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तार झंकृत हो रहे हैं ।
हम अलंकृत हो रहे हैं ।।
आपके बस आगमन से।
खिल उठे तन-मन सुमन से।।
दिव्यता लौकिक हुई है।
भव्यता भौतिक हुई है।।
द्वार वन्दनवार शोभित।
मान की मनुहार शोभित।।
उत्सवी वातावरण है।
सभ्यता का शुभचरण है।।
सब सुसंस्कृत हो रहे हैं।।
तार झंकृत हो रहे हैं ।।
हम अलंकृत हो रहे हैं ।।1।।
गीत नगरी गा रही है ।
रस – कलश छलका रही है।।
मस्त मालामाल कलियाँ।
हो उठीं वाचाल गलियाँ।।
पायलें पग की छननछन।
चूड़ियांँ बोलीं खनन खन।।
झूम अभिनन्दन करेंगे।
आपका वन्दन करेंगे ।।
शब्द निस्सृत हो रहे हैं।।
तार झंकृत हो रहे हैं ।।
हम अलंकृत हो रहे हैं।।2।।
हर खुशी करके निछावर।
पन्थ पर पलकें बिछाकर।।
हम सभी कर जोड़ नतमुख।
उर मुकुलता भर नयनसुख।।
पा रहे सौभाग्य के फल।
गर्व की अनुभूति के पल।।
ले हृदय निमिषेक आगत।
कर रहे अभिषेक स्वागत।।
आप आदृत हो रहे हैं।।
तार झंकृत हो रहे हैं ।।
हम अलंकृत हो रहे हैं।।3।।
कर रहे कब से प्रतीक्षा ।
“प्राण” प्रण की थी परीक्षा।।
मान कर विनती निवेदन।
कर दिया पावन निकेतन।।
आप ज्ञानी हैं गुणी हैं।
प्रेम पाकर हम ऋणी हैं।।
आज अभिनन्दन तुम्हारा।
लीजिए वन्दन हमारा।।
हम परिष्कृत हो रहे हैं।।
तार झंकृत हो रहे हैं।।
हम अलंकृत हो रहे हैं ।।4।।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
“वृत्तायन” 957, स्कीम नं. 51
इन्दौर पिन- 452006 म.प्र.
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