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असम विधानसभा चुनाव: जीत के लिए बीजेपी के सामने 10 बड़ी चुनौतियां

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नॉर्थ-ईस्ट में अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने के लिए असम विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए बहुत अहम है. राज्य के विधानसभा चुनाव में जीत के साथ सत्ता में वापसी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है.

हालांकि बीजेपी अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है और पार्टी का दावा है कि वह राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से 100 सीटों पर जीत दर्ज करके फिर से सरकार बनाएगी.

असम विधानसभा चुनावों को लेकर अब तक एक बड़ा चुनावी सर्वे सामने आया है. ABP न्यूज और CVoter के ऑपिनियन पोल के अनुसार राज्य में बीजेपी असम गण परिषद के साथ मिलकर बहुमत प्राप्त करेगी. हालांकि इस ऑपिनियन पोल के बाद हालात काफी बदले हैं.

बीजेपी नेताओं का कहना है कि राज्य के विधानसभा चुनाव में वेलफेयर स्कीम उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है. इसके अलावा कांग्रेस के AIUDF के साथ गठबंधन करने पर चुनावों में ध्रुवीकरण होने की संभावना है.

लेकिन असम विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सामने 10 बड़ी चुनौतियां हैं. हालांकि हार और जीत इस बात पर निर्भर करती है कि बीजेपी इन मुद्दों को लेकर किस तरह से आगे बढ़ेगी, साथ ही कांग्रेस इन मुद्दों का कितना फायदा उठा सकती है.

कांग्रेस का महागठबंधन
CVoter के ऑपिनियन पोल के बाद, राज्य में नए राजनीतिक समीकरण बने हैं. विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस ने बदरुद्दीन अजमल की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, आंचलिक गण मोर्चा, सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई-एमल के साथ गठबंधन किया है.

ABP CVoter के ऑपिनियन पोल में बीजेपी को 43 प्रतिशत वोट शेयर मिलने का अनुमान है, वहीं 35 प्रतिशत वोट शेयर कांग्रेस और 8 प्रतिशत AIUDF को मिलने का अनुमान है. ऐसे में कांग्रेस और AIUDF के साथ आने से गठबंधन के वोटर शेयर में बढ़ोत्तरी होगी.

हालांकि गठबंधन के वोट शेयर में वृद्धि होने से भी कांग्रेस की राह इतनी आसान नहीं होने वाली है. क्योंकि एनडीए को उम्मीद है कि कांग्रेस के AIUDF के साथ गठबंधन करने पर हिन्दू वोटों को ध्रुवीकरण होगा.

लेकिन फिर भी राज्य में गठबंधन के बाद कांग्रेस की स्थिति मजबूत होगी. क्योंकि 2016 में AIUDF में वोटों का विभाजन होने से कांग्रेस को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था.

उप मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा के बयान ने बीजेपी के इरादों को जाहिर कर दिया है. हेमंत बिस्वा का कहना है कि मियां मुस्लिम या बंगाली मुस्लिम कभी बीजेपी को वोट नहीं करते हैं. बिस्वा के इस बयान से चुनाव में ध्रुवीकरण स्पष्ट रूप से होगा.

वहीं बीजेपी के मुद्दों से अलग कांग्रेस का फोकस असम में बड़े कॉर्पोरेट्स को दिए जाने वाले संरक्षण पर होगा, खासतौर पर राज्य में गुजरात के उद्योगपति अडानी की बढ़ती पैठ. इसे लेकर कांग्रेस ने अपना चुनावी अभियान भी शुरू कर दिया है जिसका शीर्षक है ‘’असम बचाओ’’ जिसमें कांग्रेस ने बीजेपी की सरकार पर राज्य को बाहरी लोगों को बेचने का आरोप लगाया है और वीडियो के जरिए लोगों को बताने की कोशिश की है कि असम में क्या गलत हो रहा है.

