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आखिर फिनलैंड की तरह हम खुश क्यों नहीं हुए ? — सुनील कुमार महला

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जीवन फूलों की सेज नहीं है। यहाँ कहीं भी संघर्ष नहीं है, तनाव हैं,कष्ट हैं, लेकिन इन संघर्षों, समूहों और उत्कंठाओं में भी जो व्यक्ति हमेशा सकारात्मक सोच और ऊर्जा से जीवन जीता है वह सहजता, धैर्य, संयम और खुशी (प्रसन्नता) से जीता है, वही वास्तविक जीवन है। असल में, जीवन के हर पल में आनंद और संतोष का अनुभव करना ही श्रेयस्कर है। महात्मा गांधी जी ने कहा था कि ‘प्रसन्नता तब होती है जब आप जो खोजते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, सब एक साथ होते हैं।’ यह ठीक है कि जब किसी व्यक्ति को कोई उपलब्धि विशेष, सफलता प्राप्त होती है तो उसे खुशी या प्रशंसा का अनुभव होता है, लेकिन यदि वास्तव में देखा जाए तो कोई उपलब्धि या विशेष स्थिति तक दर्जा ही खुशी नहीं है। ख़ुशी या ख़ुशी का भाव हमेशा अंतरमन में निहित होता है, यह (ख़ुशी) आंतरिक होता है, बाह्य नहीं। संपत्ति, पद और प्रतिष्ठा (नाम और प्रसिद्धि) या सफलता प्राप्त करना ही खुशी या प्रशंसा नहीं है, यह भी ऊपर थोड़ा हटकर है। बहुत सारी संपत्ति का नाम प्रकाशित हो सकता है, इसी तरह प्रतिष्ठा से भी हमें खुशी का पता चल सकता है, लेकिन अगर प्रतिष्ठा का भाव देखा जाए तो यह भौतिकता में तो प्रतिष्ठा नहीं है। वास्तव में, यह हमारे वैज्ञानिक और मानसिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। असल में हमारे अंदर (अंतरमन) की शांति और संतोष ही असली पुष्टि है। हाल ही में ‘विश्व छाप रिपोर्ट’ जारी हुई है। 20 मार्च 2025 को गुरुवार को यह रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमें बताया गया है कि भारत में 10 में से 4.389 पर आ गया है, जो पहले 4.054 था। निश्चित रूप से स्कोर बढ़ा है, लेकिन खुशी इतनी नहीं। इसमें संशोधित सी दस्तावेज़ हुआ है। यहां यह भी दावा किया गया है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वेलबिंग रिसर्च सेंटर ने गैलप, संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क के साथ मिलकर वर्ल्ड हैप्पीनेस डे (20 मार्च) पर वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट (डब्ल्यू एचएचआर) 2025 जारी किया है। इस रिपोर्ट में जिन 147 देशों का विश्लेषण शामिल किया गया है, उनमें भारत 118वें नंबर है। हालाँकि, यह रैंकिंग अभी भी भारत को जापान, मोज़ाम्बिक और इराक सहित कई संघर्ष-प्रभावित देशों से पीछे रखती है। पूर्व में 143वें देश में यह 126वें स्थान पर था। इसका मतलब यह है कि भारतीय लोग पिछले सागर की तुलना में अब थोड़ा सा अधिक आकर्षक बने हुए हैं। यानी विश्व में खुशहाली के मामले में भारत की रैंकिंग में कुछ सुधार तो हुआ है, लेकिन यहां ये बात है कि हमारे पड़ोसी नेपाल (92) और पाकिस्तान (109) के मामले में अमेरिका आगे हैं। क्या यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि जो पाकिस्तान कांस्टेंटवादी आर्थिक इतिहास, पुस्तक, पुस्तक और अर्थशास्त्र से सीख रहा है, वह भी हमारे देश से आगे है? रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान का प्रदर्शन भारत से बेहतर है। हैप्पीनेस स्टाक की ओर से बताया गया है कि इस बार उनका स्कोर 4.657 से 4.768 दर्ज किया गया है, लेकिन उनकी रैंकिंग 108 से 109 पर है। यहां पर बदमाशों को बताया जाता है कि