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“अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत….” — आनंद शास्त्री

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सम्माननीय मित्रों ! आज पुनश्च अपने एक अभिन्न मित्र,सखा, शिष्य और भी बहुत बहुत कुछ ऐसे महामानव का दैहिक संग छूट गया जिसकी वेदना मनोमस्तिष्क को इस काया के पतन तक सालती रहेगी झकझोरती रहेगी ! मुझसे आयु,पद विद्यादि में हजारों हजार गुना श्रेष्ठ एक आदर्श ऋषितुल्य-“श्रीमान अमरनाथ खण्डेलवाल जी” ने इस नश्वर देह को त्याग कर देवाधिदेव सदाशिव के अनंत चरणों में अपने-आप को समर्पित कर दिया ! स्वर्गीय श्रीमान सूरज भान एवं माँ हीरा देवी जी के इस सुपुत्र का जन्म सिल्चर में ही हुवा था ! आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जन्म समय से ही इनकी एक किडनी सिकुड़ने के कारण व्यर्थ हो चुकी थी ! अर्थात केवल एक किडनी के बल पर 15 मई 1940 से लेकर दिनांक 19 फरवरी 2024 पर्यन्त की जीवन यात्रा आपने सकुशल सम्पन्न की।
मेरी स्वयं की भी इस वृद्धावस्था के कारण कुछ धुंधली होती जा रही स्मृतियां कहती हैं कि कदाचित् सन् 1992 में दिलीप कुमार एवं महेद्र जी ने मेरे पहली बार सिल्चर आने पर आपके ही घर प्रेमतल्ला में मुझे इनके ही घर निवास हेतु लेकर गये थे जहाँ इन्होंने मुझ अंजान व्यक्ति को अत्यंत ही श्रद्धा विश्वास के साथ अपने परिवार के सदस्य रूप में स्थापित किया था।
मित्रों ! ये वो समय था जब नित्य प्रति प्रातःकाल मैं एक दो स्वयंसेवकों के साथ लगभग दो तीन चाय बागानों अथवा सुदूर ग्रामीण अंचलों में हिन्दुत्व की मशाल लेकर निकल पडता था जिसके प्रकाश से मेरा स्वयं का अस्तित्व भी प्रकाशित होता रहा।
मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि लगभग छह मास तक आपके घर मैं रहा ! लगभग नित्य ही आप और स्वर्गीय मंजू खण्डेलवाल जी मेरे कारण जल्दी उठ जातीं ! हमतीनों बाहर ड्राइंग रूम में चाय पीते ! नित्य नये नये भरपेट नाश्ता करते ! जो मंजू जी बनाती थीं ! और वे मुझे अंग्रेजी समाचार पत्र के समाचार सुनाते ! अद्भुत थे वे दिन भी ! देर रात मैं आता ! चाहे कितना भी बजा हो आप आकर मेरे पास बैठते ! मंजू जी माँ के समान एक एक गर्म रोटी मुझे खिलातीं ! और तब मैं सिगरेट पीता था ये इनको पता था अतः रोज रात विल्स का पैकेट और दूध मेरे पास रखा मिलता।
मित्रों ! मुझे याद है कि काशी से आते समय एक बडे ट्रंक में ढेर सारी तुलसी,रुद्राक्ष,स्फटिक की मालायें,रत्न अनेक धार्मिक पुस्तकें,चन्दन मैंने रेलवे में बुक करायी थीं जो इनके ही घर आयीं जहाँ से मैं उनको लोगों को भेंट स्वरूप बांटा करता था !
