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संयुक्त अरब अमीरात में पाकिस्तान मुसलमानों का वीजा नहीं मिलने पर पाकिस्तान राजदूत फैसल नियाज का विचार जान कर आप हैरान हो सकते हैं। फैसल नियाज का कहना है कि संयुक्त अरब अमीरात ही नहीं बल्कि पूरा अरब जगत में पाकिस्तानी मुसलमानों को लेकर धारणा बहुत ही विस्फोटक और नकारात्मक है तथा घृणा स्पद है, लेकिन इसके लिए अरब महादेश के मुस्लिम देश जिम्मेदार नहीं है बल्कि पाकिस्तान के मुसलमान ही जिम्मेदार है, गुनहगार हैं। कहने का अर्थ यह है कि पाकिस्तान के राजदूत ने अपने देश के नागरिकों के खिलाफ खड़े हैं और अपने देश के नागरिकों को ही अपराधी और गुनहगार घोषित कर रहे हैं। ऐसी कूटनीतिक स्थिति बहुत कम देखी जाती है। माना जाता है कि राजदूत अपने देश का प्रतिनिधि होता है उसका कर्तव्य विदेश में अपने देश के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना और उनके सामने आने वाली कठिनाइयों को दूर करना होता है। क्या पाकिस्तान के राजदूत ने अपने कर्तव्य का पालन करने में कोई कोताही बरती है या फिर सच बोला है? क्या सच बोलकर भी पाकिस्तानी राजदूत अपने देश के नागरिकों को सभ्य बना सकते हैं, उन्हें विदेश में संबंधित देशों के कानूनों और सभ्यताओं का सम्मान करना सिखा सकते हैं, उन्हें स्थानीय राजनीति से दूर रहने की सीख देने में कामयाब हो सकते हैं? उन्हें मजहबी प्रसंगों पर खामोश होने के लिए प्रेरित कर सकते हैं?
पाकिस्तानी राजदूत ने जो कारण बतायें हैं उनमें भीख मांगने का अपराध मुख्य रूप से शामिल है। पाकिस्तानी मुसलमान भीख मांगने के ख्याल से यूएई सहित अन्य अरब के मुस्लिम देशों में जाते हैं। इस कारण अरब देशों की सड़कों पर भीख मांगने वालों की संख्या बढ रही है। इतना ही नहीं बल्कि भीेख मांगने के लिए पाकिस्तानी मुसलमान आवासीय कालोनियों को भी निशाना बनाते हैं। पाकिस्तानी मुसलमान लूट-पाट और डकैती में शामिल होते हैं। इस कारण अरब देशों में कानून व्यवस्था की समस्या खडी हो गयी है, पुलिस को अतिरिक्त प्रभाव और शक्ति का प्रयोग करना पड़ रहा है। जेलों में अधिकतर पाकिस्तानी नागरिकों के बंद होने से भी घृणास्पद समस्याएं खडी हुई हैं। जेलों पर कैदियों का भार बढ रहा है, अतिरिक्त जेलों की आवश्यकता महसूस हो रही है, इसके अलावा जेलों पर खर्च होने वाली राशि की बढ़ोतरी हो रही है,न्याय व्यवस्था को अतिरिक्त सक्रियता दिखानी पड़ रही है। मजहबी प्रसंग पर भी पाकिस्तानी मुसलमानों की सक्रियता अधिक होती है, यह कहना सही होगा कि पाकिस्तानी मुसलमान अरब जाकर वहां के मजहबी प्रसंग पर हस्तक्षेप करते हैं और इनका इस्लाम अच्छा है और उनका इस्लाम गलत है, की धारणा प्रत्यारोपित करते हैं जबकि अरब के अधिकतर देशों में मजहबी मामालों मंें हस्तक्षेप करने का अधिकार बहुत ही सीमित है। सबसे बड़ी बात यह है कि अरब देशों में राजनीति की छूट नहीं है, अधिकतर अरब देशों में तानाशाही है और तानाशाही यह स्वीकार नहीं करती है कि उसे कोई चुनौती दे और उसकी जनता को कोई विदेशी बगावत करने या फिर विरोध करने के लिए लडकारे, प्रेरित करे।
