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‘आप’ का क्या होगा जनाबेआली … राधा रमण

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दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने घोषणा कर दी है कि दिल्ली में मतदान 5 फरवरी को और नतीजे 8 फरवरी को घोषित किये जाएंगे। हालांकि इससे पहले ही दिल्ली की सियासत में आरोप- प्रत्यारोप और गाली- गलौच का दौर शुरू हो गया है। लगातार तीन बार से सत्ता का सुख भोग रही आम आदमी पार्टी इस बार चौतरफा घिरती नजर आ रही है। लेकिन विपक्ष के अनर्गल बोल कहीं ‘आप’ के लिए मददगार न बन जाएं। दिल्ली देश की राजधानी है और यहां के लोग शालीनता पसंद हैं। बहरहाल, इस आलेख में हम आम आदमी पार्टी पर बात करेंगे।
महज 12 साल पुरानी आम आदमी पार्टी (आप) एक बार फिर इतिहास रचने की राह पर है। 26 नवंबर 2012 को प्रख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे के इण्डिया अगेंस्ट करप्शन की कोख से निकली इस पार्टी ने एक साल बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर न सिर्फ सरकार बनाई बल्कि देश की सबसे पुरानी  पार्टी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और देश की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को घुटनों के बल चलने को मजबूर कर दिया था। और तो और, तीन बार की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। हैरत तो तब हुई कि जिस कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़कर आम आदमी पार्टी विजेता बनी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सत्ता से दूर रखने के लिए उसी कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को मुख्यमंत्री पद के लिए बिना शर्त समर्थन दे दिया। तब भाजपा को 32, कांग्रेस को 8 और आम आदमी पार्टी को 28 सीटों पर विजय मिली थी।
राजनीतिक प्रेक्षक कहते हैं कि उसी समर्पण अथवा समर्थन के कारण पिछले 12 साल से कांगेस एक अदद सीट के लिए दिल्ली में तरस रही है। हालांकि कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने आम आदमी पार्टी के मुखिया (संयोजक) अरविन्द केजरीवाल ने नाटकीय तरीके से कांग्रेस और भाजपा को कोसते हुए 49 दिन बाद ही अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उस समय केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा के लोग उन्हें काम नहीं करने दे रहे। जान-बूझकर अड़ंगा लगा रहे हैं। तब उन्होंने यह भी कहा था कि ‘उनकी अपनी कोई विचारधारा नहीं है। अगर वामपंथी पार्टियां जनता की भलाई का काम करेंगी तो वह वामपंथी हो जाएंगे। इसी तरह अगर दक्षिणपंथी पार्टी जनता की भलाई करेगी तो वह दक्षिणपंथी हो जाएंगे। उन्हें तो बस जनता से मतलब है। आम आदमी पार्टी का गठन जनता ने, जनता की भलाई के लिए किया है। मुझे न तो बड़ा बंगला चाहिए न बड़ी गाडी। मैं तो केवल आम आदमी हूं और आम आदमी की भलाई चाहता हूं। मुझे पद का भी कोई लालच नहीं है।‘
जनता को और क्या चाहिए था? वह झांसे में आ गई। झूम उठी। इस बीच अरविंद केजरीवाल की सरकार ने मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी की घोषणा करके जनता के दिलों में अपनी जगह बना ली थी। उन्होंने मुफ्त चिकित्सा और सरकारी स्कूलों में उच्चकोटि की शिक्षा का वादा करके जनता को सम्मोहित कर दिया था। नतीजतन बाद के चुनाव में आम आदमी पार्टी का चुनाव चिह्न ‘झाडू’ लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा। 