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असम के वीरों ने केवल पूर्वोत्तर ही नहीं बल्कि तिब्बत और चाइना की भी बर्बर आक्रांताओं से रक्षा की – डॉ कृष्ण गोपाल

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गुवाहाटी 24 अप्रैल: असम के वीरों ने केवल पूर्वोत्तर ही नहीं बल्कि तिब्बत और चाइना की भी बार-बार बर्बर आक्रांताओं से रक्षा की। 1205 में बख्तियार खिलजी से शुरू करके औरंगजेब तक 17 -18 बार बर्बर आक्रमणकारियों से असम सहित पूरे पूर्वोत्तर की रक्षा की। जिसके कारण वह तिब्बत और चाइना की तरफ इस्लाम का प्रचार नहीं कर सके। उपरोक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सर कार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल जी ने इतिहास संकलन समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहीं। ‌गौहाटी संघ मुख्यालय सुदर्शनालय के सभाकक्ष में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अपने ऐतिहासिक वक्तव्य में डॉ कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि बर्बर जातियां सिविलाइज्ड जातियों को समाप्त कर देती है। ग्रीक, रोमन, पर्शियन और मिस्र आदि सभ्यताओं को जिन्होंने समाप्त कर दिया, वे बर्बर, क्रूर और अशिक्षित जातियां थी। लूटने मारने की जिनकी प्रवृत्ति होती है वे जल्दी इकट्ठा हो जाते हैं।‌ सिविलाइज्ड लोग लड़ने में अकुशल होते हैं।

इतिहास संकलन समिति ने प्राचीन कामरूप के महा प्रतापी राजा पृथु के पराक्रम गाथा व प्रासंगिकता पर वक्तृत्व अनुष्ठान का आयोजन किया
मुसलमानों के आने से पहले कितने आक्रमण हुए भारत पर किंतु सभी ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता को अपना लिया। बिना किसी दबाव, भय और युद्ध के आक्रमणकारी यहां की संस्कृति में समरस हो गए। ऐसा इतिहास और कहीं नहीं मिलता। लेकिन इस विषय पर कोई पीएचडी नहीं मिलेगी।
पूरे देश में यह बात स्थापित करने की कोशिश की गई कि भारत एक राष्ट्र नहीं है राष्ट्रों का समूह है। 1-1 भाषा एक नेशन है, देश में भ्रम फैलाने की कोशिश की गई। भारत में होने वाली अच्छी घटनाओं को छुपाया गया जिससे यहां के नागरिकों में स्वाभिमान का भाव उत्पन्न ना हो। यहां के लोगों ने इतिहास नहीं लिखा, हम बाहर के लिखे लोगों का इतिहास पढ़ रहे हैं। विजेता जब हारे हुए का इतिहास लिखता है तो उसकी कमजोरियों का ही वर्णन करता है, अच्छाइयों का नहीं। यदुनाथ सरकार ने छत्रपति शिवाजी पर पुस्तक लिखी तब लोगों ने उनके बारे में जाना। विजयनगर साम्राज्य 300 साल चला लेकिन उसका इतिहास नहीं मिलेगा।


बख्तियार खिलजी ने 1205 में असम के ऊपर आक्रमण किया उसकी इच्छा थी इधर से तिब्बत चीन में इस्लाम फैलाया जाए वह एक पूर्व सैनिक था कुतुबुद्दीन ऐबक की सेना में काम नहीं मिला तो मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में एक सूबेदार के अंतर्गत एक टुकड़ी में काम शुरू किया जो धीरे-धीरे बड़ी हो गई। उसने बिहार और बंगाल पर आक्रमण करके उसे जीत लिया। मंदिरों को तोड़ा, संपत्ति लूटा और कत्लेआम किया। कूल बख्तियार खिलजी ने बिहार में 3-3 विश्वविद्यालय जला दिए, उसे केवल लूटपाट से संतोष नहीं हुआ, उसका संकल्प था इस्लाम का प्रसार।


मोहम्मद बिन कासिम से शुरू हुआ सिलसिला चल रहा था। वे लूटपाट करके जाते नहीं थे, यहां इस्लाम को स्थापित करने का काम करते थे। बड़े-बड़े मंदिरों की समृद्धि, ऐश्वर्य और धन संपत्ति देखकर उन्होंने कहा कि हमें अल्लाह का आदेश है, इन्हें तोड़ना है। हम बुत परस्त नहीं है, हम बुतशिकन है। हमारा काम दारुल हरब को दारुल इस्लाम बनाना है।

