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असम विश्वविद्यालय में संस्कृत उच्चारण पर विशेष व्याख्यान, अनुसंधान परियोजना में छात्रों की भागीदारी

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सिलचर, असम | 2 अप्रैल, बुधवार — असम विश्वविद्यालय, सिलचर के संस्कृत विभाग के अनौपचारिक संस्कृत शिक्षा केंद्र द्वारा संस्कृत उच्चारण पर केंद्रित एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अमृत विश्वविद्यालय, केरल के प्रख्यात शोधकर्ता डॉ. अनिल कुमार एस. थे, जो भारत के विभिन्न हिस्सों से संस्कृत शब्दों के उच्चारण संबंधी डेटा एकत्र करने की एक महत्वाकांक्षी परियोजना पर कार्यरत हैं।

डॉ. अनिल कुमार ने व्याख्यान के दौरान संस्कृत शब्दों के विविध उच्चारण, उनके संरक्षण और वैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि यह शोध भारतीय भाषाओं की ध्वन्यात्मक विविधता को समझने और एक समृद्ध उच्चारण मानचित्र तैयार करने में मदद करेगा। व्याख्यान के बाद सभी प्रतिभागियों ने एक सामूहिक ध्यान सत्र में भाग लिया, जो भाषा और मन के बीच संबंध को रेखांकित करता है।

केंद्र के छात्रों ने सक्रिय भागीदारी दिखाते हुए डॉ. अनिल कुमार द्वारा उपयोग किए जा रहे एक समर्पित मोबाइल ऐप के माध्यम से अपने उच्चारण डेटा को जमा किया, जिससे उनके अनुसंधान को व्यावहारिक सहयोग मिला।

कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कृत विभागाध्यक्ष (प्रभारी) डॉ. गोविंद शर्मा ने की। उन्होंने संस्कृत में शुद्ध उच्चारण की परंपरा और उसके सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि और असम विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की प्राध्यापिका डॉ. वेदपर्णा डे ने स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं द्वारा संस्कृत उच्चारण पर पड़ने वाले प्रभाव की चर्चा की और विभिन्न भाषाओं के बीच सेतु निर्माण में संस्कृत की भूमिका को रेखांकित किया।

इस व्याख्यान का आयोजन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के अनौपचारिक संस्कृत शिक्षा केंद्र द्वारा, असम विश्वविद्यालय के सहयोग से किया गया। केंद्र के समन्वयक एवं पाठ्यक्रम शिक्षक श्री कृष्ण सिन्हा ने पूरे कार्यक्रम का कुशल समन्वय किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि यह केंद्र संस्कृत में प्रमाणपत्र और डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाता है तथा कछार जिले के विभिन्न हिस्सों में कक्षाएं आयोजित करता है।

कार्यक्रम में संस्कृत भारती, त्रिपुरा प्रांत के संगठन मंत्री श्री बिक्रम बिस्वास, तथा अतिथि संकाय सदस्य डॉ. कल्लोल रॉय, डॉ. बिस्वजीत रुद्र पॉल और डॉ. भृगु राजखोवा सहित लगभग 40 प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया

इस कार्यक्रम ने न केवल संस्कृत भाषा की ध्वन्यात्मक समृद्धि को उजागर किया, बल्कि छात्रों और शिक्षकों को व्यावहारिक अनुसंधान से जोड़ते हुए भाषा अध्ययन को एक नई दिशा भी दी।

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