यूएई ने वीजा के लिए ऐसे मानक तय कर दिये हैं कि पाकिस्तानी मुसलमान उसको पूरा करने में असमर्थ होते हैं। पाकिस्तानी राजदूत फैसल नियाज के अनुसार पर्यटक वीजा पर आने वाले पाकिस्तानी मुसलमानो को वापसी का टिकट साथ लाना होगा, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि जिस हवाई जहाज से आये हैं, वापसी भी उसी जहाज से करनी होगी, पर्यटक वीजा पर आने वालों को कहां ठहरेंगे, उस होटल का नाम और उसमें कमरे की बुकिंग रसीद देनी होगी, ट्रैवल की पूरी जानकारी देनी होगी, दुर्घटना आदि के लिए बीमा कवर का होना जरूरी है, अपराध और अन्य अस्वीकार कार्य करने की करतूत और इतिहास की पूरी जानकारी देनी होगी। इसके साथ ही साथ बैंक बाइलेंस की जानकारी देनी होगी। ये सभी शर्ते बहुत ही कठिन हैं और पाकिस्तानी मुसलमानों के लिए एक बुलडोजर के समान हैं। वे बुलडोजर के समान शर्तो को पूरा कर ही नहीं पा रहे हैं। पाकिस्तानी मुसलमान तो रोजगार के तलाश में ही अरब देशों में जाते हैं फिर इनके पास इतना धन कहां होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि गरीबी और बेकारी की समस्या से जूझ रहे पाकिस्तान के नागरिकों के लिए प्रशिक्षित कामगार का सर्टिफिकेट का न होना भी एक समस्या है, पाकिस्तान के शैक्षणिक और रोजगार संस्थानों के सर्टिफिकेट चाकचौबंद नहीं होते हैं, सिर्फ कागजी होते हैं, अनुभव और दक्षता का भी अभाव होते हैं।
पाकिस्तानी मुसलमानों की इच्छा भी जान लीजिये। पाकिस्तानी मुसलमान कहते हैं कि यूएई ही नहीं अरब के मुस्लिम देश उनके साथ अन्याय कर रहे हैं, भाई चारे के सिद्धांत का वध कर रहे हैं, इस्लाम के दायित्वों से पीछे हट रहे हैं, मुस्लिम देश का कर्तव्य सभी मुसलमानों को साथ लेकर चलना होता है और सभी मुसलमानों की भलाई करना होता है। क्षेत्र और भूभाग के नाम पर आप अन्याय नहीं कर सकते हैं और न ही भेदभाव कर सकते हैं। पाकिस्तानी मुसलमानों का यह भी कहना है कि हमें तो प्रतिबंधित किया जा रहा है पर भारतीय लोगों के साथ ऐसा क्यों नहीं किया जा रहा है, जैसा प्रतिबंध पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के मुसलमानों के साथ लगाया जा रहा है वैसा प्रतिबंध भारत के हिन्दुओं पर क्यों नहीं लगाया जा रहा है, भारत के हिन्दुओं का सम्मान क्यों दिया जा रहा है और उनको अरब के देश क्यों स्वागत करते हैं?