अलग-अलग देशों की उपलब्धियों के आधार पर यह रैंकिंग लोगों के जीवन के आकलन के तीन साल के औसत से तैयार की जाती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस ‘ख़ुश स्कोर’ में वैराइटी का वर्णन करने के लिए रिपोर्ट में प्रति व्यक्ति विश्वास, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, सामाजिक स्थिति, जीवन जीने की स्वतंत्रता, उदारता और योग्यता जैसे छह पदों को शामिल किया जाता है, लेकिन इन छह मानदंडों में से किसी भी आधार पर चयनित रैंकिंग नहीं होती है। कंसल्टेंसी में, यहां प्रतिभागियों को यह जानकारी दी गई है कि प्रति व्यक्ति आय जैसे गणना माप पर भारत की स्थिति, पाकिस्तान से कहीं बेहतर दिखाई गई है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में वर्ष 2023 में प्रति व्यक्ति आय जहां 2,480.8 डॉलर रही, वहीं पाकिस्तान में यह 1,365.3 डॉलर के स्तर पर ही गिर गई। यहां स्किल है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2021 में पाकिस्तान की स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा (जन्म के समय) जहां 56.9 साल थी, वहीं भारत की स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा 58.1 साल थी। इसके अतिरिक्त मामले में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी स्टॉक में 2024 की रिपोर्ट में पाकिस्तान जहां 135वें नंबर पर है, वहीं भारत का स्थान 96वें नंबर पर है। आइए, अगर हम यहां ‘विश्व प्रतिष्ठा रिपोर्ट’ में टॉपर्स की लिस्ट की बात करें तो एक बार फिर फिनलैंड (लगातार आठवीं बार) नंबर 1 पर है। मित्रता है कि फ़िनलैंड ने 7.74 का प्रभावशाली औसत स्कोर हासिल किया है, जिससे विश्व स्तर पर सबसे खुशहाल राष्ट्र के रूप में अपनी मान्यता कायम है। फ़िनलैंड में एक दिन में केवल चार घंटे का सूर्य नक्षत्र है। यहां बहुत ठंड का मौसम रहता है, लेकिन बहुत बड़ी बात यह है कि इन सब के बीच फिनलैंड के लोग दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं। सूची में फिनलैंड के बाद डेनमार्क, आइसलैंड, नीदरलैंड, कोस्टा रीका, नार्वे, इजरायल, लक्जमबर्ग, मैक्सिको और स्वीडन का स्थान है। में, इन देशों ने अपने स्ट्रांग सोशल सपोर्ट सिस्टम, लीविंग और वर्क-लाइफ के प्रति उच्च मानक के कारण लगातार रिसर्च रिपोर्ट में टॉप रैंक हासिल की है। दिलचस्प बात यह है कि कोस्टा रिका और मैक्सिको ने टॉप 10 में अपनी शुरुआत की, क्रमशः 6वां और 10वां स्थान हासिल किया। वहीं दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका 24वें स्थान पर अपनी सबसे बड़ी रैंकिंग पर है, वहीं दूसरी ओर यूनाइटेड किंगडम 23वें स्थान पर है। रिपोर्ट में चीन 68वें स्थान पर रखा गया है। पाठकों को जानकारी दी गई है कि दक्षिण एशियाई देशों में म्यामांर (126वां), श्रीलंका (133वां), बांग्लादेश (134वां) में स्थान रखे गए हैं। वहीं अफगानिस्तान (147वाँ) (लगातार चौथा वर्ष) पर स्थान है। दरअसल, अफगानिस्तान को दुनिया का सबसे गरीब देश माना जाता है। देश की रैंकिंग का मुख्य कारण अफगानिस्तान की महिलाओं को आने वाले संघर्षों का सामना करना पड़ा, जिम्बाब्वे ने बताया कि उनका जीवन लगातार कठिन होता जा रहा है। अन्य देशों में क्रमशः सिएरा लियोन (146वाँ), लेबनान (145वाँ), मलावी (144वाँ) और जिम्बाब्वे (143वाँ) का सबसे अधिक प्रदर्शन किया जा रहा है। दरअसल, अफ़ग़ानिस्तान के बाद, सिएरा लियोन और लेबनान क्रमशः दूसरे और तीसरे सबसे अमीर देश हैं। भारत में