प्रे.स. शिलचर, 7 फरवरी: असम विश्वविद्यालय परिसर और आसपास के इलाकों में बढ़ते अवैध शिकार और वनों की कटाई की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए, विश्वविद्यालय के जीवविज्ञान और पर्यावरण विज्ञान विभाग ने आज दोपहर 3 बजे विभागीय भवन के सामने एक विशेष जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया।
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Download File: https://preranabharati.com/wp-content/uploads/2025/02/VID-20250207-WA0012.mp4?_=2बढ़ते अवैध शिकार और वनों की कटाई पर चिंता
सूत्रों के अनुसार, कुछ असामाजिक तत्व जंगलों में निगरानी की कमी का फायदा उठाकर अवैध रूप से प्रवेश कर रहे हैं। ये लोग हाथ से बने आग्नेयास्त्रों का इस्तेमाल कर दुर्लभ वन्यजीवों का शिकार कर रहे हैं। इसके अलावा, पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण चाम पेड़ सहित कई अन्य पेड़ों को अवैध रूप से काटा जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है।
बैठक में उठाया गया गंभीर मुद्दा
हाल ही में विभाग द्वारा आयोजित एक बैठक में इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा हुई, जिसमें विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, शोधकर्ता और छात्र उपस्थित थे। बैठक में सभी ने स्थानीय जैव विविधता पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव को लेकर अपनी चिंता जताई और इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया।
संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता
इस संकट से निपटने के लिए विभाग ने एक सामूहिक पहल का आह्वान किया है, जिसमें स्थानीय ग्रामीणों, चाय बागान के प्रतिनिधियों और वन विभाग के अधिकारियों को शामिल किया जाएगा। इस अभियान का उद्देश्य क्षेत्र में वनों और पर्यावरण की रक्षा के लिए निगरानी को सख्त बनाना और लोगों में जागरूकता बढ़ाना है।
कार्यक्रम में जागरूकता और समाधान पर जोर
आज के जागरूकता कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सभी संबंधित पक्षों को एक मंच पर लाकर इस गंभीर समस्या पर विचार-विमर्श करना और प्रभावी समाधान निकालना है। इस दौरान विशेषज्ञों ने वन्यजीव संरक्षण और अवैध कटाई रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया।
विश्वविद्यालय के ईपीएस (पर्यावरणीय और सतत अध्ययन) संकाय के डीन प्रो. पी. चौधरी और जीवविज्ञान एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग की प्रमुख प्रो. अपराजिता दे ने सभी जागरूक नागरिकों से इस कार्यक्रम में भाग लेने और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अपील की।
इस आयोजन का संचालन विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापक डा. पन्ना देव ने किया, जबकि कार्यक्रम का समापन डा. शुभन दत्तगुप्ता के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
(प्रेरणा भारती दैनिक के लिए विशेष रिपोर्ट)