फॉलो करें

अयोध्या राम मंदिर के गलियारे में शिलचर असम के मूर्तिकार रंजीत मंडल द्वारा बनाई गई 1,000 पत्थर की मूर्तियां स्थापित की जाएंगी

223 Views
मनोज मोहन्ती – करीमगंज असम
बहुप्रतीक्षित अयोध्या राम मंदिर का शुभ उद्घाटन 22 जनवरी, 2024 को किया जाएगा। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर का उद्घाटन करेंगे और उसी दिन रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भी की जाएगी।  फिर 23 जनवरी से राम मंदिर के दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। जिसके चलते अयोध्या नगरी को दुल्हन की तरह सजाने की तैयारी जोरों से चल रही है।  हालाँकि, राम मंदिर के साथ असम की बराक घाटी की कलाओं का भी एक गहरा रिश्ता बन गया है। शिलचर इटखला रामकृष्ण पल्ली के रंजीत मंडल ने यह कारनामा कर दिखाया है।  वे राम मंदिर के गलियारे यानी “रामकथा कुंज” में स्थापित करने के लिए रामायण के एक सौ प्रसंगों की लगभग एक हजार मूर्तियां बना रहे हैं। उन मूर्तियों को अयोध्या के कारसेवकपुरम में जीवंत रूप देने के लिए दिन-रात वे मेहनत में जुटे हुए हैं। इन प्रतिमाओं का निर्माण उन्होंने दस साल पहले 2013 में शुरू किया था। राम के जन्म के लिए जो पुत्रष्ठी यज्ञ किया गया था वही मुर्ति रामकथा की पहली मुर्ति होगी। तब से लेकर रामकथा के एक सौ प्रसंगों की करीब एक हजार प्रतिमाएं राममंदिर के गलियारे रामकथा कुंज में स्थापित की जाएंगी।
अब तक करीब सात सौ प्रतिमाएं बनकर तैयार हो चुकी हैं।  एक एक प्रसंग को पूरा करने में लगभग दो से तीन महीने का समय लगता है। मूर्तियाँ आकार में तीन से छह फीट तक ऊंचाई की है। उन्हें बनाने में सीमेंट कंक्रीट रेत लोहे की छड़ पतली तार और अन्य सामग्रियों का उपयोग किया जा रहा है। असम के कलाकार रंजीत मंडल द्वारा बनाई गई मूर्तियों की मदद से, राम की जीवन कहानी उनकी कलात्मक भावना के साथ राम मंदिर में आने वाले भक्तों के सामने प्रदर्शित होगी।  राम के जन्म से पहले की घटनाओं से लेकर, मर्यादा पुरुषोत्तम राम की पूरी जीवन कहानी शिलचर असम के इस कलाकार के हाथों से बनाई जाएगी। जिसके चलते मंदिर के निर्माण में सहभागी बने कलाकार रंजीत मंडल अपने आप को धन्य महसूस कर रहें हैं। वे सोचते हैं कि उन्हें पिछले जन्म के किसी पुण्य के फलस्वरूप इस जन्म में इतना बड़ा अवसर मिला है। हालाँकि,  उनकी यह उपलब्धि शिलचर सहित पूरे असम के लोगों के लिए गर्व की बात हैं। अयोध्या से फ़ोन पर बात करते हुए, कलाकार रंजीत मंडल ने इस संवाददाता को बताया कि उन्होंने कभी कला की कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है। वे जन्मजात कलाकार हैं जिसे वे ईश्वर की देन मानते हैं। उन्होंने बताया कि बचपन से ही उन्हें मिट्टी की मूर्तियाँ बनाना पसंद था। किशोरावस्था में, उनकी बनाई मूर्तियाँ शिलचर घनियाला रामकृष्ण पल्ली में पड़ोसियों के कमरे के शोकेस की शोभा बढ़ाती थीं। रंजीत को खुद ठीक से याद नहीं है कि उन्होंने मिट्टी की मूर्तियां बनाते बनाते सीमेंट कंक्रीट और लोहे की छड़ों से मूर्तियां बनाना कब शुरू कर दिया। पर उन्हें इस कला में पहला ब्रेक सन 1995-96 में मिला। उस समय रंजीत शिलचर में हाई स्कूल के छात्र थे। छात्र जीवन में ही उनकी प्रतिभा ने शिलचर सहित बराकघाटी के लोगों का ध्यान आकर्षित किया था। उस समय उनके द्वारा बनाई गई महात्मा गांधी की पत्थर की मूर्ति को काफी सराहना मिली थी। सिर्फ यह ही नहीं, उस आदमकद मूर्ति को 1997 में शिलचर फाटक बाजार चौरंगी में स्थापित की गई थी जो आज भी वहां मौजूद है। एक भव्य समारोह के जरिए स्व-निर्मित महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित होने से छात्र रंजीत का आत्मविश्वास बढ़ गया।और यहीं से रंजीत ने बराक के मूर्तिकला कलाकार के रूप में अपनी शुरुआत की।