बेरोजगारी
CVoter के सर्वे के मुताबिक राज्य में 24.6 प्रतिशत मतदाता बेरोजगार हैं, इसलिए बेरोजगारी चुनाव में बड़ा मुद्दा रहेगा. असम में बेरोजगारी का यह आंकड़ा केरल और तमिलनाडु के ऑपिनियन पोल से भी ज्यादा है. वहीं पश्चिम बंगाल के मुकाबले थोड़ा कम है. लेकिन बंगाल में बेरोजगार की समस्या के लिए बीजेपी तृणमूल कांग्रेस की सरकार को जिम्मेदार ठहराती है. हालांकि बेरोजगारी और नौकरी की समस्या असम में एक बड़ा चुनावी मुद्दा रहेगा, जो कि बीजेपी के लिए परेशानी खड़ा कर सकता है.

असम में बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय दर के मुकाबले ज्यादा है और कांग्रेस इस बात को ध्यान में रखते हुए चुनावी कैंपेन में इसे जोर शोर से उठाएगी.

हालांकि बीजेपी ने राज्य में अर्थव्यवस्था की जरूरतों पर जोर दिया है और पार्टी का कहना है कि इसके लिए जरूरी है कि राज्य और केंद्र में बीजेपी की सरकार रहे.

बढ़ती महंगाई
बढ़ती महंगाई बीजेपी के लिए चिंता की सबसे बड़ी वजह है और इसका सीधा असर चुनावों के नतीजों पर पड़ेगा.

CVoter के सर्वे के अनुसार राज्य के 24.2 प्रतिशत मतदाता बढ़ती महंगाई को बड़ा चुनावी मुद्दा मानते हैं. वहीं पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों के ऑपिनियन पोल में महंगाई का यह आंकड़ा 10 प्रतिशत से कम है. अगर ऐसा है तो महंगाई असम में बड़ा चुनावी मुद्दा होगा.

नागरिकता संशोधन कानून
राज्य में नागरिकता संशोधन कानून एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि राज्य की एक बड़ी आबादी को लगता है कि CAA की वजह से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की जाएगी. इससे पहले असम में CAA को लेकर काफी विरोध-प्रदर्शन हो चुके हैं.

केंद्र सरकार ने कहा है कि कोरोना महामारी की वजह से CAA को लागू नहीं किया जा सका है लेकिन हाल ही में बंगाल में गृहमंत्री अमित शाह ने कोविड की टीकाकरण की प्रक्रिया पूर्ण होने पर CAA को लागू करने की बात कही है. अगर नागरिकता संशोधन कानून का मुद्दा चुनावी में हावी रहा तो असमी हिन्दू मतदाता बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

नए राजनीतिक दल
असम में क्षेत्रीय दलों के अभाव की बातों को ध्यान में रखते हुए राज्य में कई क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ है. इनमें असम जातिय परिषद, राजियोर दल और आंचलिक गण परिषद मोर्चा शामिल हैं. असम जातिय परिषद का गठन ऑल असम स्टूडेन्ट्स ने किया है, जो कि राज्य में पिछले 4 दशकों से असमीय जातिय राष्ट्रवाद पर आवाज उठाता रहा है.

असम गण परिषद जिसका चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन है. इस ध्यान में रखते हुए AASU ने एक नया दल बनाने का फैसला किया है. राजियोर दल और उसके नेता एक्टिविस्ट अखिल गोगोई का काफी प्रभाव है इसलिए दोनों पार्टियों ने एक नया गठबंधन बनाने का फैसला लिया है।

वहीं दूसरी ओर आंचलिक गण मोर्चा ने कांग्रेस-AIUDF और लेफ्ट के साथ गठबंधन किया है.

गुवाहाटी के राजनीतिक विश्लेषक राजन पांडेय के अनुसार इस चुनाव में नए राजनीतिक दलों का प्रभाव बढ़ सकता है अगर वे कांग्रेस के साथ सूझबूझ और समझदारी से काम लें.

