शिलचर , 23 अप्रैल 2025:असम विश्वविद्यालय, शिलचर के सशस्त्र बल संग्रहालय को एक ऐतिहासिक विस्तार मिला है। देश के किसी भी विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित यह पहला युद्ध संग्रहालय अब तीन प्रतिष्ठित सैन्य टैंकों के साथ और भी गौरवशाली बन गया है — जिनमें एक T-55 टैंक और दो आर्मर्ड रिकवरी व्हीकल्स (ARVVTs) शामिल हैं। यह संग्रहालय न केवल उत्तर-पूर्व भारत के बराक घाटी में अपनी तरह का पहला है, बल्कि पूरे देश में विश्वविद्यालय स्तर पर एक अनूठी पहल है।
इस संग्रहालय का उद्घाटन 15 नवंबर 2022 को हुआ था, और अब यह राष्ट्रभक्ति और सैन्य धरोहर के प्रतीक रूप में और अधिक प्रभावशाली हो गया है। टैंक और वाहन, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, भारतीय सशस्त्र बलों की वीरता, समर्पण और गौरवपूर्ण इतिहास के जीवंत प्रमाण हैं।
पुणे के खड़की डिपो से शिलचर तक इन विशाल टैंकों को हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर विशेष ट्रेलरों के माध्यम से लाया गया। लगभग एक महीने तक चले इस चुनौतीपूर्ण अभियान को कुलपति प्रो. राजीव मोहन पंत और कुलाधिपति श्री अरूप रुहा (पूर्व वायु सेना प्रमुख) के दूरदर्शी नेतृत्व और अथक प्रयासों से संभव बनाया जा सका। इनकी राष्ट्रभक्ति और भारतीय सेना के प्रति सम्मान ने इस संग्रहालय को एक प्रेरणादायक स्थल बना दिया है।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि में दिल्ली स्थित सेना मुख्यालय और खड़की डिपो की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, जिन्होंने हर स्तर पर सहयोग प्रदान किया। इससे पहले ही संग्रहालय में युद्ध स्मृति चित्रों, वर्दियों, रेजिमेंटल धरोहरों, विमान मॉडलों और वीर जवानों को समर्पित प्रदर्शनों की समृद्ध श्रृंखला मौजूद थी। अब टैंकों के आगमन से यह संग्रह और भी सशक्त हुआ है।
इसके साथ ही, जबलपुर के सेंट्रल ऑर्डनेंस डिपो से भी पुराने छोटे और मझोले हथियार शीघ्र ही संग्रहालय की शोभा बढ़ाएंगे, जो भारत की रक्षा गाथा को और भी गहराई से दर्शाएंगे।
प्रो. पंत ने कहा, “यह संग्रहालय केवल असम विश्वविद्यालय की उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत के शैक्षणिक इतिहास में एक मील का पत्थर है। हर प्रदर्शनी हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और सैनिकों के बलिदान की गाथा कहती है। हम इस विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाकर गौरवान्वित हैं।”
कुलाधिपति श्री अरूप रुहा ने सैन्य समर्थन प्राप्त करने में अहम भूमिका निभाई। उनके अनुभव, समर्पण और देशभक्ति ने सुनिश्चित किया कि असम विश्वविद्यालय देश का पहला विश्वविद्यालय बने, जिसने ऐसा ऐतिहासिक संग्रहालय स्थापित किया।
38 असम राइफल्स, श्रीकोना (कछार) के कार्यालय ने भी इस प्रयास में सराहनीय सहयोग दिया। उन्होंने सौहार्दपूर्ण भाव से दो जवानों को पूरे 1000 मील की इस यात्रा के दौरान इन टैंकों के साथ सुरक्षा और सहयोग हेतु भेजा।
अब यह संग्रहालय आम जनता के लिए भी खुला है और न केवल एक शैक्षणिक केंद्र है, बल्कि एक ऐसा राष्ट्रीय स्मृति स्थल भी बन चुका है, जहाँ बीते वीरों का सम्मान किया जाता है और वर्तमान पीढ़ी में देशभक्ति की भावना जागृत होती है।




