संघर्ष, गरीबी और सामाजिक अशांति सहित महत्वपूर्ण चरित्रों का सामना करना पड़ता है। स्ट्रेंथ को बताया गया है कि यह रैंकिंग लोगों के जीवन का आकलन 3-वर्षीय औसत पर आधारित है, जिसमें फीडबैकदाता अपने वर्तमान जीवन को 0 से 10 के पैमाने पर रेट करते हैं। यहां अगर हम हैप्पीनेस के निर्धारकों के बारे में बात करते हैं तो इनमें विशेष रूप से विश्वास, सामाजिक संबंध, शेयर्ड माइल्स और साइकलिस्ट जैसे कारक शामिल हैं, जो सामान्यतः धन से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। वर्ष 2025 में विश्व प्रतिष्ठा दिवस की थीम: ‘केयरिंग एंड शेयरिंग’ रखी गई थी और ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस डे’ (विश्व प्रतिष्ठा दिवस) का पहला फर्स्ट भूटान द्वारा की गई थी, जिसने 1970 के दशक से ही ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (जेएनएच) को अधिक मान्यता दी है। यहां पर बदमाशों ने यह भी कहा था कि जुलाई 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 20 मार्च को ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस डे’ के रूप में अकिंचन का निर्णय अंग्रेजी में पारित किया गया था। यहाँ प्रश्न यह है कि अंतिम हमारा देश आदर्श वाक्य के मामले में इतना पीछे क्यों है? जबकि हमारे देश नेपाल और पाकिस्तान की स्थिति तो हर टिप्पणी में बहुत बेहतर है। असल में, इसके पीछे कुछ कारण निहित हैं। इसका कारण यह है कि आज हम अपने स्टूडियो को और अधिक बड़ा बना कर देख रहे हैं। यह भी कि हमारे देश में ‘जीवन की स्वतंत्रता’ के पैमाने अन्य देशों की तुलना में कुछ अलग हैं, शायद इस रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है, इसलिए हम पाकिस्तान और नेपाल जैसे देशों से भी जुड़े मामलों में निंदा करते हैं। आज हम प्रकृति के भी करीब नहीं रह गए हैं,जितने कि आज से सदी पहले थे। कंसल्टेंसी, असल में यह क्रोशिया मजाक नहीं है तो और क्या है कि युद्धों में मटियामेट फिलिस्तीनी और जापानी लोग भी भारतीय से कहीं ज्यादा खुश और आकर्षक हैं। यहाँ, हमें यहाँ इस बात की ज़रूरत है कि निजीकरण के मामले में हम फ़िनलैंड से कुछ सीखें। यह कहना गलत नहीं होगा कि फ़िनलैंड दुनिया भर में ख़ुशियों के सपने हर बार टॉप पर रहते हैं। संभावना है, यह प्रवृत्ति है, क्योंकि फिनलैंड के लोग साधारण सुखों का आनंद लेते हैं-जैसे स्वच्छ हवा, शुद्ध पानी और जंगल में घूमना-पूरी तरह से, लेकिन हमारे यहां दूसरी चीजें हैं। मसलन, हम घण्टा घण्टा तक फोम जैम में बने रहते हैं, लोकेशो में बिक्री खा रहे होते हैं। हमारे यहां प्रदूषण का स्तर भी कुछ कम नहीं है। हमारे यहां मेट्रो सिटीज में बहुत ज्यादा प्रदूषण है। शहरों में अस्वच्छता भी है। हमारे यहां आज भी नींव की जड़ें काफी गहरी हैं, लेकिन फिनलैंड में सब कुछ ठीक है; मसलन, वहाँ पर सार्वजनिक सेवाएँ बंधक रूप से संचालित होती हैं, अपराध और अपराधियों का स्तर कम होता है, और सरकार और जनता के बीच एक विश्वसनीय विश्वास होता है। यह सब मिलकर एक कार्यशील समाज और सभी का प्रादेशिक भंडार की संस्कृति बनाने का काम करता है। फ़िनलैंड में 40 से अधिक राष्ट्रीय उद्यान हैं, जो हाइकिंग रूट, नेचर ट्रेल और कैम्पफ़ायर साइट्स से गायब हैं, जहाँ आप एक रात की यात्रा कर सकते हैं। फ़िनलैंड के सभी जंगल अलग-अलग आकार और बनावट में पाए जाते हैं; हरे-भरे दक्षिणी जंगल से लेकर उत्तर के अनूठे अजूबों तक, प्रतिभा और विविधता खिलती है। हम भारतीयों को यह