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आधुनिकता के चक्कर में इनको ना भूलें 

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कानपुर से लौटते वक्त जब मेरी गाड़ी संख्या 12394 सम्पूर्ण क्रान्ति एक्सप्रेस #मिर्जापुर पहुँची तब रात के पौने तीन बज चुके थे।
          मिर्जापुर स्टेशन से बाहर निकलते ही कुछ ई-रिक्शा वाले, टैम्पो वाले ने पूछा कि कहाँ जाना है साहब? लेकिन मेरी निगाह एक बुजुर्ग पैडल रिक्शा चालक की ओर पड़ी जिन्होंने मुझे देखते ही अपने नींद को त्यागकर बड़ी आस के साथ दबे स्वर में पूछा “केहर जाबा बाबू?” मैं भी मन बना चुका था कि जाऊँगा तो दादाजी के साथ ही और अपने गंतव्य अर्थात घर का पता बताया और दादाजी ने कहा “बाबू 50 रुपिया लगे।” मैंने सहमति जताई और उनके रिक्शे पर बैठ गया। दादा जी की उम्र लगभग 70 वर्ष रही होगी। लेकिन जब मैंने उनसे पूछा तो दादाजी ने बोला “78 साल होई गवा बा बाबू। 2 आना, 12 आना क सवारी ढोये हई।”
                                 मेरी जिज्ञासा बढ़ती गयी और यूं ही सफर में उनका हालचाल लेते हुए हम दोनों आगे बढ़ रहे थे।
दादाजी ने बताया कि इसी रिक्शे के बदौलत उन्होंने अपनी सात लड़कियों की शादी की है और एक लड़के की शादी करनी है। पूर्व में जब तक ई-रिक्शा नहीं निकला था तब एक सवारी उतारते ही दूसरी सवारी बैठ जाती थी और अब खाने का निकल जाए तो वो ही बड़ी बात है। दादाजी ने बताया कि उनसे दोपहर में रिक्शा नहीं चलाया जाता इसलिए वो सिर्फ रात से भोर तक ही रिक्शा चलाते हैं। तभी अचानक लालडिग्गी पर एक जगह रोड धँस गयी थी और बारिश से भीगी सड़कों पर कीचड़ के बीच दादाजी रिक्शा से उतरकर अपने हाथों से खींचने लगे, मुझसे ये देखा न गया और मैं भी उतर गया जैसे ही कुछ ठीक रास्ता आया मैं पुनः रिक्शे पर बैठ गया। मैंने पूछा दादा आपके बेटे क्या करते हैं? तो उन्होंने बोला बेटा सूरत रहता है। खर्चा भी भेजता है लेकिन कम पड़ता है तो पेट पालने के लिए इस उम्र में भी मेहनत करना पड़ता है।
                                    अब मैं अपने घर के करीब आ चुका  था और दादाजी से बोला बस सामने रोडलाइट के पास ही उतार दीजिये। जब 100 रुपये उनको मैंने दिया तो वो शेष पैसे को लौटाने के लिये अपना जेब टटोलने लगे। मैंने कहा रखे रहिये दादा। दादाजी के चेहरे की मुस्कान उनके थकान को कुछ पल के लिए दूर कर दिया और उन्होंने जो आशीर्वाद दिया वो मेरे लिए अतुलनीय था। इस पोस्ट को करने का मतलब सिर्फ इतना है कि आधुनिकता को अपनाना गलत नहीं है आप ई-रिक्शा के आदी तो हो चुके हैं। समय के साथ परिवर्तन विकास लाता है। लेकिन पैडल रिक्शा जो अब सिर्फ शहर में गिने चुने ही शेष हैं। आप उनका भी प्रयोग करें ये ना ही जमीन खरीदने के लिये लालायित हैं ना ही इन्हें सोना चाँदी खरीदना है, दरअसल ये रोटी कमाने निकलते हैं।
             साभार फेसबुक
(तस्वीर इमरती रोड मिर्जापुर की है)

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