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करत करत अभ्यास से जङमति होत सुजान रहती आवत जात ते सिल पर परत निसान यानि बार प्रयास करने से मुर्ख भी विद्वान हो सकता है जैसे कुंए की सिला पर रस्सी की घसीट लगने से वहाँ निसान बन जाते हैं इसी तरह कुरितियों एवं घिसीपिटी परंपराओं मे जकङा हुआ इंसान एक ना एक दिन हिम्मत करके पहल कर लेता है।
लोगों का क्या है घोङे पर चढे व्यक्ति को टोकते है वही गधे पर चढे को सलाम ठोकते है। नुक्कड़ पर बेठे निठल्लू डिंग हांकते है उन्हें यह भी ज्ञान नहीं होता कि कब कहाँ बात करनी चाहिए।
आदर्श विवाह चंद लोगों को थोङे से समय मे किंतु सामाजिक धार्मिक रिति रिवाज के साथ बहुत ही कम राशि मे किया जा सकता है । मैंने मेरी दोनों बेटियों की शादी समान स्तर के आलाधिकारियों के साथ की। सबकुछ वर पक्षों ने मान लिया लेकिन दिन मे शादी करना स्वीकार नहीं किया। भात के नाम पर सिर्फ एक चुनङी ली गई। सभी लोगों से मात्र 100-100 रुपये लिए गये। किसी ने आग्रह एवं दबाव मे दे दिए तो हमने दानधर्म मे खर्च कर दिए।
पाठक बंधुगण जब मैं अपनी दोनों बेटियों को उच्च शिक्षित बनाकर उच्च अधिकारी बना दिया तो क्या किसी गरीब बेटी बेटों को नहीं बना सकते? अवश्य बना सकते हैं बहुत ही मामूली काम है आपको रोज अथवा हर महीने कुछ राशि अलग जमा करनी होगी एक दिन वो राशि स्वत बङी हो जायेगी। एक बार कोशिश करें बहुत ही आनंद आयेगा जब ऐसा गुप्त रूप से काम करेंगे।
फोकट का खाने मे जितना आनंद नहीं मिलता उससे अधिक एक मुट्ठी चना चबाकर पानी पीने से पेट भर सकता है इसके लिए तपस्या त्याग एवं जनहित मे सोचना पङेगा।
दिन मे शादी के बहुत फायदे हैं हमने तो काफी की है लेकिन लोग आज भी तैयार होने मे हिचकिचाहट रखते हैं।
आदर्श विवाह दिन मे शादी गरीब अमीर मध्यम वर्ग सभी कर सकते हैं यह शास्त्र सम्मत है यदि हम अपनायेंगे तो सामाजिक मान्यता मिलेगी।
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653