असम गण परिषद का कम होता प्रभाव
नए राजनीतिक दलों के उदय होने से राज्य में असम गण परिषद का प्रभाव कम होता नजर आ रहा है. असम गण परिषद को राज्य में जातीय राष्ट्रवाद को आगे रखने के लिए जाना जाता है.

कई चुनावी पर्यवेक्षकों का मानना है कि असम गण परिषद राज्य में एनडीए की मजबूत साझेदार है और इसलिए बीजेपी इसे अपने पक्ष में रख रही है.

चुनाव विश्लेषक राजन पांडेय के मुताबिक जिन सीटों पर असम गण परिषद कांग्रेस के सामने चुनाव लड़ रही है, वहां बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है.

बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट की अनदेखी
असम के बोडोलैंड टैरिटोरियल क्षेत्र में बीजेपी ने एक रोमांचक लेकिन जोखिम भरा राजनीतिक प्रयोग किया है. हाल ही में हुए बीटीसी चुनावों में पार्टी ने अपने पुराने राजनीतिक साझेदार बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के बजाय UPPL को समर्थन दिया था.

इस चुनावी समीकरण पर बीपीएफ के मुखिया हगरामा मोहीलारी ने बीजेपी पर सत्ता में रहकर धोखा देने का आरोप लगाया था. ऐसे में संभावना है कि मोहीलारी कांग्रेस गठबंधन या असम जातिय परिषद-राजियोर दल के साथ गठबंधन कर सकते हैं.

असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का बोडोलैंड टैरिटोरियल क्षेत्र में गैर बोडो मतों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जबकि साथ ही बीपीएफ के साथ सौदेबाजी की कोशिश भी हो रही है.

चाय बागान के मजदूर
केंद्रीय बजट में सरकार ने पश्चिम बंगाल और असम के चाय बगान में काम करने वाले मजदूरों के लिए 1 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी. राज्य सरकार ने हाल ही में चाय बगान के 7 लाख मजदूरों के खातों में करीब 3 हजार रूपए की राशि ट्रांसफर की है। हालांकि मजदूरों के अलग-अलग प्रतिनिधियों ने इस राशि को अपर्याप्त बताया है और वेतन में 167 से 351.33 रुपए प्रतिदिन करने की मांग की है.

बीजेपी ने 2016 के चुनावी कैंपेन में इसका वादा किया था लेकिन मजदूरों के वेतन में सिर्फ 30 रुपए की बढ़ोत्तरी हुई. राज्य सरकार ने चुनावी आचार संहिता लागू होने से पहले आंशिक बढ़ोत्तरी देने की बात कही है. बीजेपी को उम्मीद है कि चाय बगान के मजदूरों का वोट फिर से उन्हें ही मिलेगा.

दोहरा नेतृत्व: सोनोवाल और बिस्वा
बीजेपी के लिए एक और समस्या यह है कि राज्य में पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और हेमंत बिस्वा शर्मा को लेकर दोहरा नेतृत्व है. हालांकि दोनों नेताओं के संबंध सौहार्द पूर्ण रहे हैं लेकिन कभी-कभी हेमंत बिस्वा के बयानों से ऐसा लगता है कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे.

वहीं कांग्रेस ने असम में बीजेपी के दोहरे नेतृत्व की आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ा है और इसे एक डबल इंजन की ट्रेन कहा है.

चुनाव विरोधी लहर
ऐसा कहा जा रहा है कि राज्य की कई सीटों पर जनता बीजेपी विधायकों के खिलाफ है. CVoter के सर्वे के अनुसार करीब 29 प्रतिशत मतदाताओं का कहना है कि वे स्थानीय बीजेपी के विधायकों के कार्यों से संतुष्ठ नहीं हैं.

इस बात को ध्यान में रखते हुए बीजेपी कुछ सीटिंग विधायकों के टिकट काट सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी लगभग 15 विधायकों को टिकट देने से इनकार कर सकती है, साथ ही यह संख्या बढ़ भी सकती है.

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