जब बख्तियार खिलजी असम पर आक्रमण करने के लिए विशाल सेना लेकर आया तो किसानों की फसलें नष्ट हुई। गांव वालों ने उसका विरोध किया, गांव वालों से संघर्ष हुआ। उस समय प्राचीन कामरूप के महा प्रतापी राजा पृथु ने परिस्थिति को समझा और उन्होंने अनुभव किया की यह बिहार बंगाल को ध्वस्त करता हुआ आया है। इसे नहीं रोका गया तो पूरे पूर्वोत्तर का नाश करते हुए ये तिब्बत और चाइना जाएगा। उन्होंने 40 45 हजार सैनिकों को इकट्ठा किया और पीछे से खिलजी को घेर लिया। उसमें ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़ा ब्रीज था, जिससे पार करके खिलजी आया था। इन लोगों ने उस ब्रिज को तोड़ दिया ताकि वह वापस भागने न पाए। युद्ध हुआ और बख्तियार खिलजी की पूरी सेना का खात्मा हुआ, किसी प्रकार 100 सैनिकों के साथ नदी पार करके जान बचाकर खिलजी भागा किंतु वापस जाकर घायल खिलजी की मृत्यु हो गई। इस युद्ध में पूरा असम एक होकर लड़ा। आपस में कोई झगड़ा नहीं था, देश रक्षा के लिए लोग एक जुट हो गए नहीं तो पूर्वोत्तर के साथ ही तिब्बत और चीन का क्या होता? असम के बहादुर लोगों का क्रेडिट है, उन्होंने बड़े संकट से पूर्वोत्तर सहित तिब्बत और चीन को भी बचाया। इस पर कोई पीएचडी नहीं, कुछ नहीं पढ़ाया जाता।

बख्तियार खिलजी से औरंगजेब तक 17-18  आक्रमण असम पर हुए। औरंगजेब के सेनापति राम सिंह के साथ लचित बरफुकन का अंतिम युद्ध हुआ। असम की सेना ने बड़ी रणनीति बनाई और राम सिंह की सेना को नदी पार करने नहीं दिया और खुद भी नदी के पार नहीं गए चार पांच साल लड़ाई चली 200 ढाई सौ किलोमीटर नदी में 30- 40 हजार नांव से लचित की सेना लड़ती रही। औरंगजेब की सेना को घुसने नहीं दिया। बेमेल युद्ध था, औरंगजेब की विशाल और समृद्ध सेना का असम की छोटी सेना ने मुकाबला किया और जीता। असम के गवर्नर एके सिन्हा ने लाचित को पढ़ा और तब एनडीए ट्रेनिंग सेंटर में लाचित की मूर्ति लगाई गई और उसके नाम पर पुरस्कार प्रारंभ हुआ।

आर्थिक इतिहास लिखने वाले एक इतिहासकार ने लिखा अंग्रेजों के आने से पहले दुनिया में भारत का आर्थिक योगदान 27 से 34% तक था किंतु अंग्रेजों के भारत छोड़कर जाने के समय यह दो प्रतिशत हो गया था। अंग्रेजों ने भारत की समृद्धि के बारे में कुछ नहीं लिखा। भारत को गरीब, कंगाल और अशिक्षित बताया जबकि उनके आने से पहले भारत में साक्षरता 70% थी, अंग्रेजों ने इसे समाप्त करके 5% पर पहुंचा दिया। डॉ कृष्ण गोपाल जी ने अपने लंबे सारगर्भित वक्तव्य में इतिहास की सच्चाई यों को लोगों के सामने रखा और विदेशी आक्रांताओं के महिमामंडन करने वाले इतिहासकारों की पोल खोली। उनके ऐतिहासिक वक्तव्य से यह पता चलता है कि किस प्रकार भारत के स्वाभिमान और मान सम्मान को इतिहासकारों ने नीचा दिखाया है।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन तथा भारत माता और महाराजा पृथु के चित्र पर पुष्प अर्पित करके किया गया। मंचासीन अतिथियों को असमिया गमछे से सम्मानित किया गया। मंचासीन अतिथियों में डॉ कृष्ण गोपाल जी के साथ प्रांत संघचालक डॉ भुपेश चंद्र शर्मा, सत्राधिकारी जनार्दन देव गोस्वामी तथा इतिहास संकलन समिति के उपसभापति डॉक्टर निरंजन कलिता उपस्थित थे  इतिहास संकलन समिति के महासचिव डॉ शुभ्रजीत चौधरी ने संचालन का दायित्व समिति के युवा इतिहास प्रमुख डॉक्टर रक्तिम को प्रदान किया। समिति के संगठन मंत्री हिमंत धिंग मजूमदार ने अपने प्रस्तावित वक्तव्य में कार्यक्रम के उद्देश्य की व्याख्या की। गायक कलाकार सुभाष नाथ ने डॉक्टर भूपेन हजारिका का गीत गाकर सबको प्रभावित किया, उन्हें मंच पर सम्मानित किया गया। उपसभापति डॉक्टर निरंजन कलिता ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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