तो शक्ति है जो इस संपूर्ण जगत को चलायमान रखे हुए है।आज की इस दुनिया में बहुत से लोग हैं जो आस्तिक हैं और बहुत से नास्तिक। जो ईश्वर में विश्वास करते हैं वे आस्तिक और जो नहीं करते वे नास्तिक। मनुष्य हमेशा अपने वजूद, अपने अस्तित्व को सुरक्षित बनाए रखना चाहता है और वह अंधेरे में जाने से हमेशा डरता है। अंधेरे का एक खौफ,एक डर उसके मन में हमेशा रहता है। देखा व महसूस किया जाए तो मनुष्य ईश्वर को प्रकाश-स्वरूप मानता है, ईश्वर मनुष्य के लिए ‘अंधकार स्वरूप’ तो कतई नहीं है। लेकिन ‘रौशनी’ और ‘प्रकाश’ क्षणिक है। सूर्य हर रोज़ उगता है, रौशनी/प्रकाश फैलाता है और सांयकाल को एक समय विशेष पर सूर्य का प्रकाश ढ़ल जाता है और पीछे बचता है तो ‘अंधेरा’। वास्तव में, प्रकाश का असली अस्तित्व अंधेरे की गोद में ही है। प्रकाश स्पष्टता लाता है और शून्यता अंधकार है। वास्तव में, सूर्य से पहले और सूर्य से बाद अस्तित्व तो अंधकार का ही है। विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि हर चीज शून्य से ही पैदा होती है। प्रकाश अंधेरे की भांति सर्वव्यापी नहीं है। सर्वव्यापी है तो बस ‘अंधेरा’। सच तो यह है कि प्रकाश का अस्तित्व क्षणिक होता है, प्रकाश जलकर खत्म हो जाता है, लेकिन अंधेरा कभी खत्म नहीं होता। प्रकाश कभी-कभी और कहीं-कहीं घटने वाली घटना है। आप आसमान में तारों को देखिए , तारे आसमान में हमेशा छितरे हुए रहते हैं लेकिन शेष अंतरिक्ष हमेशा ‘अंधकारमय’ रहता है। सारा अंतरिक्ष अंधकार ही तो है, यह शून्य है, असीम है और अनन्त है। यही स्वरूप ईश्वर का भी है। जब हम योग करते हैं तो हम यही तो कहते हैं कि यह चैतन्य अंधकार है। योग करते समय हम अपनी आंखों को बंद करते हैं, एक अलग ही सुकून, शांति का अनुभव करते हैं। हम आंखें मूंदते हैं तो हमें प्रकाश दिखाई देता है। आंखें मूंदकर ध्यान लगाने से हमारी एकाग्रता बढ़ जाती है, और हमारा दूसरी चीजों से ध्यान नहीं बंटता। क्या यह ठीक नहीं है कि जब हम आंखें मूंदते हैं तो हम सृष्टा के थोड़े ज्यादा नजदीक होते हैं। इसलिए इस ब्रह्मांड में हर चीज का अस्तित्व अंधकार से है। अंधकार को हम अक्सर नकारात्मक समझते हैं लेकिन अंधकार नकारात्मक नहीं है, यह अंधकार ही तो है जो हमें सृष्टा के बहुत नजदीक तक ले जाता है। अक्सर बुरी चीजों को भी हम अंधकार से जोड़ते रहें हैं लेकिन यह हमारा भय मात्र होता है,जिसके कारण से हम ऐसा करते हैं। भगवान शिव शाश्वत हैं, क्यों कि भगवान शिव ‘अंधकार’ हैं। शिव ‘प्रकाश’ नहीं हैं। शिव हमेशा आंखें मूंदकर ध्यान में लीन रहते हैं। वे योगी हैं ।इसलिए शिव अंधकार की भांति सांवले हैं। अस्तित्व में हर चीज़ का मूल ही तो ईश्वर है। मनुष्य ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास करता है और कभी-कभी नहीं भी। जीवन में जब कभी भी हम दुखी या परेशान होते हैं, अनेक संघर्षों से हमें गुजरना पड़ता है तो हमें लगता है कि ईश्वरीय शक्ति हमारा साथ नहीं दे रही है और हम ईश्वर को बात-बात पर दोष देने लग जाते हैं, लेकिन इसे ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। सबकुछ कर्म पर निर्भर है। कर्म से परे कुछ भी नहीं है। आज मनुष्य कहीं अधिक वैज्ञानिक हो गया है और वह हर बात को वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित करना चाहता है। सच तो यह है कि जो बात और तथ्य वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं होते, मनुष्य उनके अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर देता है और चीजों, तथ्यों को ढकोसला बताता है, लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि मनुष्य आज तक ब्रह्मांड में छिपे असंख्य रहस्यों से पार नहीं पा सका है। ब्रह्मांड के रहस्य आज भी रहस्य ही बने हुए हैं। विज्ञान हालांकि इस जीव-जगत से परे किसी अज्ञात सत्ता के होने को स्वीकार करता है लेकिन ईश्वर के अस्तित्व को नहीं। अंत में यही कहूंगा कि ईश्वर रहस्यपूर्ण और अनंत है। अध्यात्म और योग ही वे माध्यम से जिनकी सहायता से ईश्वर को जाना जा सकता है। चैतन्य अंधकार हमें ईश्वर से साक्षात्कार कराने की क्षमता रखता है, जिस अंधकार को हम नकारात्मक समझते हैं, वास्तव में उसी के मूल में कहीं न कहीं ईश्वरीय शक्ति विद्यमान है।
हिंदी काव्य रत्न, साहित्यिक आइडल सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
ई मेल mahalasunil@yahoo.com




