2015 में जब चुनाव के परिणाम आये तो दिल्ली विधानसभा की कुल 70 सीटों में से 67 पर आम आदमी पार्टी ने विजय पताका फहरा ली थी। भारतीय जनता पार्टी 32 से सिमटकर 3 पर आ गई थी और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। देश की राजधानी दिल्ली के राजनीतिक पंडित हक्का-बक्का थे। यह देश की राजनीति में अभूतपूर्व था। उसके बाद यानी पिछली बार 2020 के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने 62 सीटें अपने नाम की और महज 8 सीटों से भाजपा को संतोष करना पड़ा। वह भी तब जब भाजपा के सारे केंद्रीय मंत्री यहां तक की गृह मंत्री अमित शाह भी वोट के लिए गली-गली घूम रहे थे। सांसदों –विधायकों और कार्यकर्ताओं का क्या कहना। वह तो कई माह तक दिल्ली में डेरा डाले रहे।
लेकिन यह अचानक नहीं हुआ। आम आदमी से जुड़े लोग पढ़े- लिखे और अपने फन के माहिर लोग थे। इसमें अन्ना हजारे के आह्वान पर कई लोगों ने तो विदेश की अपनी मोटी तनख्वाह की नौकरी छोड़ दी थी और देश में भ्रष्टाचारमुक्त शासन की नींव रखने के लिए आये थे। स्वयं अरविंद केजरीवाल मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजे जा चुके थे। मनीष सिसोदिया एक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत थे। पूर्व क़ानून मंत्री शांतिभूषण थे, उनके बेटे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण थे, मशहूर कवि कुमार विश्वास थे, समाजवादी पृष्ठभूमि के प्रोफेसर आनन्द कुमार थे, सामाजिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव थे। कितने का नाम लिखें, और भी कई नामी-गिरामी लोग थे। इसके अलावा गरीब परिवार की राखी बिड़लान समेत आम लोग तो बहुतायत संख्या में थे ही। इसलिए इन लोगों पर किसी तरह के शक की गुंजाइश तो बिलकुल भी नहीं थी। सबकुछ फूलप्रूफ था।
जनता मुफ्त के झांसे में जकड़ चुकी थी। उसे लगने लगा था कि अब रामराज्य आने ही वाला है। लोगबाग इस तथ्य को भूल गए कि राजनीति में ‘एक हाथ से ले और दूसरे हाथ से दे’ का चलन है। कोई भी सियासी दल जनता को मुफ्त में कुछ नहीं देता है। घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या? कुख्यात ठग मिथिलेश श्रीवास्तव ऊर्फ नटवरलाल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि दुनिया में जबतक लालची लोग रहेंगे ठग भूखा नहीं रहेगा। मुझे कहने दीजिए कि आज देश की सियासत में यही हो रहा है।
बहरहाल, दूसरी बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपने पुराने साथियों  प्रोफेसर आनन्द कुमार, योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास आदि कई लोगों से किनारा कर लिया। एक चुनाव हारने के बाद वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और नवीन जयहिंद आदि लोग भी पार्टी छोड़कर चल दिए। ये सभी लोग आम आदमी पार्टी के शिल्पी थे। उसके बाद आम आदमी पार्टी एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी सरीखी बनकर रह गई और अरविंद केजरीवाल उसके सीईओ (चीफ एक्जक्यूटिव ऑफिसर)। जनता के हित में लोकलुभावन घोषणाएं की जाती रही। बेशक, इन वर्षों में दिल्ली के सरकारी स्कूलों की दशा में व्यापक सुधार हुआ है। महिलाओं की सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा जारी है। 200 यूनिट मुफ्त बिजली मिल रही है, लेकिन मुफ्त होने के बावजूद दिल्ली में पानी का संकट बरकरार है। केजरीवाल तो महिलाओं को दिल्ली मेट्रो में भी मुफ्त सफर कराना चाहते थे, लेकिन केंद्र सरकार और दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के हाथ पीछे खींच लेने के कारण वह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। मेट्रो रेल के निर्माण और परिचालन में तीनों की ही भागीदारी है।
