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असम विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय स्थिरता पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का समापन

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शिवकुमार, शिलचर, 1 अक्टूबर: असम विश्वविद्यालय द्वारा कई संगठनों के सहयोग से आयोजित पर्वतीय क्षेत्र और पहाड़ी परिदृश्य में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय स्थिरता पर केंद्रित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आज समापन हुआ। इस सम्मेलन का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर चर्चा करना और इससे निपटने के लिए रणनीतियों का निर्माण करना था।
आईसीएसएसआर द्वारा प्रायोजित यह सम्मेलन 30 सितंबर को प्रारंभ हुआ था और आज 1 अक्टूबर को सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। सम्मेलन के आयोजन में असम विश्वविद्यालय, भारत विकास परिषद नॉर्थ ईस्ट, एनआईएचई, आईसीआर-एटीएआरआई और बराक वैली के विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों का सहयोग प्राप्त हुआ था। इस दौरान विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, पर्यावरणीय चुनौतियों और उनके समाधान पर अपने विचार साझा किए।
समापन सत्र में प्रोफेसर निरंजन रॉय, प्रोफेसर अशोक सेन, और डॉक्टर हबीबुर रहमान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इसके अलावा, प्रोफेसर प्रेमजित सिंह, डॉक्टर सुनील डोले, और प्रोफेसर अनूप कुमार दे ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।प्रोफेसर अनूप कुमार दे ने अपने संबोधन में सम्मेलन की महत्ता पर जोर देते हुए कहा, यह सम्मेलन केवल एक मंच नहीं था, बल्कि यह हमारे लिए एक अवसर था कि हम जलवायु परिवर्तन के गंभीर मुद्दों पर चर्चा करें और वास्तविक समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाएं। जलवायु परिवर्तन ने न केवल हमारे पर्यावरण को प्रभावित किया है, बल्कि यह हमारी सामाजिक और आर्थिक संरचना को भी खतरे में डाल रहा है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सिर्फ एक क्षेत्र या समुदाय तक सीमित नहीं है; इसका दायरा वैश्विक है और हमें इसके प्रभावों का सामना करने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।उन्होंने आगे कहा,हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सम्मेलन में चर्चा किए गए विचारों और प्रस्तावों को केवल कागज तक सीमित नहीं रखा जाए, बल्कि उन्हें वास्तविकता में उतारा जाए। इसके लिए हमें सभी संबंधित पक्षों के साथ मिलकर कार्य करना होगा, जिसमें सरकारी निकाय, गैर सरकारी संगठन, शोधकर्ता और स्थानीय समुदाय शामिल हैं। आज के इस महत्वपूर्ण अवसर पर, मैं सभी उपस्थित व्यक्तियों से आग्रह करता हूँ कि हम मिलकर एक ऐसे मंच का निर्माण करें, जहाँ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर चर्चा की जा सके और ठोस कदम उठाए जा सकें।प्रोफेसर दे ने यह भी सुझाव दिया कि, भविष्य में इस प्रकार के सम्मेलनों का आयोजन किया जाना चाहिए ताकि हम जलवायु परिवर्तन से संबंधित समस्याओं को और गहराई से समझ सकें और समाधान के लिए नए दृष्टिकोण विकसित कर सकें। हमें अपने विचारों को साझा करने और समस्याओं के समाधान के लिए एक साथ काम करने के लिए निरंतर संवाद बनाए रखना होगा। जलवायु परिवर्तन केवल एक विज्ञान का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। हमें सभी स्तरों पर एकीकृत प्रयासों की आवश्यकता है ताकि हम एक स्थायी भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सकें।
उन्होंने सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी लोगों का धन्यवाद किया और उनके सहयोग की सराहना की। उन्होंने यह भी कहा कि, यह सम्मेलन न केवल ज्ञान का आदान-प्रदान करने का एक अवसर था, बल्कि यह हमारे लिए एकजुट होकर कार्य करने का एक आह्वान भी है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने के लिए हमें ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है, और हमें इसे तुरंत शुरू करने की आवश्यकता है।वियना से आए प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. देबोज्योति चक्रवर्ती, आईसीएआर-एटीएआरआई के निदेशक डॉ. कादिरवेल गोविंदसामी, जीबी पंत नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरनमेंट के निदेशक राजेश जोशी और अन्य विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हो रही चुनौतियों और उनके समाधानों पर गहन चर्चा की।अंत में, प्रो. निरंजन राय ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया और सम्मेलन के सफल आयोजन पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन ने पर्वतीय और पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यावरणीय स्थिरता के प्रति ठोस कार्य योजना तैयार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। यह सम्मेलन निश्चित रूप से हमें एक स्थायी और सुरक्षित पर्यावरण की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा।

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