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आखिर कौन बनाता है भगवान के रथ? जानें रथों से जुड़े रोचक रहस्य। – अनिल मिश्र

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 जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जुलाई से शुरू हो रही है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह यात्रा धार्मिक आस्था और परंपरा का प्रतीक मानी जाती है।
 जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत इस वर्ष  27 जून से यानी शुक्रवार हो रह है। यह भव्य यात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जिसे रथ यात्रा के रूप में मनाया जाता है।
यह यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि महीनों की तैयारियों का परिणाम होती है। रथों के निर्माण में विशेष प्रकार के कारीगरों की टीम वर्षों से पारंपरिक तरीके से काम करती है। इस यात्रा के लिए तीन विशाल रथ बनाए जाते हैं, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए जिनका निर्माण खास किस्म की लकड़ियों और परंपरागत तकनीकों से किया जाता है।
—रथ  के प्रकार
इस रथ यात्रा के दौरान तीन भव्य रथ निकाले जाते हैं:
—तालध्वज रथ: भगवान बलभद्र का रथ।
—दर्पदलन रथ: देवी सुभद्रा का रथ।
—नंदीघोष रथ:  भगवान जगन्नाथ का रथ।
इन रथों का निर्माण एक पवित्र और परंपरागत प्रक्रिया है, जो किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं बल्कि सात पारंपरिक समुदायों के सहयोग से किया जाता है। इस कार्य की शुरुआत हर साल अक्षय तृतीया के दिन होती है, जब सबसे पहले लकड़ी की कटाई का शुभारंभ किया जाता है। रथों के निर्माण की यह पूरी प्रक्रिया महीनों तक चलती है और इसमें बारीकी व शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
—रथ निर्माण में भाग लेने वाले प्रमुख समुदाय।
–विश्वकर्मा (महाराणा) समुदाय: ये लोग रथ की संरचना, ऊंचाई और उसका पूरा ढांचा तैयार करते हैं। रथ का संतुलन, मजबूती और पारंपरिक डिजाइन इन्हीं की देखरेख में तय होते हैं।
–बढ़ई  समुदाय: लकड़ी काटने और जोड़ने का सारा काम ये लोग करते हैं। रथ के पहिए, धुरी, खंभे और सीढ़ियाँ बनाने में इनकी अहम भूमिका होती है।
—-कुम्हार समुदाय: ये समुदाय तीनों रथों के भारी और मजबूत पहियों का निर्माण करता है। हर रथ के लिए चार बड़े पहिए बनाए जाते हैं।
—लोहार समुदाय: रथ में लगने वाले लोहे के हिस्से जैसे कील, पट्टियाँ, जोड़ों को बनाने और उन्हें मज़बूती से लगाने का कार्य इन्हीं के जिम्मे होता है।
—दर्जी समुदाय: ये लोग रथों को ढकने वाले कपड़ों के अलावा भगवानों के वस्त्र भी तैयार करते हैं। रथों की पहचान इनके रंगीन वस्त्रों से भी होती है।
—माली समुदाय: रथों की सजावट के लिए फूलों की माला, तोरण आदि का निर्माण यही समुदाय करता है। रथों की शोभा का बड़ा हिस्सा इन्हीं की मेहनत का परिणाम होता है।
—चित्रकार समुदाय: रथों पर पारंपरिक चित्र, प्रतीक और रंगीन डिज़ाइन बनाना इनका काम होता है। हर रथ की अपनी विशेष पेंटिंग और प्रतीकात्मक सजावट होती है।
इन सात समुदायों के अलावा भी कई स्थानीय लोग, सेवक, पंडा समाज और स्वयंसेवी संगठन इस आयोजन को सफल बनाने में सहयोग करते हैं। लेकिन रथों के निर्माण में मुख्य भूमिका इन्हीं सात समुदायों की होती है।

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