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आग लगी अकाश में झर-झर झरत अंगार….(४)

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प्रिय मित्रों ! अशान्ति के मूल की तलाश करनी होगी ! विषयवस्तु के विभिन्न पहलुओं पर गहन चिंतन की आवश्यकता है,जिस प्रकार  किसी भी सडक,गली,बाग,परिवहन के सरकारी संशाधन ,रेलवे, यातायात व्यवस्था,पुलिस,न्यायालय, चिकित्सालय,सेना, वायु और जल सेना,जल व्यवस्था,विद्युत उत्पादन,शिक्षा, प्रशासन आदि-आदि हजारों हजार सार्वजनिक सुविधाओं के बिना हमारा-आपका जीवन निर्वाह होना असम्भव है।
ये यथार्थ है कि सुविधा भोगी होना भी चाहिये ! किन्तु इन सुविधाओं के पीछे कौन है ? कौन हमें यह सुविधा देता है ? हमारी संवैधानिक रूप से चुनी हुयी सरकार के इन सुविधाओं के उपक्रमों को सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के पीछे एक अद्भुत अविस्मरणीय और अदृश्य शक्ति है ! जिसे सभी लोग कोसते हैं ! वह शक्ति है हमारे कुछेक लोगों द्वारा दिया जा रहा-“राजस्व” हाँ बिलकुल सही है ये हमारे आपके द्वारा दिये जा रहे राजस्व से ही समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है ! हमारी सुरक्षा,शिक्षा, सामाजिक ताने-बाने के रीढ की हड्डी है-“राजस्व”।
हमारे उद्योगपति जब जागते हैं ! अपने कठोर परिश्रम से अर्जित धन को आयकर विभाग को देते हैं ! अपने लाभांश का ५ से लेकर ४५ % तक दे देते हैं ! अर्थात लाखों लाख करोड़ की भारतीय और विदेशी मुद्रा आयकर विभाग को इनसे मिलती है ! जिससे देश चलता है। मित्रों ! उद्योगपतियों और उच्चस्तरीय पदों पर नियुक्त लोगों द्वारा प्रदत्त राजस्व वह अक्षय अमृत-पात्र है जिसकी एक एक बूँद छलकने से गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के घर चूल्हे भी जलते हैं ! और हमारे जनप्रतिनिधि उनके परिश्रम से दिये गये राजस्व से जेड श्रेणी के सुरक्षा घेरों में रहकर सदन में बैठकर उनको ही कोसते हैं ? गरीब समझता है कि उसके घर जलता बल्प,गैस, बच्चों की शिक्षा,परिवार की आकस्मिक परिस्थितियों में चिकित्सा व्यवस्था सरकार उपलब्ध कराती है ! किन्तु राजस्व के दाता उद्योगपतियों को चाहे जिसकी सरकार हो ! सरकार के विपक्ष में बैठे लोगों के निशाने पर हमेशा ही उद्योगपति होते हैं । हाँ एक चीज और होती है ! विपक्ष के निशाने पर वो -“सरकारी सम्पत्ति” होती है ! जिसे उसीके भाडे के गुण्डे जलाते हैं ! और ये लोग सदन में बैठकर घडियाली आँसुओं से पूरी दिल्ली को डूबा देते हैं।मैंने पढा था मनुस्मृति में कि-“राजा के पापों का फल प्रजा भुगतती है” किन्तु ये भी पढा था कि अन्याय से उपार्जित धन महाविनाश का कारण सिद्ध हो सकता है। किसी भी सरकार को देश चलाने के लिए धन चाहिये ! येन केन प्रकारेण केवल धन चाहिये ! यहाँ तक तो चलो ठीक है किन्तु हमारे धार्मिक नेतृत्व कर्ता कोई-कोई  ब्राम्हण,संत मन्दिर के पुजारी भी कहते हैं कि चाहे किसी भी प्रकार से धन कमाओ ! कोई फर्क नहीं पड़ता केवल इतना करना कि अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा हमें दे दो ! हम बाकी के नब्बे रुपये पवित्र कर देंगे ! जादू की छड़ी है उनके पास ! ऐसे ऐसे मंत्र वो लोग जानते हैं कि मादक पदार्थों की तश्करी से मिले धन को भी वो लोग मंत्रों द्वारा गंगाजल से भी अधिक पवित्र कर देंगे।किन्तु आप पाकिस्तान की परिस्थितियों को देखो ! बेईमानी से आयी सम्पत्ति घर में झाडू लगाकर चली जाती है।
भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के यहाँ छप्पन भोग ये कहकर ठुकरा दिया था कि अन्याय से आये धन से बना भोजन बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है ! हमारे धार्मिक सलाहकार ऐसे धन को भला कैसे स्वीकार कर सकते हैं ?  ये सनातन सत्य है कि-
“अन्नाद् भवन्ति भूतानी,पर्जन्यादन्न सम्भवः।
यज्ञाद् भवन्ति पर्जन्या,यज्ञ कर्म समुद्भवः॥”
हमें प्याज,टमाटर,दालें,चीनी,अनाज,फल,चिकित्सा,पेट्रोल सब कुछ मंहगा लगता है ! किन्तु इनमें से अधिकांश के उपभोक्ता और उत्पादक हम सामान्य जनता के लोग ही हैं ! तो केवल सत्तारूढ़ दल और उद्योगपतियों का दोष कैसे हो सकता है ?
