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प्रस्तावना
मानव समाज के दो पहिए – पुरुष और स्त्री – की अवधारणा वैदिक साहित्य में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। तैत्तिरीय संहिता में स्त्री-पुरुष को रथ में जुते हुए दो बैलों के समान बताया गया है। वैदिक ग्रंथों के अनुसार, ब्रह्मा के दाहिने भाग से पुरुष और बाएँ भाग से स्त्री की उत्पत्ति हुई। यह दर्शाता है कि सृष्टि में पुरुष और स्त्री समान रूप से पूजनीय और सम्माननीय हैं। बृहद्धर्म पुराण में महर्षि व्यास के कथनानुसार, माता को गुरु से भी श्रेष्ठ माना गया है। मनुस्मृति में भी माता की महत्ता को अत्यधिक उच्च स्थान प्रदान किया गया है।
सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति
ऋग्वेद में स्त्रियों की स्थिति को अत्यंत सम्मानजनक बताया गया है। ऋग्वेद में उषा (प्रातः की देवी) और अदिति (मित्र, वरुण, रुद्र, और अर्यमन जैसे देवताओं की माता) का उल्लेख मिलता है। वैदिक समाज में कन्या और पुत्र दोनों को समान रूप से सम्मान दिया जाता था। वैदिक काल में परिवार एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी, जहाँ कन्याओं को “दुहित्री” कहा जाता था, जिसका अर्थ है गायों का दुग्ध निकालने वाली। साथ ही, वे कृषि कार्यों में भी सहायक होती थीं।
वैदिक युग में स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त था। घोषा, अपाला, रोमासा, लोपामुद्रा और विश्ववारा जैसी विदुषी महिलाओं ने ऋचाओं की रचना की और समाज में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त किया। वैदिक साहित्य में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि विवाह के लिए वधू और वर दोनों ही शिक्षित होने चाहिए। स्त्रियाँ केवल गृहिणी तक सीमित नहीं थीं, बल्कि वे चिकित्सा, ज्योतिष, गणित और दर्शन जैसे विषयों में भी पारंगत थीं।
धार्मिक स्थिति
वैदिक काल में स्त्रियाँ धार्मिक अनुष्ठानों और वेदाध्ययन में सम्मिलित होती थीं। ऋग्वेद में स्पष्ट उल्लेख है कि स्त्रियाँ धार्मिक प्रवचनों में भाग लेती थीं और वे विदुषी के रूप में प्रतिष्ठित होती थीं। अथर्ववेद में यह वर्णित है कि स्त्रियों को ज्ञान प्राप्त करने और अपने परिवार तथा समाज को समृद्ध बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। वैदिक स्त्रियाँ केवल धार्मिक क्रियाओं तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि वे यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन भी करती थीं। गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियाँ धार्मिक और दार्शनिक विमर्श में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं।
राजनैतिक स्थिति
वैदिक काल में स्त्रियाँ सभा और समिति जैसी राजनीतिक संस्थाओं में सक्रिय रूप से भाग लेती थीं। ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है कि स्त्रियाँ खुलेआम इन सभाओं में विचार-विमर्श कर सकती थीं। समाना नामक संस्था में भी स्त्रियाँ पुरुषों के साथ सम्मिलित होकर सामाजिक एवं राजनीतिक निर्णयों में भाग लेती थीं। विवाह समारोहों में भी वे स्वयं अपने लिए वर का चयन करने के लिए स्वतंत्र थीं। इसके अतिरिक्त, वे प्रशासनिक कार्यों में भी सक्रिय रहती थीं और राज्य की नीतियों के निर्माण में योगदान देती थीं। कुछ ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि कुछ क्षत्रिय स्त्रियाँ युद्ध कला में निपुण थीं और उन्होंने युद्ध में भी भाग लिया था।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वैदिक विचारों की प्रासंगिकता
वैदिक काल में स्त्रियों को जो सम्मान और अधिकार प्राप्त थे, वे वर्तमान समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत हो सकते हैं। आधुनिक समय में महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और नेतृत्व के अवसर प्राप्त हो रहे हैं, परंतु अभी भी लैंगिक असमानता की कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। वैदिक आदर्शों के आधार पर महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से अधिक सशक्त किया जा सकता है।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर यह आवश्यक है कि हम वैदिक काल की उन विशेषताओं को पुनर्जीवित करें, जो स्त्री-पुरुष समानता को सुनिश्चित करती थीं। सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों और समाज के प्रत्येक स्तर पर महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने के लिए प्रयास करने चाहिए, ताकि वेदों में वर्णित गरिमा और सम्मान को पुनः स्थापित किया जा सके।
