नारायणचंद नामक चौकीदार बिमारियों एवं गरीबी से जुलता अब सिर्फ बाट जो रहा था कि सारी संपत्ति बचत एवं भविष्य निधि का पैसा छहों बेटियों को पढाने लिखाने एवं अपने पैरों पर खङा करने में खर्च कर दिया। लगातार अतिरिक्त आमदनी के लिए सप्ताह भर चोबीस घंटे ड्यूटी करने के साथ साथ अपनी हेसियत के अनुसार पांचों बेटियों की शादी अपने समाज में उनकी जोङी के अनुसार खाते पीते घरों में करदी। इकहत्तर साल की उम्र में भी बिना माँ की बेटी चंद्रावल की शादी जीते जी करना चाहता था लेकिन चंद्रावल इतनी सुंदर सुशिक्षित एवं उच्च अधिकारी होने के साथ साथ अपने समाज अपने कार्यालय एवं अन्य क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय थी लेकिन एक तांत्रिक के बहकावे में आकर अपनी जिंदगी दाव में लगाने की जीद करती थी। अधेड़ उम्र का तांत्रिक समाज में बदनाम होने के कारण सब दूरी बनाए हुए थे लेकिन कई लङकियों की जिंदगी बर्बाद कर दी। माँ जानकी देवी मन में जख्म लिए एक दिन कीर्तन में जाने के समय गाङी से टकरा कर वही ढेर हो गई ऐसे में बुढे एवं बिमार के लिए दो नौकर रखने के साथ साथ बङे बङे डाक्टरों को दिखाया लेकिन सभी रिपोर्ट ठीक होने के बावजूद ठीक नहीं हो रहा था। चंद्रावल दिल्ली बंगलोर एवं कोलकाता ले गयी। नारायण चंद दीन इमान पर चलने वाला इंसान था लेकिन वो जीते जी बेटी के हाथ पिले करना चाहता था लेकिन ऐसा नहीं कर सका। सेवार्थ चिकित्सा सदन में भर्ती नारायण चंद अंतिम सांस ले रहा था सभी बेटियां रिश्तेदार मिलने के लिए आए लेकिन अचानक सबसे छोटी बेटी चंद्रावल को देखा व छाती पर रखे हाथ को हिलाकर छाती पर रख लिया। अलविदा बिटिया कहा तो नहीं लेकिन अपने हावभाव से कह गया अलविदा बिटिया। बहनों के साथ आये उनके बेटों ने अंतिम संस्कार किया लेकिन बारी बारी से सभी बेटियों ने कंधा दिया। हरिद्वार में अस्थि विसर्जन करते हुए चंद्रावल ने देखा कि पिताजी गंगा में कह रहे हैं अलविदा बिटिया। चंद्रावल जी भर कर रोई कि मैंने अपने जीवन के साथ साथ अपने माँ बाप का सपना भी पूरा नहीं किया। तांत्रिक के चक्रव्यूह रचने की एक एक घटना को याद करते हुए उसकी भी अस्थियाँ मन से विसर्जित करते हुए गंगा में स्नान किया।




















