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आंसू
पश्चाताप से बहे,
दुख से बहे,
मगर कोई क़ीमत नहीं
शायद मेरे आंसुओं की।
बहुत बार गलतियां की
बहुत बार माफ़ी मांगी
मग़र कोई असर नहीं
शायद मेरे आंसुओं की।
जीने के लिए मकसद है,
मकसद के लिए बुलन्द है दिल,
बेख़ौफ़ आगे तक बढ़े,
यही सोच मैंने अपने
कमज़ोर आंसुओं को रोका था।
मग़र कोई दम नहीं,
मेरे आंसुओं में
ये फिर से बे मौके आ जाते हैं,
रात-रात भर मुझे तड़पाते हैं।
डॉ मधुछंदा चक्रवर्ती
फर्स्ट ग्रेड सरकारी कालेज बंगलौर




