भविष्य में नारी की स्थिति और संभावनाएँ
भविष्य में महिलाओं की स्थिति को और अधिक सशक्त और समृद्ध बनाने के लिए शिक्षा, तकनीकी विकास, नीति-निर्माण और सामाजिक संरचना में सकारात्मक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। आधुनिक युग में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डिजिटल अर्थव्यवस्था, और वैश्विक परिदृश्य में महिलाओं की भूमिका लगातार बढ़ रही है। यदि समाज, सरकार और परिवार मिलकर महिलाओं को स्वतंत्रता, समान अवसर और प्रोत्साहन प्रदान करें, तो नारी शक्ति भविष्य में अभूतपूर्व ऊँचाइयों तक पहुँच सकती है।
शिक्षा और कौशल विकास – शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती है, और महिलाओं के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा उनकी आत्मनिर्भरता की कुंजी है। भविष्य में महिलाओं की शिक्षा को STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित) जैसे क्षेत्रों में अधिक बढ़ावा देने की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही, उन्हें डिजिटल साक्षरता, उद्यमिता और नेतृत्व कौशल में भी निपुण बनाया जाना चाहिए ताकि वे आधुनिक अर्थव्यवस्था में प्रभावी रूप से योगदान दे सकें।
तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका – भविष्य में महिलाओं की भागीदारी विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अनुसंधान, जैव प्रौद्योगिकी, डेटा विज्ञान और डिजिटल इनोवेशन के क्षेत्र में अधिक होगी। भारत में पहले ही कई महिला वैज्ञानिक और इंजीनियर अंतरिक्ष, चिकित्सा और कंप्यूटर विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं, और यह प्रवृत्ति आगे भी बढ़ेगी। महिलाओं के लिए स्टार्टअप्स, नवाचार और अनुसंधान में अवसर बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि वे वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति में अग्रणी भूमिका निभा सकें।
आर्थिक स्वतंत्रता और उद्यमिता – महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए छोटे और मध्यम उद्यम (MSME), स्टार्टअप्स और डिजिटल प्लेटफार्मों में उनकी भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सरकारों और वित्तीय संस्थानों को महिलाओं के लिए अनुकूल आर्थिक योजनाएँ तैयार करनी चाहिए ताकि वे अपने व्यवसाय और रोजगार के नए अवसर पैदा कर सकें। भविष्य में “वुमेन लीड स्टार्टअप्स” और “फाइनेंशियल इन्क्लूजन” जैसे प्रयास महिलाओं की आत्मनिर्भरता को सुदृढ़ करेंगे।
राजनीतिक और प्रशासनिक भागीदारी – भविष्य में महिलाओं की राजनीति और प्रशासन में अधिक भागीदारी की आवश्यकता होगी। भारत में पंचायत स्तर से लेकर संसद तक महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, लेकिन अभी भी इसमें सुधार की आवश्यकता है। लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों और सरकारों को महिलाओं के लिए आरक्षण, नेतृत्व प्रशिक्षण और निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा – महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करना भविष्य की एक महत्वपूर्ण चुनौती है। डिजिटल युग में साइबर अपराध, कार्यस्थल पर भेदभाव और लैंगिक हिंसा के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए कड़े कानून और जागरूकता अभियान जरूरी होंगे। महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी समाधानों जैसे महिला सुरक्षा ऐप्स, निगरानी प्रणालियों और संवेदनशील पुलिसिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
वैश्विक नेतृत्व और सामाजिक परिवर्तन में योगदान – आने वाले दशकों में महिलाएँ वैश्विक कूटनीति, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास लक्ष्यों और सामाजिक न्याय के आंदोलनों में एक प्रमुख भूमिका निभाएँगी। वे सामाजिक कार्य, पर्यावरणीय स्थिरता, शिक्षा नीति और स्वास्थ्य सुधारों में निर्णायक भूमिका अदा करेंगी। महिलाओं के नेतृत्व में चलने वाले संगठन और पहलें समाज में सकारात्मक बदलाव लाएँगी।
संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों का संतुलन – आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाए रखते हुए, महिलाओं को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहकर भी नए बदलावों को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। भविष्य में महिलाएँ परिवार और समाज के बीच एक मजबूत कड़ी के रूप में उभरेंगी, जहाँ वे न केवल परिवार की देखभाल करेंगी, बल्कि आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में भी प्रभावी योगदान देंगी।
भविष्य की दुनिया महिलाओं के लिए नए अवसरों और संभावनाओं से भरी होगी। यदि वेदों में वर्णित नारी गरिमा और सम्मान को पुनः स्थापित किया जाए और महिलाओं को आधुनिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था और राजनीति में समान अवसर दिए जाएँ, तो वे न केवल अपने जीवन को समृद्ध बनाएँगी, बल्कि पूरे समाज को नई ऊँचाइयों तक ले जाएँगी। महिलाओं के सशक्त होने से समाज अधिक न्यायसंगत, संवेदनशील और समृद्ध बनेगा, जिससे वैश्विक स्तर पर एक नई और समतामूलक सभ्यता का निर्माण होगा।
निष्कर्ष
वैदिक काल में महिलाओं को समाज में एक उच्च स्थान प्राप्त था, जहाँ वे स्वतंत्र रूप से शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं, धार्मिक अनुष्ठानों में भाग ले सकती थीं, और राजनीतिक तथा प्रशासनिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभा सकती थीं। वे केवल गृहस्थी तक सीमित नहीं थीं, बल्कि ज्ञान, युद्ध, कला और नीति-निर्माण में भी योगदान देती थीं। वैदिक युग की यह विशेषता यह दर्शाती है कि महिलाओं को समान अवसर मिलने से समाज का समग्र विकास संभव है।
हालांकि, कालांतर में सामाजिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन आया, जिससे महिलाओं की स्थिति में गिरावट देखी गई। लेकिन आधुनिक युग में, विशेष रूप से बीसवीं और इक्कीसवीं सदी में, महिलाओं की भूमिका पुनः सशक्त हुई है। आज महिलाएँ विज्ञान, तकनीक, राजनीति, उद्यमिता, रक्षा और कला जैसे विविध क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों से महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कानून बनाए गए हैं, जिससे वे शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और निर्णय-निर्माण की प्रक्रियाओं में अधिक भागीदारी निभा सकें।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का मूल उद्देश्य लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है। यह हमें स्मरण कराता है कि महिलाओं को वेदों में उल्लिखित गरिमा और गौरव की पुनः प्राप्ति के लिए सतत प्रयासरत रहना चाहिए। महिला सशक्तिकरण केवल किसी एक वर्ग, समुदाय या देश की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह एक वैश्विक आंदोलन है, जो सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से प्रगतिशील समाज की नींव रखता है।
भविष्य में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल क्रांति और वैश्विक कूटनीति जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका और अधिक बढ़ेगी। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में अधिकाधिक महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। साथ ही, वैश्विक स्तर पर नेतृत्वकारी भूमिकाओं में महिलाओं की उपस्थिति को सशक्त किया जाना चाहिए।
श्री अरविंद के अनुसार, वैदिक काल की महिलाएँ केवल घरेलू भूमिकाओं तक सीमित नहीं थीं, बल्कि वे शासन, युद्ध और प्रशासन में भी सक्रिय थीं। यह हमें प्रेरित करता है कि आधुनिक युग की महिलाएँ भी आत्मनिर्भर बनें, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें, और समाज के सभी क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा और नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन करें।
अतः, वैदिक आदर्शों से प्रेरणा लेते हुए, हमें एक ऐसा समाज निर्मित करने की दिशा में कार्य करना चाहिए जहाँ महिलाएँ केवल समर्थक ही नहीं, बल्कि समाज को नेतृत्व देने वाली शक्तिशाली हस्तियाँ बनें। केवल तभी हम एक समतामूलक, समृद्ध और संतुलित विश्व का निर्माण कर पाएंगे, जहाँ स्त्रियों और पुरुषों को समान अवसर और अधिकार प्राप्त होंगे।

डॉ. रणजीत कुमार तिवारी
सहाचार्य एवं विभागाध्यक्ष
संस्कृत सर्वदर्शन विभाग
कु.भा.व.सं.पु.अ विश्वविद्यालय नलबारी





















