शिलचर, 23 मई: शिलचर स्थित प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थान असम विश्वविद्यालय को असम आंदोलन की देन बताने पर बंगला साहित्य सभा, असम के महासचिव प्रशांत चक्रवर्ती छात्र संगठन AKSA (All Cachar Karimganj Hailakandi Students’ Association) के निशाने पर आ गए हैं। संगठन ने प्रशांत के बयान को इतिहास की विकृति बताते हुए सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की मांग की है।
AKSA के वरिष्ठ सलाहकार रूपम नंदी पुरकायस्थ ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर प्रशांत चक्रवर्ती माफी नहीं मांगते हैं तो उन्हें भविष्य में बराक घाटी में घुसने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने कहा, “शिलचर विश्वविद्यालय की स्थापना बराक घाटी के लोगों के लंबे संघर्ष का परिणाम है, न कि असम आंदोलन का।”
प्रशांत चक्रवर्ती ने हाल ही में एक सभा में विश्वविद्यालय की स्थापना को असम आंदोलन की उपज बताया था। इसके बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए रूपम नंदी ने कहा, “इतिहास को जानबूझकर तोड़ा गया है। बराक घाटी के लोगों की भावना के साथ खिलवाड़ हुआ है, और यह अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
रूपम नंदी ने शिलचर प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि AKSA की स्थापना 15 मई 1983 को ए.के. चांद लॉ कॉलेज में हुई थी। उस समय संगठन का नाम All Cachar Students Association था, जो बाद में करिमगंज और हैलाकांदी के छात्र संगठनों के साथ मिलकर All Cachar Karimganj Hailakandi Students’ Association बना।
उन्होंने कहा, “AKSA के नेतृत्व में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए दस वर्षों तक आंदोलन चला। इस आंदोलन में छात्र, युवा, श्रमिक, किसान, रिक्शा चालक और आम जनता ने हिस्सा लिया। उस समय ABSU के प्रमुख उपेन्द्रनाथ ब्रह्म ने भी आंदोलन को खुलकर समर्थन दिया था, जिसे बराक घाटी कभी भूल नहीं सकती।”
AKSA के अनुसार, विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए शुरू से ही अखिल असम छात्र संघ (ASU) और असम गण परिषद (AGP) ने तीव्र विरोध किया। 1994 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव शिलान्यास करने शिलचर आए थे, तब ब्रह्मपुत्र घाटी के एक उग्र छात्र संगठन के दबाव में कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।
रूपम ने कहा, “असम विश्वविद्यालय बिना शिलान्यास के स्थापित होने वाला देश का इकलौता विश्वविद्यालय है, और यह बराकवासियों के आत्मबल का प्रतीक है।”
रूपम नंदी ने कहा कि विश्वविद्यालय के पहले कुलपति प्रो. जयंत कुमार भट्टाचार्य थे और कुछ साल पहले प्रो. सुबीर कर ने विश्वविद्यालय के इतिहास पर एक पुस्तक लिखी थी, लेकिन प्रशासनिक हस्तक्षेप के कारण वह प्रकाशित नहीं हो सकी। उन्होंने वर्तमान कुलपति राजीव मोहन पंत से अनुरोध किया कि उस पुस्तक को सार्वजनिक किया जाए ताकि नई पीढ़ी असम विश्वविद्यालय की वास्तविक संघर्षगाथा जान सके।
इस पत्रकार सम्मेलन में AKSA के अन्य सलाहकार बिश्वजीत देव, जयश्री नाथ, गौतम राय, अफसाना सदीओल, स्वीटी राय, बर्नाली पाल, वर्षा राय और चंपा दास भी उपस्थित थीं।
AKSA का स्पष्ट संदेश है कि असम विश्वविद्यालय केवल असम आंदोलन का परिणाम नहीं है, बल्कि यह बराक घाटी के लोगों के दशकों के संघर्ष, बलिदान और आत्मसम्मान की पहचान है। संगठन ने इतिहास को सही संदर्भ में प्रस्तुत करने की मांग करते हुए भविष्य में किसी भी प्रकार की ऐतिहासिक विकृति को बर्दाश्त न करने की चेतावनी दी है।





















