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अशोक वाटिका और मधुवन — अशोक वर्मा

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संत तुलसी दास जो कुल श्री रामचरित मानस बहुत ज्यादा पठित एवं चर्चित पंचम सोपान सुंदरकाण्ड पढ़ते सुनते एक समय मेरे मन में एक जिज्ञासा हुई, वह है दो बार फल के काम से फल खाने का जिक्र किया गया है। दो जगहों पर एक लंका के अशोक वाटिका में, दूसरा मधुवन में, जिसका अधिकारी राजा सुग्रीव थे।
श्री हनुमानजी सीता माता को राम विरह से बढ़ता अग्नि प्रज्ज्वलित कर मृत्यु वरण करने की इच्छा से त्रिजटा को अनुरोध करती है तब रात को अनल न मिलने का बहाना कर वह जाती है । तब श्रीराम चंद्रजी ने जो अंगुठी उन्हें दिया था वही अंगुठी सीता जी के सामने पेड़ से गिराते हैं।
परिचय पर्व और संवादादि के बाद जानकीजी हनुमानजी से उनके छोटे कद को देख संदिग्ध होती हैं, तब हनुमानजी अपना विशाल रुप दिखाते हैं। उन्हें तो अष्ट सिद्धि प्राप्त हुई थी। माता सीता आश्वस्त होती हैं। हनुमान ने तो विशाल आकार धारण किया, पर अपना पराक्रम नहीं दिखाया तो उनके मन में एक उपाय सूझा। उन्होंने कहा माता मुझे बहुत भूख लगी है, फलों को देख क्षुधावृत्ति करना चाहता है, यदि आप अनुमति देंगी तो। सीताजी ने रक्षकों के बारे में बतायी कि वे बलशाली हैं, पर हनुमानजी जो श्रीरामजी का दूत है, अनन्य भक्त, महाबली हैं जो बचपन में ही सूर्य को निगल लिया, उसे काहे का डर? तो उन्होंने मातृ उपदेश प्राप्त किया रघुपति चरण हृदय धरि’ जाओ और मधुर फल खा लो।
श्री हनुमानजी फल खाने लगे वृक्ष तोड़ने लगे। उनक तो अपना पराक्रम दिखाना था। रक्षक लोग मना करेंगे, बाधा देंगे ही। भौतिक बाधा जब काम नहीं आया तो वे एकक रूप से सामूहिक रूप से उनपर टूट पड़े। हनुमानजी कुछ को मृत्यु के घाट पहुँचा दिये, कुछ प्रहार से काहिल हो चिल्लाते हुए राजा रावण के पास नालिश करने दे दी। रावण क्षुब्ध हुए और पुत्र अक्षय कुमार को ‘वानर’ को पकड़ लाने का आदेश दिया।
अक्षय कुमार परास्त हुआ और मारा गया।
इंद्रजीत ब्रम्हास्त्र से हनुमानजी को बांध कर लाया और लंका दहन की बात सभी जानते हैं। यहाँ एक बात उल्लेख करने की उत्सुकता हो रही है कि युद्ध न करने का सुझाव को ठुकराने के बाद रावण ने जब उन्हें मारने का आदेश दिया तो विभीषण नीति का पाठ सुझाया, दूत की हत्या नहीं की जाती। सुझाव आया पूंछ बानर को ज्यादा प्यारा होता है। उसी को तेल में भीगे कपड़ों से बांध कर आग लगा तो पूँछहीन हो जाएगा। हनुमानजी अपना पूँछ को बढ़ाते गये, साथ ही साथ उनका आकार भी विशाल होता गया।
महाभारत में श्रीकृष्ण ने कौरवों को जब संग्राम न करने की सलाह दी तो दूर्योधन ने बंदी बनाना चाहा तो श्रीकृष्ण ने अपना विशाल रूप धारण किये थे। हनुमान जी शंकर अवतार माने जाते हैं। हनुमान रूपी शंकर रावण को सचेत करने के लिए विशाल रुप दिखाये थे। उलट पुलट कर लंका नगरी को जलाया, फिर पूँछ बुझाकर विश्राम लेकर हनुमान जी ने माता सीता के आगे ठाड़ हुए। सीता जी को सब पता चल गया था। हनुमानजी के पराक्रम का बखान सुरक्षा में नियुक्त सैनिकों से सुन रही थी। उनकी व्याकुलता, इनकी बुद्धिमता से समझ रही थी छोटे कद के बानर को देख मन में जो संदेह हुआ था, वह भ्रम था। अकेला हनुमान ने रावण का राजधानी को राख कर दिया और कोई कुछ नहीं कर पाया। सीताजी के ‘चूडामणि’ लेकर हनुमान रवाना होने से पहले इतनी जोर से ध्वनि निकाला जिससे गर्भवती निशिचर नारियो का गर्भस्राव हो गया। अर्थ यह भी लगाया जा सकता, भावी राम विद्वेषी राक्षसों को जन्म से पहले ही खत्म कर दिया। समुद्र लांघ क इस पार आये जब अपनी बानरी भाषा में किलकिलाए। उनकी किलकिलाहट सुनते सभी समझ गये हनुमान जी सीता जी को संज्ञान मिल गया। हमारी चिन्ता दूर हुई। लगता नया जन्म हुआ। हम आश्वस्त हुए। सब बानर प्रसन्न हो गये। उनका तेज बढ़ गया। जैसे के भोग रहे थे। उससे मुक्ति मिल गयी।
माहनन्द में बानरों का समूह लौटे श्रीरामी के पास। इस बार उन्हें भी भूख लगी। भूख मिटाने के लिए अंगदजी वे राजपुत्र है, को साथ लेकर ‘मधुवन’ रखवारे, जिनके दायित्व हैं देखभाल की वे भागते रहे। मना करने लगे तो उन्हें ताड़ना किया गया। मुष्टि प्रहार किया गया। बेचारे भागते भागते सुग्रीव के पास जाकर सब बताया। राजा सुग्रीव समझ गये। जिस कारण से जूथको भेजा गया था। वे अपने उद्देश्य में सफल निश्चित रुप से हो गये होंगे। सुग्रीव को प्रसन्नता हुई। अपने पार्षदों के साथ उन्हें अगुवाई करने आगे बढ़ आये।
अशोक वाटिका को हनुमानजी ने उजाड़ा, नगरी जलाई, रावण को अपना पराक्रम दिखाया, सीताजी का चूडामणि के साथ संवाद लेकर आये। और मधुवन के फलों को केवल बानरों ने खाया। पेड़ सलामत रहे। यहाँ समाज सहित राजा सुग्रीव आये मिलने, पूछे कैसे क्या हुआ?
(शिलचर, असम निवासी लेखक शिक्षाविद, साहित्यकार और बालार्क प्रकाशन के प्रतिष्ठित प्रकाशक हैं।)
अशोक वर्मा, वरिष्ठ साहित्यकार

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