बात अपने जहां में रखनी चाहिए कि प्रकृति के साथ विशिष्टता और नवीनता को बढ़ावा दिया जाए। वास्तव में, कहा गया है कि फिनलैंड की कम तनाव वाली प्रकृति के गुणों को बढ़ावा नहीं दिया गया है, जिससे यह दुनिया का सबसे नवोन्मेषी देशों में से एक बन गया है। सच तो यह है कि फ़िनलैंड की खुशहाली का कारण, वहाँ के समाज में विश्वास और स्वतंत्रता का उच्च स्तर है। फ़िनलैंड में सबसे अधिक ख़ुशी और मनमोहक होने के पीछे एक कारण यहाँ की जनसंख्या भी है। असल में,आबादी कम होने के कारण लोगों से मिलने वाली दुआएं काफी अच्छी होती हैं। यह भी कि फिनलैंड के निवासी अपने पड़ोसियों से अपनी तुलना नहीं कर सकते। यह कहना गलत नहीं होगा कि सच्ची खुशी की ओर पहले कदमों से अपनी तुलना करने के बजाय अपने खुद के मानक निर्धारित करना है, जो फिनलैंड के लोगों ने दिखाया है। इतना ही नहीं, फ़िनलैंड के निवासी न तो प्रकृति की सुंदरता को देखते हैं और न ही विश्वास के सामुदायिक ढांचे को तोड़ते हैं, इसलिए वे हमेशा ख़ुश और आकर्षक बने रहते हैं। ऐसा नहीं कहा जाता कि फिनलैंड में काम-जीवन संतुलन पर बहुत दबाव दिया जाता है, जिसमें काम के घंटे कम करना, माता-पिता को छुट्टी देना की उदार नीतियाँ और संतुलित अवकाश का समय शामिल है। यह दृष्टिकोण वित्तीय अवकाश, परिवार और वैयक्तिक विभाजन को प्राथमिकता देता है, जिससे समग्र कल्याण और संतुष्टि को बढ़ावा मिलता है। इतना ही नहीं, फिनलैंड की शिक्षा व्यवस्था अलाभकारी, सुगमता और बच्चों के समग्र विकास को प्राथमिकता देती है। फ़िनलैंड में लैंगिक समानता, महिला लामबंदीकरण, एक समावेशी समाज में योगदान करते हैं। यहां की सौना संस्कृति भी उनकी (फिनलैंड निवासियों) प्रशंसा का एक बड़ा कारण है। दोस्ती की जानकारी देना जैसे कि सौना, फिनिश संस्कृति में एक विशेष स्थान है, जो विश्राम, सामाजिक मेलजोल और पाठ्यक्रम के लिए एक प्रतिष्ठित परंपरा के रूप में काम करता है। देश में तीन मिलियन से अधिक सौना के साथ, फिनिश लोग सौना स्नान को अपने स्वास्थ्य का एक आधारभूत आधार मानते हैं, जो सामाजिक और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देते हुए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। इतना ही नहीं, फ़िनलैंड में फ़्रांसीसी का स्तर दुनिया में सबसे कम है, सार्वजनिक प्रकाशन में विश्वास बढ़ता है और नागरिकों में वैज्ञानिकता और न्याय की भावना को बढ़ावा मिलता है। फ़िनलैण्ड की एक प्रतिष्ठित और विश्वसनीय संस्था के रूप में संस्था, धार्मिक और नैतिक शासन व्यवस्था में प्रतिष्ठा में योगदान दिया जाता है। फ़िनलैंड में समुदाय में भावना बहुत प्रबल है। असल में, फिनिश समाज समुदाय और सामूहिक कल्याण पर बहुत ज़ोर देता है। एक दूसरे से लेकर जीवंत सामाजिक मंडलियों तक, फिनिश लोग संबंधों, एकजुटता और सामुदायिक सहयोग को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे एक दूसरे से लेकर जीवंत सामाजिक मंडलियों की भावना पैदा होती है जो समग्र खुशी को बढ़ाती है। अंत में यही कलाकारी है कि अगर हमें भी उदाहरण में नंबर वन में शामिल किया गया है तो हमें फिनलैंड से प्रेरणा लेते हुए बहुत से सुधार किए गए हैं यहां करने होंगे तभी हम अमेरिका में भी शिखर सम्मेलन में नंबर वन बन सकते हैं।

 

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कलामिस्ट और युवा बौद्ध, उत्तराखंड।

मोबाइल 9828108858/9460557355

 

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