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के मुसलमानांें पर जिस तरह के वीजा प्रतिबंध लगाये गये हैं उस तरह के प्रतिबंध भारत के लोगों पर नहीं लगाये हैं, भारत से आने वाले लोगों के लिए वीमा शर्त आसान है और कम जटिल है, उन्हें कई प्रकार की गारंटियों से छूट मिल रही है। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि भारतीयों को अरब में पाकिस्तानी मुसलमानों की अपेक्षा इतनी छूट क्यों मिल रही है, इतनी कृपा क्यों बरस रही है जिससे पाकिस्तानी मुसलमानों को परेशानी है? वास्तव में भारतीय हिन्दू अरब देशों में काम की खोज में जाते हैं, अरब की जरूरतों का सहचर बनते हैं, उनके विकास में सहयोग करते हैं लेकिन भारतीय हिन्दू अपने निर्धारित काम और दायित्व पर ध्यान लगाते हैं, उन्हें अरब देशों की आतंरिक राजनीति से कोई लेना-देना नहीं होता है और न ही आतंरिक राजनीति में हस्तक्षेप कारी कोई रूचि दिखाते हैं, उन्हें रूचि दिखाने का दुष्परिणाम मालूम हैं, क्योंकि वे सचेत और सजग होते हैं। इसके साथ ही साथ भारतीय कामगर सिर्फ अप्रशिक्षित ही नहीं होते हैं बल्कि प्रशिक्षित भी होते हैं, इसलिए अरब देशों की प्रशिक्षित कामगरों और प्राफेशनरों की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है।
कोई भी देश अपने खिलाफ भस्मासुर क्यों पालेगा, हिंसक और आतंक के पर्याय लोगों को रोजगार देकर क्यों परेशानी खड़ी करेगा? यही बात अरब के मुस्लिम देश समझ चुके हैं। उन्हें यह समझदारी विकसित हो चुकी है कि इस्लाम के नाम पर आतंक और हिंसा का संरक्षण देने से उनका भला होने वाला नहीं है, सिर्फ और सिर्फ परेशानी खड़ी होती है और खुद की अर्थव्यवस्था का संहार होता है। इसका उदाहरण कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान ही है। पाकिस्तान में आतंक की खेती होती है, आतंक की आउटसोर्सिंग होती है। वहां पर डॉक्टर इंजीयिर और वैज्ञानिक बनने का सपना नहीं देखा जाता है बल्कि आतंकी सरगना बनने का सपना देखा जाता है। क्योेकि आतंकी बनने से शोहरत के साथ ही साथ धन की वर्षा होती है, राजनीति भी उनके सामने समर्पणकारी होती है। कहने का अर्थ है कि आतंकी के सामने सभी कोई शक्ति ही नहीं रखते हैं। पाकिस्तान आज कटोरा लेकर भीख मांग रहा है। पाकिस्तान का यह हस्र अरब देश जान गये हैं और समझ गये। अरब देश अपने को पाकिस्तान नहीं बनने देना चाहते हैं। इसी कारण अरब देशों ने पाकिस्तानियों के खिलाफ नो एंट्री का बोर्ड लगा दिया है।
भारत को भी पाकिस्तानियों के इस हस्र से सावधान रहना होगा, सर्तक रहना होगा। आखिर क्यों? मजदूर वर्ग के लोग तो अरब देशों की आतंरिक और मजहबी मामलों में हस्तक्षेप तो करते नहीं पर प्रोफेशनरों ने जरूर समस्या खडी कर रखी है। पढे-लिखे और प्रशिक्षित भारतीय मुसलमान जो अरब देशों में कार्यरत हैं वे भी पाकिस्तानी मुसलमानों की डगर पर चल रहे हैं। खासकर अपने देश और अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ही अभियान चलाते हैं और सोशल मीडिया पर स्थापित करते हैं कि भारत और मोदी मुस्लिम विरोधी हैं, इसलिए अरब देशों को भारत से मधुर संबंध नहीं रखना चाहिए और अरब में हिन्दुओं को प्रवेश और रोजगार नहीं देना चाहिए। भारत को ऐसी मुस्लिम मानसिकताओं पर संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी होगी। अन्यथा भारत को पाकिस्तान की तरह ही अरब देशों में अपमानित होना पडेगा और घृणा का शिकार होना पडेगा।
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आचार्य विष्णु श्रीहरि
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