हमें हर चीज में सब्सिडी,आरक्षण और सरकारी सहायता  चाहिये ! न्यूनतम मजदूरी और न्यूनतम समर्थन मूल्य चाहिये ! तो हमें जीएसटी पर आपत्ति क्यूँ ? इस पर भी चिन्तन करने की आवश्यकता है ! किसान आंदोलन(?) से लेकर मणिपुर तक लगी आग में सामान्य जनता की क्षत्ति हुयी, सार्वजनिक और सरकारी सम्पत्ति की क्षत्ति हुयी ! इसमें भी उद्योगपतियों का हाँथ है ? अडानी,अंबानी,टाटा को बाटा दिखाने वाले लोग वही हैं जो कभी अपनी सरकार में उनके लोग कहलाते थे। सरकार बदलने के साथ-साथ राजनेताओं की वफादारी क्यों बदल जाती है ? शेष अगले अंक में–“आनंद शास्त्री”

आग लगी अकाश में झर-झर झरत अंगार….(५)
सम्माननीय मित्रों ! आज टैक्स बचाने के लिए आर्थिक सलाहकारों की भरमार है ! आपको यू ट्यूब पर ऐसे सैकड़ों वीडियो और लेख मिल जायेंगे कि हम राजस्व की चोरी कैसे कर सकते हैं ! जबकि ये सच्चाई है कि आयकर विभाग हमें हमारे द्वारा अर्जित वार्षिक सम्पत्ति पर अभी तक लगभग ५ लाख की छूट देता है ! इसके उपरान्त की आय पर राजस्व के सोपान प्रारम्भ होते हैं ! सरकार ने स्वास्थ्य सुरक्षा बीमा भी लगभग ८०% जनता को उपलब्ध करा दिया। सरकारी चिकित्सालयों में लगभग बिना मूल्य की औषधि,अत्यधिक अल्प मूल्य पर अति अत्याधुनिक मशीनों से टेस्ट,अधिकतम संख्या में चिकित्सक एवं अन्यान्य कर्मियों की नियुक्ति,इन सभी को भारी-भरकम मानदेय ,इनमें नित्य नवीन भवनों का निर्माण,उनकी साजसज्जा-रख रखाव पर आने वाला व्यय,भारतीय जन औषधि केन्द्र में उपलब्ध लगभग ५०~७०% तक कम मूल्य पर औषधियों के साथ-साथ टीकाकरण,कोरोना महामारी से सबको बचाने हेतु अरबों-खरबों का व्यय हमारी सरकार इसी राजस्व से करती है।
ये अलग विषय है कि यहाँ नियुक्त चिकित्सकों की दृष्टि में रुग्णों को एक बोझ के रूप में देखा जाता है ! ये लोग सैलरी चिकित्सालय से लेते हैं,वहां आते रोगियों को भरमाकर नर्सिंग होम भेजते हैं जहाँ ये खुद उनको बैठकर दोनों हांथों से लूटते हैं ! सरकार द्वारा उपलब्ध स्वास्थ्य बीमे की समूची राशि नर्सिंग होम की भेंट चढ जाती है ! और इन नर्सिंग होमों पर  किसका वरद हस्त होता है आप सभी जानते हैं।
औषधियों,चिकित्सा उपकरणों,आवश्यक सामग्री, चिकत्सालय में उपलब्ध भोजन की खरीद पर अरबों-खरबों रुपये सरकार द्वारा उपलब्ध कराने के पश्चात ठेकेदारों,राजनेता और सरकारी उच्च कर्मचारियों की मिली भगत से एक रुपये का सामान पांच रुपये में खरीदने के पश्चात चार रुपये ये लोग खाने के बाद भी घटिया सामग्री होने के कारण उसे नष्ट कर देते हैं ! मंहगी और आयातित मशीनें सरकारी चिकित्सालय में या तो खराब रहती हैं,या ऑपरेटर नहीं होते अथवा उनकी नियुक्ति की अनुशंसा होनी अभी बाकी है। और इन सबका व्यय हमारे उद्योगपतियों के राजस्व से होता है ! जनप्रतिनिधियों को इसका वो श्रेय मिलता है जिसके अधिकारी वे हैं ? और उनकी अपेक्षा घटिया मशीनों को रख कर भी नर्सिंग होम जनता को लूटते हैं,कंगाल कर श्मशान भेज देते हैं ! सरकार से सैलरी लेकर सरकारी चिकित्सालय से नर्सिंग होम भेजने वाले चिकित्सक ये भूल जाते हैं वे कि जिस देवी देवता की वे उपासना करते हैं उनसे अपने इन घिनौने अपराध की वे छमा के अधिकारी हैं ? चिकित्सक समुदाय को बीजेपी की दवायें इसलिए घटिया लगती हैं,उन्हें सरकारी चिकित्सालय के उपकरण इसलिए खराब लगते हैं क्यों कि बाहरी पैथोलाॅजी और मेडिकल स्टोर से उनको ४०~५०% तक कमीशन मिलता है।
भारत सरकार आपके बहुमूल्य राजस्व से आपकी सेवा के लिये
समूचे भारत में लाखों की संख्या में आयुर्वेदिक,युनानी और होम्योपैथिक  चिकत्सालय खोल चुकी है जिनकी भी परिस्थिति लगभग ऐसी ही है। ये वास्तविकता है कि सरकारी पदों का दुरुपयोग, सामग्री की लूट और सुविधाओं का समुचित वितरण न हो पाने के मूल में हमारे वही बच्चे हैं जो हमारे घर से आज चिकित्सक अथवा नाना पदाधिकारी बन कर निकले हैं।
प्रिय मित्रों ! हमारे कर दताओं के राजस्व से छोटे-छोटे गांवों से लेकर सभी नगरों में गली-गली में सरकारी शैक्षिक संस्थानों की सम्पूर्ण देश में भरमार है। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि समूचे देश के सरकारी विद्यालयों में कुल सत्तासी लाख अध्यापक हैं। इनमें ५२ लाख से भी अधिक शिक्षक ८ वीं कक्षा हेतु नियुक्त हैं ! इनके निर्माण,बच्चों की ड्रेस,मिड डे मील,रख-रखाव,शैक्षिक सामग्री पर कितना व्यय होता होगा ? हमारे बच्चे उन कान्वेंट में पढते हैं,जहाँ जेवियर्स जैसे लुटेरों को -“सेंट” और हमारे देवी देवताओं,सभ्यता और संस्कृति की खिल्ली उड़ाई जाती है ! निःसंदेह ये विडम्बना ही कही जायेगी कि कान्वेंट हों अथवा सरकारी विद्यालय ! दोनों ही स्थानों से शिक्षा पूर्ण करने के उपरान्त ये बच्चे उच्च शिक्षा के लिये उन्हीं राष्ट्रीय विश्व विद्यालयों में जाते हैं जिनका संचालन हमारे राजस्व दाताओं के कर से सम्भव होता है।
अथवा बच्चों को गैरराजकीय उन देशी-विदेशी शैक्षिक संस्थानों में भेजना होता है जिनका अत्यधिक व्यय उठाने के पश्चात भी हमारे विश्व विद्यालयीय स्तर की शिक्षा नहीं मिल पाती। अर्थात ये सिद्ध है कि राजस्व का उचित लाभ लेने में हम असमर्थ हैं ! हमारी विचारधारा,अविश्वास की भावना और हमारे भीतर बहुत ही गहराइयों में बैठा-“मेकाले का अंग्रेजी भूत”अर्थात गुलामी की मानसिकता सबसे बड़ी शत्रु है ! शेष अगले अंक में–“आनंद शास्त्री”

आग लगी अकाश में झर-झर झरत अंगार….(६)
कडवी सच्चाई है-“आग लगी अकाश में झर झर झरत अंगार !
अकेले व्यक्ति के समक्ष सत्य भी कभी-कभी गूंगा और बहरा हो जाता है,किसी किसी को लगता होगा कि-“सत्य में शक्ति नहीं होती ! जिनके पास शक्ति होती है उनकी हर बात सत्य होती है !” सच्चाई की लकीर होती है ! तो लकीर के फकीर हैं हम ? स्वाधीनता संग्राम से लेकर अनेकानेक जनआंदोलन की कथाएं और शहीदों के नाम हम जानते हैं किन्तु उनका क्या जो अभी भी हमारी-आपकी स्वतंत्रता के लिये तिल तिल कर मर रहे हैं।और धीरे-धीरे यूँ ही घुट-घुट कर निरन्तर प्रलयंकारी त्रासदी की शिकार हो रही है हमारी-“प्रेरणा भारती”।
हाँ मित्रों ! बराक उपत्यका में हम सब हिन्दी भाषी समुदाय के -“पथ प्रदीप” दिलीप कुमार-सीमा कुमार की जोडी को देख मुझे उन युवा मराठी दम्पत्ति का अचानक स्मरण हो आया जो कदाचित् १९९४ में नेशनल हाइवे स्थित उदयन काम्प्लैक्स में किराये के उसी घर में नीचे रहते थे जहाँ दो तल्ला पे मैं और दिलीप रहते थे।वे दोनों दम्पत्ति वनवासी कल्याण आश्रम में अत्यंत ही अल्प मानदेय पर सेवा करते थे ! उच्च शिक्षित वे लोग कुलीन परिवार से थे ! उनकी पत्नी आदिवासी बच्चों को शिक्षा देतीं और वे वनवासी क्षेत्रों में सर पर कफन बांध कर सेवा करते थे ! न जाने कहाँ होंगे वे लोग किन्तु उन युगल दम्पत्ति के त्याग भरे जीवन की जीवंत मिसाल हैं -“दिलीप कुमार”।
फोटोस्टेट काॅपी करवा कर वे अपनी जोशीली भाषा में तब भी अपने विचार लिखकर बांटते थे ! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक भी तब वे थे। आपको मेरा कथन उपहासात्मक लगेगा किन्तु ये सच्चाई है कि सप्ताह में १० दिन अर्थात दिन रात ये चायबागान और ग्रामीण अंचल में सेवारत- प्रचार रत थे ! दो कुर्ते,दो पजामे,डायरी,कलम,कपड़े की झोली,एक गमछा,फटी टूटी चप्पल और जेब में ! दस बीस रुपये ! मैं जानता हूँ,इसका साक्षी हूँ कि शायद कभी तीन समय का भोजन इनको मिला हो।
दूसरा पहलू ये भी है कि इनके बलिया स्थित घर भी मैं जा चुका हूँ ! उच्च धनाढ्य परिवार के शिक्षित इस दिलीप कुमार नामक युवा ने अपनी पैतृक सम्पत्ति की न परवाह की और न ही ली। ये तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आह्वान पर असम के कछार में बीजेपी के लिये आये ! बीजेपी को यहाँ जीतने में इनकी जो सहायता मिली ! मेरे प्रवास प्रचार और सेवा से जो सफलता मिली उसे आज पूरी तरह से -“नकारात्मक दृष्टि” से देखा जा रहा है ! आज यहाँ कछार के सभी सत्तारूढ़ दल और तथाकथित संगठन के लोगों द्वारा इनको केवल इसलिए यातना दी जा रही है क्योंकि हम लोग-“हिन्दी भाषी समुदाय” की बात करते हैं।
दिलीप कुमार स्थानीय सत्तारूढ़ भाषी दल की भाषा नहीं बोलते।उनके दरबार में हाजरी नहीं देते ! उनके साथ-“हज” पर नहीं जाते और न ही उनके साथ मिलकर बकरीद पर मस्जिद में रुपये देते हैं ! इनका ये भी अपराध है कि इन्होंने-
“अमर शहीद मंगल पांडे ” की मूर्ति स्थापित करने की मांग की।
हिन्दी को कछार की द्वितीय भाषा स्वीकार करने की मांग की।
हिन्दी भाषी लोगों की सही-सही संख्या यहाँ अभिलेखों में अंकित कराने की मांग की। हिन्दी भाषी लोगों को जनगणना में अपने आप को हिन्दी भाषी लिखने की सलाह दी। संघ पर भाषा विशेष के एकछत्र नियंत्रण का समर्थन नहीं किया।बीजेपी के लगभग सभी वरिष्ठ पदों पर भाषा विशेष के नियंत्रण के विरुद्ध आवाज बुलंद की।उनलोगों की दृष्टि से यहाँ हिन्दी भाषी-“कुली” को कहते हैं और इन्होंने हिन्दी भाषा का समाचार पत्र निकालने का भीषण अपराध कर दिया।चार-चार यज्ञों का सफल आयोजन किया! घुंघुर में इतने विशाल महायज्ञ और शिवपुराण का सफलतम आयोजन कर ये उन लोगों की आँखों की किरकिरी बन चुके हैं ! हिन्दी भाषी समुदाय को राजकीय विभागों में उचित स्थान मिले इनका ये कथन यहाँ के स्वार्थी भाषाविदों को अच्छा नहीं लगेगा।हिन्दी भाषी समुदाय को बीजेपी के राजनैतिक संगठन में उचित स्थान मिले उनके मताधिकार का लाभ मिले,चायबागान में बांग्लादेशी घुसपैठियों के अतिक्रमण का स्थानीय प्रशासन और राजनैतिक दल विरोध करें ! चाय बागान और सुदूर ग्रामीण अंचलों में रह रही बच्चियों के साथ उनके पाले गुण्डों द्वारा हैवानियत का विरोध भला एक हिन्दी भाषी पत्रकार कैसे कर सकता है ? यहाँ की टूटी-फूटी सडकों में हुवे करोडों के घोटालों का विरोध प्रेरणा भारती कैसे कर सकती है ? असम के बराक उपत्यका में हिन्दीभाषी ४०% हैं ये कडवा सच कहने का दण्ड दिलीप कुमार को विगत २८ वर्षो से मिलता आ रहा है ! संगठन से लेकर बीजेपी तक सभी को इनके इसी हस्तक्षेप से शिकायत है।
और इसी का साक्षात प्रमाण है कि भाषा विशेष के लोगों के दल में-“आग लगी है ! वे लुक छुपकर दिसपुर और दिल्ली में-“झर झर अंगारे” उगलते हैं ! वे लोग भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय से लेकर असम सरकार के उन सभी लोगों को घटिया संदेश देकर येन केन प्रकारेण प्रेरणा भारती को बन्द कराना चाहते हैं ! और ये गम्भीर सत्य है कि ऐसा ही-“इनकी मातृ संस्था(संगठन)भी चाहता है ! यहाँ के संगठन और बीजेपी को हिन्दी और हिन्दी भाषी समुदाय से घृणा थी ! है ! और शायद रहेगी भी ! क्यों कि-“दोनों कबहुँ ना मिलै,रवि-रजनी एक ठांव” और दिलीप कुमार को शान्त करने का एक उपाय इन लोगों ने ढूंढा ! प्रेरणा भारती को विज्ञापन मिलना बन्द करा दो ! इनकी रीढ टूट जायेगी ! इनकी आवाज रोकने की साजिश है ये ! हम सभी हिन्दी भाषी समुदाय के लोगों के आज अंतःकरण से ये प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि हम प्रेरणा भारती के ईपेपर,और वेबसाइट से अधिक से अधिक संख्या में अपने परिचितों को जोड़कर उनसे ये आग्रह करेंगें कि वे इस क्रांतिकारी कार्य के लिये प्रतिमाह कम से कम २०० ₹ प्रेरणा भारती को दें ! जिससे हमारी ये मशाल सदैव प्रज्वलित रहे।–“शेष अगले अंक में–“आनंद शास्त्री

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