इस बीच आम आदमी पार्टी ने चंडीगढ़ नगर निगम और पंजाब विधानसभा का चुनाव भी जीत लिया है। उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी मिल चुका है। इतने कम समय में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा किसी पार्टी को नहीं मिला है। लेकिन तस्वीर का स्याह पहलू यह है कि पार्टी के शीर्ष नेता स्वयं अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन और राज्यसभा के सांसद संजय सिंह शराब के ठेके के आवंटन मामले में जेल हो आये हैं। ये नेता फिलहाल जमानत पर हैं। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के दबाव में केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से न चाहते हुए भी इस्तीफ़ा देना पड़ा। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आतिशी मर्लेना काबिज हैं। वह अपने को ‘खडाऊं’ मुख्यमंत्री बताती हैं और कहती फिरती हैं कि चुनाव में बहुमत मिलने के बाद वह मुख्यमंत्री पद अरविंद केजरीवाल के लिए छोड़ देंगी। इस बीच पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल से केजरीवाल के सीएम रहते सरेआम मारपीट की घटना को दिल्ली की जनता देख चुकी है। मारपीट करनेवाला कोई और नहीं बल्कि केजरीवाल का निजी सचिव था। क्या केजरीवाल की सहमति के बिना यह संभव था? आम आदमी पार्टी और खुद वर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी ने स्वाति को भ्रष्ट कहा था। लोग तो पूछेंगे कि आम आदमी पार्टी में सिर्फ स्वाति ही भ्रष्ट हैं या कोई और भ्रष्ट है? अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन, संजय सिंह, अमानुल्लाह खान पर तो भ्रष्टाचार के मुकदमें लंबित हैं। स्वाति मालीवाल के खिलाफ क्या है? उधर, स्वाति मालीवाल भी आनेवाले चुनाव में आम आदमी पार्टी से अपने अपमान का बदला चुका लेना चाहती हैं। पद तथा पार्टी भी नहीं छोड़ रही हैं और पार्टी की कब्र भी मजे से खोद रही हैं। भाजपा और कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल की घेराबंदी कर दी है। उधर, अरविंद केजरीवाल की नजर ‘बड़ी कुर्सी’ पर है। लेकिन इसके लिए ‘आग का दरिया है और तैरकर जाना है’, क्योंकि सत्ता विरोधी लहर भी आम आदमी पार्टी की परीक्षा लेने को तत्पर है। अपने बचाव में अरविंद केजरीवाल ने चुनाव बाद मंदिर के पुजारियों और गुरुद्वारा के ग्रन्थियों को 18 हजार प्रतिमाह मानदेय देने की घोषणा कर रखी है। वह दिल्ली के 240 मस्जिद के इमामों और मुअज्जिनों को पहले से 18 हजार और 16 हजार मानदेय प्रतिमाह देते रहे हैं। हालांकि इमामों और मुअज्जिनों का दावा है कि उन्हें डेढ़ साल से मानदेय का भुगतान नहीं किया गया है। वे इसके लिए जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं।
इस बीच प्रधानमंत्री भी दिल्ली के चुनावी जंग में पूरे लावलश्कर के साथ कूद पड़े हैं। बीते दिनों राजधानी में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने आम आदमी पार्टी को ‘आपदा’ बताते हुए कहा कि अन्ना हजारे जी को आगे करके कुछ कट्टर बेईमान लोगों ने दिल्ली को ‘आपदा’ में धकेल दिया है। शराब से लेकर बच्चों के स्कूल में घोटाला, गरीबों के इलाज में घोटाला, प्रदूषण से लड़ने के नाम पर घोटाला, नौकरी में घोटाला में आकंठ डूबे हुए हैं। हालाँकि प्रधानमंत्री ने अपने आरोपों के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं दिये। अतीत में भी जहाँ-जहाँ चुनाव होते रहे हैं, प्रधानमंत्री विपक्ष के नेताओं पर इस तरह के आरोप लगाते रहे हैं। चुनाव बाद सब भूल जाते हैं।
वैसे भी आज की राजनीति में सुचिता की बात बेमानी है। बहरहाल, देखना दिलचस्प होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी डूबती है या अरविंद केजरीवाल कुशल तैराक बनकर पार्टी को पार ले जाते हैं। तबतक आप भी इंतजार कीजिए।
लेखक- राधा रमण
राधा रमण

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