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आपातकाल पीडि़तों ने मांगा स्वतंत्रता सैनानी का दर्जा

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आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की याचिका का समर्थन कर मामले में पक्षकार बनाने का अनुरोध

नई दिल्ली (एजेंसी)। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई थी जिसमें 1975 में कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने उस याचिका पर नोटिस भी जारी किया था। अब आपातकाल पीडि़तों ने संगठित रूप से अखिल भारतीय लोकतंत्र सैनानी संयुक्त समिति के जरिये सुप्रीम कोर्ट में नई अर्जी दाखिल की है और मुख्य याचिका में पक्षकार बनाते हुए अपनी बात रखने की इजाजत मांगी है। अर्जी में आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की लंबित याचिका में की गई मांग का समर्थन किया गया है। साथ ही आपातकाल के पीडि़तों को स्वतंत्रता सैनानी का दर्जा दिए जाने की मांग की गई है।

अर्जी में कहा गया है कि आपातकाल के काफी पीडि़तों की मृत्यु हो चुकी है और बहुत से काफी बूढ़े हो गए हैं। इन सब तथ्यों को देखते हुए वे लोग सुप्रीम कोर्ट में आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिका का समर्थन करते हैं। इसमें कहा गया है कि आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने के साथ उन्हें स्वतंत्रता सैनानी का दर्जा दिया जाए।

अर्जी के मुताबिक जून, 1975 से 1977 के दौरान तत्कालीन सरकार द्वारा लागू किया गया आपातकाल गैरकानूनी था। यह काल देश का काला काल कहा जाएगा। इस दौरान देश भर में 1,10,000 से ज्यादा लोग हिरासत में लिए गए और जेल में डाले गए। उनके साथ क्रूर व्यवहार किया गया। अर्जी में कहा गया है कि कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान आदि ने आपातकाल पीडि़तों को पेंशन, चिकित्सा सुविधा, यात्र भत्ता और अन्य लाभ दिए हैं और उन्हें राष्ट्र के लोकतंत्र सेनानी का दर्जा और सम्मान दिया है। हालांकि कई बार राज्य में राजनीति या शासन बदलने से उन्हें दी जाने वाली सुविधाएं बंद या वापस कर ली जाती हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में राज्य में सत्ताधारी दल की सरकार बदलने से इन्हें मिलने वाली पेंशन और सम्मान वापस ले लिया गया। मध्य प्रदेश में 2018 में उनकी पेंशन दोबारा बहाल की गई। लेकिन बाकी दो राज्यों में वापस ली गई पेंशन और सम्मान अभी तक बहाल नहीं हुआ है। अर्जी में कहा गया है कि अर्जीकर्ता वे लोग हैं जिन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया। अगर उन्होंने उस वक्त संघर्ष नहीं किया होता तो आज जो राष्ट्र दिख रहा है शायद वह नहीं होता। कहा है कि कई उच्च न्यायालयों ने भी आपातकाल के पीडि़तों के कष्टों को समझा और टिप्पणी की। अर्जीकर्ताओं ने केंद्र और राज्य सरकार को कई बार ज्ञापन भी दिया।

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