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असम विश्वविद्यालय में दावत-ए-इफ्तार को अनुमति नहीं, छात्रों ने बताया अन्याय

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प्रे.स. शिलचर, 20 मार्च: असम विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कैंपस में दावत-ए-इफ्तार 2025 के आयोजन की अनुमति न दिए जाने से छात्र असंतुष्ट हैं। विश्वविद्यालय ने अपने निर्णय के पीछे संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का हवाला दिया, जबकि छात्रों ने इसे पक्षपातपूर्ण बताते हुए धार्मिक विश्वासों के साथ अन्याय करार दिया।

रमजान के अवसर पर विश्वविद्यालय के स्नातक, परास्नातक और शोध छात्रों ने मिलकर दावत-ए-इफ्तार 2025 का आयोजन किया था। आयोजन समिति के सदस्य और परास्नातक छात्र रेजाउल करीम आजाद चौधरी ने बताया कि पिछले दो वर्षों से इसी तरह के आयोजन बिना किसी बाधा के होते आए हैं, जिसमें विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार सहित अन्य अधिकारी भी उपस्थित रहे थे।

अनुमति में देरी और फिर इनकार

चौधरी के अनुसार, 10 मार्च को विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुमति मांगी गई, लेकिन अधिकारियों ने कुलपति और रजिस्ट्रार की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए निर्णय टाल दिया। 19 मार्च को, रजिस्ट्रार प्रदोष किरण नाथ ने आधिकारिक रूप से अनुमति देने से इनकार कर दिया और छात्रों से कुलपति के लौटने तक इंतजार करने को कहा।

“हम अपने खर्चे पर इस आयोजन को करते हैं। लेकिन प्रशासन की देरी के कारण अब इसे रद्द करना पड़ा। कुलपति अगले सप्ताह लौटेंगे, और हमारे पास कार्यक्रम आयोजित करने के लिए पर्याप्त समय नहीं रहेगा। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एकता को बढ़ावा देने का अवसर था,” चौधरी ने कहा।

छात्रों ने यह भी आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन अन्य धार्मिक आयोजनों की अनुमति देता रहा है, जबकि इफ्तार के आयोजन पर रोक लगाई गई, जिससे उनके साथ भेदभाव हुआ।

रजिस्ट्रार ने दी सफाई

रजिस्ट्रार प्रदोष किरण नाथ ने पत्रकारों से बात करते हुए स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय प्रशासन धार्मिक आयोजनों से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता और आधिकारिक रूप से किसी भी धार्मिक आयोजन को अनुमति नहीं दे सकता।

“हमने छात्रों से कार्यक्रम न करने के लिए नहीं कहा, बल्कि केवल आधिकारिक अनुमति देने से इनकार किया। वे अपने निजी स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं, लेकिन उन्हें कानून और व्यवस्था की स्थिति का ध्यान रखना होगा। संविधान हमें धार्मिक आयोजनों को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं देता,” नाथ ने कहा।

सोशल मीडिया पर बहस

छात्रों ने इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठाया, जिसके बाद बहस छिड़ गई। अधिकांश लोगों ने विश्वविद्यालय प्रशासन के फैसले की आलोचना की, जबकि कुछ ने इसे संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप बताया।

छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से अपील की है कि भविष्य में ऐसे आयोजनों को लेकर पारदर्शी नीति बनाई जाए, ताकि धार्मिक सौहार्द और एकता को बढ़ावा दिया जा सके।

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