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असम विश्वविद्यालय में ‘समाज परिवर्तन हेतु शोध की संभावनाएँ और चुनौतियाँ’ विषय पर संवाद सत्र आयोजित

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शिलचर, 1 अप्रैल 2025: असम विश्वविद्यालय में यूनिवर्सिटी कनेक्ट हब इनिशिएटिवCIKS और NSS सेल के तत्वावधान में एवं रिसर्च एंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (RIS), दिल्ली के सहयोग से विज्ञान संकाय के पीएचडी शोधार्थियों के लिए एक इंटरैक्टिव सत्र का आयोजन किया गया। यह सत्र G20 यूनिवर्सिटी कनेक्ट प्रोग्राम का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य छात्रों को नेतृत्व, विश्लेषणात्मक और समस्या-समाधान कौशल से सुसज्जित करना है। इस कार्यक्रम के तहत असम विश्वविद्यालय ने यूथ फेस्ट 2025 (28 मार्च – 1 अप्रैल 2025) का आयोजन भी किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ माननीय कुलपति प्रो. राजीव मोहन पंत द्वारा किया गया। मुख्य वक्ताओं के रूप में नव नालंदा विश्वविद्यालय के प्रख्यात संस्कृत विद्वान प्रो. विजय कुमार कर्ण और केंद्रीय विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश के पर्यावरण, एडवेंचर, स्वास्थ्य एवं सांस्कृतिक पर्यटन केंद्र के निदेशक डॉ. संदीप कुलश्रेष्ठ ने अपने विचार साझा किए।

शोध और समाज परिवर्तन की दिशा में महत्वपूर्ण चर्चा

सत्र के दौरान प्रो. राजीव मोहन पंत ने शोधार्थियों को गहन चर्चा करने और अपने संदेहों को दूर करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने में शोध की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि शोध में रचनात्मक प्रश्न उठाना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समाज परिवर्तन में सहायक होता है।

तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. गंगाभूषण मोलंकल (प्रोफेसर, सोशल वर्क एवं एनएसएस सेल समन्वयक) और सह-अध्यक्षता डॉ. शुभदीप रॉयचौधरी (एसोसिएट प्रोफेसर, लाइफ साइंस एवं एनएसएस सेल कार्यक्रम अधिकारी) ने की।

शोध की गुणवत्ता और सामाजिक जुड़ाव पर बल

तकनीकी सत्र के दौरान वक्ताओं ने आत्मनिर्भरता, बहु-विषयक सोच, कौशल विकास और T3 सिद्धांत (समय प्रबंधन, वाणी प्रबंधन, और विचार प्रबंधन) पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इन तत्वों को अपनाकर शोध को समाज से जोड़ा जा सकता है और भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आज के दौर में “विचारों की गरीबी” देखी जा रही है, और शोधार्थियों का कर्तव्य है कि वे अपने विचारों को एक बड़े लक्ष्य के लिए दिशा प्रदान करें। एक शोधार्थी को सबसे अलग उसकी दृष्टि बनाती है, जिससे वह किस उद्देश्य से शोध कर रहा है यह तय होता है।

शोध से जुड़ी चुनौतियों पर खुली चर्चा

सत्र के दौरान शोधार्थियों ने शोध से जुड़ी कई गंभीर चुनौतियाँ उठाईं, जिनमें पशु-आधारित शोध में नैतिकता, शोध के लिए बुनियादी ढांचे की कमी, शोध प्रकाशनों का व्यावसायीकरण, वैज्ञानिक शोध के लिए वित्तीय सहायता की कमी, शोध की गुणवत्ता बनाम मात्रात्मकता, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के सतत उपयोग से जुड़े मुद्दे शामिल थे। वक्ताओं ने इन विषयों पर अपने विचार रखे और समाधान सुझाए।

सत्र का समापन पर्यावरण विज्ञान विभाग के पीएचडी शोधार्थी एवं सरीसृप जीवविज्ञानी मिस्टर बिशाल सोनार द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। अंत में, शोधार्थियों द्वारा उठाए गए मुद्दों के समाधान हेतु एक संयुक्त कार्य समिति बनाने का निर्णय लिया गया, जो विकसित भारत 2047 के लक्ष्य की ओर शोध से जुड़े विषयों पर कार्य करेगी।

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