मुझे स्मरण है कि लगभग तीन लाख रुपये तब मेरे पास थे जिसे मैंने इनके पास रखा था ! जिसके एवं अनेक दान दाताओं द्वारा मिलते सहयोग से धीरे-धीरे मेरे शरीर से यहाँ जो कार्य हुवे उसे तद्कालीन यहाँ के लोग भलीभांति जानते हैं।
किन्तु ये निश्चित है कि उन सभी कार्यों का पूरा श्रेय इन जैसे कुछेक महामानवों को ही जाता है ! मेरे यहाँ रहने के निर्णय पर आप और मंजू जी ने ढेर सारी आवश्यक गृह सामग्री मुझे जबर्दस्ती दी !  अपने-आप को विद्वान समझने वाले मेरा स्वयं का अस्तित्व इनके समक्ष मुझे सदैव ही बौना लगा ! उनके द्वारा सिल्चर डायर डीलर एसोसिएशन,प्रेमतल्ला पूजा कमेटी,भारत विकास परिषद,हिन्दी भवन,हिन्दी साहित्य समीति,भारत सेवाश्रम संघ, की अध्यक्षता की गयी ! आप रेडक्रास, के भी अध्यक्ष रहे ! क्लब ऑफ सिल्चर के संस्थापक, लायन्स क्लब ऑफ सिल्चर के संस्थापक अध्यक्ष,लाॅयन आई हास्पीटल के चेयरमैन,विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकारिणी अध्यक्ष पद को आपने सुशोभित किया ! राष्ट्रीय और नार्थ ईष्ट मोटर कार रैली में आपने भाग लिया ! अर्थात जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपने समाज का सदैव ही मार्गदर्शन किया।
एल एल बी,बी काॅम, जैसी तद्कालीन उच्च शिक्षा प्राप्त कर आपने कभी भी अंधविश्वासों का समर्थन नहीं किया ! आपके द्वारा लायंस क्लब के तत्वावधान में अनेकों बार निर्धन युवाओं और युवतियों का सामूहिक विवाह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ! जिसमें हिन्दू मुस्लिम आदि सभी वर्गों का आपने चयन किया था। ऐसे बहुत सारे कार्यक्रमों में आपने मुझे सदैव आमंत्रित किया।
उन नवविवाहित जोडों को सैकडों दम्पत्तियों को नूतन दाम्पत्य जीवन हेतु आपने समाज के सहयोग से सभी को आवश्यक सामग्री देकर अनुग्रहित किया! अर्थात मैं यहाँ यह कहते गर्व का अनुभव करता हूँ कि-
“अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिवेदना”॥
मित्रों ! आज उनके जाने से आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित होती है ये सत्य है किन्तु वेदना इस बात की अधिक है कि जिनकी आवश्यकता यहाँ है उनकी ही आवश्यकता वहाँ भी है ! मैं इस सत्य का साक्षी रहा हूँ कि मेरे सामने ही आपने दर्जनों निर्धन विद्यार्थियों की फीस दी ! सैकडों गरीबों को औषधियाँ दिलायीं ! आपने चार वर्ष तक प्रतिमाह मुझे भी निःशुल्क औषधि वितरण करने हेतु बहुत सारा धन दिया ! और वो भी-“गुप्त दान” के रूप में दिया ! अभी भी दिनांक 30 जनवरी को आप कलकत्ता थे आपका स्वास्थ्य बहुत ही खराब था ! अत्यधिक खांसी और ज्वर था फिर भी आपने मुझे अन्तिम बार फोन करके कहा कि-“स्वामी जी !” आप दोनों लायन्स आई हास्पीटल में बुधवार को चले जाइयेगा ! हमने बात की है आपलोगों के चेकअप की ! और इसके केवल दो दिन बाद आप लगभग मूर्छावस्था में चले गये ! मुझे अभी भी ये कहते आँखें डबडबा जाती हैं कि इतनी अधिक रुग्णावस्था में भी आप साल में तीन चार बार मेरे पास अवस्य आते थे ! मुझे अपना आध्यात्मिक गुरु मानने के कारण अंतकाल तक आपने मुझे सदैव ही सम्मान दिया ! अत्यंत ही खेद का विषय है कि कल प्रातः आपका पार्थिव शरीर वायुयान द्वारा सिल्चर आयेगा जहाँ मेहरपुर से आपकी स्वर्गारोहण यात्रा नगर के मुख्य मार्गों से होती हुई स्वर्गधाम में अनंत काल के अंतरिक्ष में भस्म होकर शिव निर्माल्य तुल्य इस धरा को पवित्र करेगी ....आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″

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