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अघोषित हिंदू राष्ट्र किस काम का?

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भारत को अपने वैभव के लिए स्पष्ट घोषणा करनी होगी— आर. एस. ओझा

इतिहास गवाह है कि जब भी किसी राष्ट्र की पहचान अघोषित रही, तब उसके वास्तविक नायक और मूल्य अक्सर उपेक्षित और अपमानित हुए। महादानी, महावीर कर्ण इसका ज्वलंत उदाहरण हैं, जिन्हें अपने संपूर्ण जीवन में लांछना और यातनाएं झेलनी पड़ीं।

आज भारत की स्थिति भी कुछ ऐसी ही प्रतीत होती है। यह देश व्यवहार में तो पहले से ही एक अघोषित हिंदू राष्ट्र है, लेकिन इसके भीतर क्या घटित हो रहा है? गौ माताओं का वध हो रहा है, हिंदू देवी–देवताओं और धर्मशास्त्रों का खुलेआम अपमान हो रहा है, राष्ट्रविरोधी गतिविधियां निर्भीकता से चलाई जा रही हैं। प्रश्न उठता है कि जब राष्ट्र की आत्मा ही सुरक्षित नहीं है, तो फिर इस अघोषित हिंदू राष्ट्र का लाभ क्या?

सच्चाई यह है कि “अघोषणा” अपने आप में एक छल है—अपने आप से भी और राष्ट्र से भी। जब तक भारत स्पष्ट रूप से और निर्भीकता के साथ हिंदू राष्ट्र के रूप में पूरी दुनिया के सामने खड़ा नहीं होता, तब तक इसका परम वैभव आरंभ नहीं होगा। उसी दिन से राष्ट्र विरोधी तत्वों पर प्रभावी अंकुश लग सकेगा।

दुर्भाग्य यह है कि वर्तमान परिस्थितियों में भारत एक “धर्मशाला” जैसा बन गया है—जहां जो चाहे आता है, जाता है और अनियंत्रित आचरण करता है। कई राज्य सरकारें तक ऐसे तत्वों को संरक्षण दे रही हैं जो हिंदुओं पर अत्याचार कर रहे हैं। यहां तक कि राष्ट्रगौरव का प्रतीक अशोक चक्र तक तोड़ा जा रहा है और शासन–प्रशासन मौन है।

प्रश्न यही है—यदि “हिंदू राष्ट्र” केवल अघोषित रूप में रहना है, तो इसका औचित्य क्या? राष्ट्र की अस्मिता और गौरव की रक्षा तभी संभव है जब भारत खुलेआम और दृढ़ संकल्प के साथ स्वयं को हिंदू राष्ट्र घोषित करे। तभी राष्ट्र की आत्मा जाग्रत होगी और परम वैभव का युग आरंभ होगा।

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