 1999 में, सर्वोदय हाई स्कूल, शिलचर मालुग्राम में उनकी बनाई स्वतंत्रता सेनानी सचिन्द्र मोहन दत्त की एक पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई।  रंजीत मंडल की बनाई उस मूर्ति को काफी सराहना मिली थी। चूंकि उस समय रंजीत विवेक वाहिनी से जुड़े थे, इसलिए वे विवेक वाहिनी के संस्थापक और अध्यक्ष डॉ. सुखमय भट्टाचार्य के भी संपर्क में भी थे। डॉ. सुखमय भट्टाचार्य को वे अपनी प्रेरणा स्रोत मानते हैं। 1999 में उनके प्रयासों के कारण, विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित असम वेद विद्यालय गुवाहाटी में कलाकार रंजीत द्वारा बनाई गई महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार भगत सिंह, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और नटराज की मूर्तियों का प्रदर्शन किया गया।  उस प्रदर्शनी उनकी  मूर्तिकला कला को  में प्रसिद्धि मिली।  परिणामस्वरूप, उनके कलात्मक कार्यों से प्रभावित होकर वेद विद्यालय के सचिव किरण शर्मा ने उन्हें असम वेद विद्यालय परिसर गुवाहाटी में स्थापित करने हेतु महर्षि वेद व्यास की एक ऊंची प्रतिमा बनाने की पेशकश की। उस प्रतिमा का अनावरण करने पहुंचे विश्व हिंदू परिषद सुप्रीमो अशोक सिंघल ने कलाकार रंजीत मंडल की शिल्पकला देख उनकी कलाकारी की खुब सराहना करते हुए उन्हें बधाई भी दिये। इसके साथ ही वे उन्हें अपने साथ दिल्ली ले गये। वहां विश्व हिंदू परिषद के कार्यालय के परिसर में रंजीत द्वारा बनाई गई दुध देती गाय और बछड़े की मूर्तियां स्थापित की गईं। जो आज भी परिसर की शोभा बढ़ाती हैं। बाद में वे विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री चंपत रॉय के साथ अयोध्या के कारसेवकपुरम चले गए। फिर उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा।  2003 में उन्हें पंडित दीन दयाल शोध संस्थान में स्थापन हेतु विभिन्न देवी-देवताओं और ऋषियों की 34 मूर्तियां निर्माण करने की जिम्मेदारी दी गई थी। वहां वे भारतरत्न नानाजी देशमुख के संपर्क में आये और उनके निर्देश पर चित्रकूट जाकर और देवी सरस्वती की मूर्ति का निर्माण किया। भारत के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने उस मूर्ति का अनावरण किये थे। देश-विदेश के कई मठों और मंदिरों में स्थापित करने के लिए अनगिनत मूर्तियां बनाने के बाद आखिरकार 2013 से उन्होंने राम मंदिर का गलियारा राम कथा कुंज के लिए लगभग एक हजार मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया। . उस वक्त रंजीत अपने पिता नारायण मंडल को भी वहां ले गये‌‌। कुछ दिनों तक पिता नारायण मंडल भी बेटे कि इस काम में सहयोग करते रहे। हालांकि आज वे जीवित नहीं हैं, लेकिन उनके सुयोग्य बेटे की मूर्तिकला कला ने आज एक पिता के रूप में उनके साथ-साथ पूरी असम को गौरवान्वित कर रहा है।

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल