आग लगी अकाश में झर-झर झरत अंगार….(६)
कडवी सच्चाई है-“आग लगी अकाश में झर झर झरत अंगार !
अकेले व्यक्ति के समक्ष सत्य भी कभी-कभी गूंगा और बहरा हो जाता है,किसी किसी को लगता होगा कि-“सत्य में शक्ति नहीं होती ! जिनके पास शक्ति होती है उनकी हर बात सत्य होती है !” सच्चाई की लकीर होती है ! तो लकीर के फकीर हैं हम ? स्वाधीनता संग्राम से लेकर अनेकानेक जनआंदोलन की कथाएं और शहीदों के नाम हम जानते हैं किन्तु उनका क्या जो अभी भी हमारी-आपकी स्वतंत्रता के लिये तिल तिल कर मर रहे हैं।और धीरे-धीरे यूँ ही घुट-घुट कर निरन्तर प्रलयंकारी त्रासदी की शिकार हो रही है हमारी-“प्रेरणा भारती”।
हाँ मित्रों ! बराक उपत्यका में हम सब हिन्दी भाषी समुदाय के -“पथ प्रदीप” दिलीप कुमार-सीमा कुमार की जोडी को देख मुझे उन युवा मराठी दम्पत्ति का अचानक स्मरण हो आया जो कदाचित् १९९४ में नेशनल हाइवे स्थित उदयन काम्प्लैक्स में किराये के उसी घर में नीचे रहते थे जहाँ दो तल्ला पे मैं और दिलीप रहते थे।वे दोनों दम्पत्ति वनवासी कल्याण आश्रम में अत्यंत ही अल्प मानदेय पर सेवा करते थे ! उच्च शिक्षित वे लोग कुलीन परिवार से थे ! उनकी पत्नी आदिवासी बच्चों को शिक्षा देतीं और वे वनवासी क्षेत्रों में सर पर कफन बांध कर सेवा करते थे ! न जाने कहाँ होंगे वे लोग किन्तु उन युगल दम्पत्ति के त्याग भरे जीवन की जीवंत मिसाल हैं -“दिलीप कुमार”।
फोटोस्टेट काॅपी करवा कर वे अपनी जोशीली भाषा में तब भी अपने विचार लिखकर बांटते थे ! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक भी तब वे थे। आपको मेरा कथन उपहासात्मक लगेगा किन्तु ये सच्चाई है कि सप्ताह में १० दिन अर्थात दिन रात ये चायबागान और ग्रामीण अंचल में सेवारत- प्रचार रत थे ! दो कुर्ते, दो पजामे, डायरी, कलम, कपड़े की झोली, एक गमछा, फटी टूटी चप्पल और जेब में ! दस बीस रुपये ! मैं जानता हूँ,इसका साक्षी हूँ कि शायद कभी तीन समय का भोजन इनको मिला हो।
दूसरा पहलू ये भी है कि इनके बलिया स्थित घर भी मैं जा चुका हूँ ! उच्च धनाढ्य परिवार के शिक्षित इस दिलीप कुमार नामक युवा ने अपनी पैतृक सम्पत्ति की न परवाह की और न ही ली। ये तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आह्वान पर असम के कछार में बीजेपी के लिये आये ! बीजेपी को यहाँ जीतने में इनकी जो सहायता मिली ! मेरे प्रवास प्रचार और सेवा से जो सफलता मिली उसे आज पूरी तरह से -“नकारात्मक दृष्टि” से देखा जा रहा है ! आज यहाँ कछार के सभी सत्तारूढ़ दल और तथाकथित संगठन के लोगों द्वारा इनको केवल इसलिए यातना दी जा रही है क्योंकि हम लोग-“हिन्दी भाषी समुदाय” की बात करते हैं।
दिलीप कुमार स्थानीय सत्तारूढ़ भाषी दल की भाषा नहीं बोलते।उनके दरबार में हाजरी नहीं देते ! उनके साथ-“हज” पर नहीं जाते और न ही उनके साथ मिलकर बकरीद पर मस्जिद में रुपये देते हैं ! इनका ये भी अपराध है कि इन्होंने-
“अमर शहीद मंगल पांडे ” की मूर्ति स्थापित करने की मांग की।
हिन्दी को कछार की द्वितीय भाषा स्वीकार करने की मांग की।
हिन्दी भाषी लोगों की सही-सही संख्या यहाँ अभिलेखों में अंकित कराने की मांग की। हिन्दी भाषी लोगों को जनगणना में अपने आप को हिन्दी भाषी लिखने की सलाह दी। संघ पर भाषा विशेष के एकछत्र नियंत्रण का समर्थन नहीं किया।बीजेपी के लगभग सभी वरिष्ठ पदों पर भाषा विशेष के नियंत्रण के विरुद्ध आवाज बुलंद की।उनलोगों की दृष्टि से यहाँ हिन्दी भाषी-“कुली” को कहते हैं और इन्होंने हिन्दी भाषा का समाचार पत्र निकालने का भीषण अपराध कर दिया।चार-चार यज्ञों का सफल आयोजन किया! घुंघुर में इतने विशाल महायज्ञ और शिवपुराण का सफलतम आयोजन कर ये उन लोगों की आँखों की किरकिरी बन चुके हैं ! हिन्दी भाषी समुदाय को राजकीय विभागों में उचित स्थान मिले इनका ये कथन यहाँ के स्वार्थी भाषाविदों को अच्छा नहीं लगेगा।हिन्दी भाषी समुदाय को बीजेपी के राजनैतिक संगठन में उचित स्थान मिले उनके मताधिकार का लाभ मिले, चायबागान में बांग्लादेशी घुसपैठियों के अतिक्रमण का स्थानीय प्रशासन और राजनैतिक दल विरोध करें ! चाय बागान और सुदूर ग्रामीण अंचलों में रह रही बच्चियों के साथ उनके पाले गुण्डों द्वारा हैवानियत का विरोध भला एक हिन्दी भाषी पत्रकार कैसे कर सकता है ? यहाँ की टूटी-फूटी सडकों में हुवे करोडों के घोटालों का विरोध प्रेरणा भारती कैसे कर सकती है ? असम के बराक उपत्यका में हिन्दीभाषी ४०% हैं ये कडवा सच कहने का दण्ड दिलीप कुमार को विगत २८ वर्षो से मिलता आ रहा है ! संगठन से लेकर बीजेपी तक सभी को इनके इसी हस्तक्षेप से शिकायत है।
और इसी का साक्षात प्रमाण है कि भाषा विशेष के लोगों के दल में-“आग लगी है ! वे लुक छुपकर दिसपुर और दिल्ली में-“झर झर अंगारे” उगलते हैं ! वे लोग भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय से लेकर असम सरकार के उन सभी लोगों को घटिया संदेश देकर येन केन प्रकारेण प्रेरणा भारती को बन्द कराना चाहते हैं ! और ये गम्भीर सत्य है कि ऐसा ही-“इनकी मातृ संस्था(संगठन)भी चाहता है ! यहाँ के संगठन और बीजेपी को हिन्दी और हिन्दी भाषी समुदाय से घृणा थी ! है ! और शायद रहेगी भी ! क्यों कि-“दोनों कबहुँ ना मिलै,रवि-रजनी एक ठांव” और दिलीप कुमार को शान्त करने का एक उपाय इन लोगों ने ढूंढा ! प्रेरणा भारती को विज्ञापन मिलना बन्द करा दो ! इनकी रीढ टूट जायेगी ! इनकी आवाज रोकने की साजिश है ये ! हम सभी हिन्दी भाषी समुदाय के लोगों के आज अंतःकरण से ये प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि हम प्रेरणा भारती के ईपेपर,और वेबसाइट से अधिक से अधिक संख्या में अपने परिचितों को जोड़कर उनसे ये आग्रह करेंगें कि वे इस क्रांतिकारी कार्य के लिये प्रतिमाह कम से कम २०० ₹ प्रेरणा भारती को दें ! जिससे हमारी ये मशाल सदैव प्रज्वलित रहे।–“शेष अगले अंक में–“आनंद शास्त्री”