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आरएसएस सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने इम्फाल में गणमान्य व्यक्तियों को किया संबोधित

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आरएसएस सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने इम्फाल में गणमान्य व्यक्तियों को किया संबोधित

 सामाजिक सद्भाव, सभ्यतागत एकता और मणिपुर में दीर्घकालिक शांति पर दिया बल
इम्फाल, 20 नवंबर 2025: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मणिपुर के तीन दिवसीय प्रवास के प्रथम दिवस इम्फाल में आयोजित एक विशिष्ट नागटीकों के कार्यक्रम में गणमान्य व्यक्तियों को संबोधित किया।
अपने संबोधन में उन्होंने संघ की सभ्यतागत भूमिका, राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों तथा शांतिपूर्ण और दृढ़ मणिपुर के लिए चल रहे प्रयासों पर विस्तार से विचार व्यक्त किए।
डॉ. भागवत ने कहा कि आरएसएस आज भी देश में निरंतर चर्चा का विषय है, जो प्रायः पूर्व नियोजित धारणाओं और प्रचार आधारित ग़लत विमर्शों से प्रभावित होता है।
संघ के कार्य को अतुलनीय बताते हुए उन्होंने कहा, “समुद्र, आकाश और सागर की कोई तुलना नहीं होती; उसी प्रकार आरएसएस का भी कोई विकल्प नहीं है। संघ का विकास पूरी तरह आर्गेनिक है और इसकी कार्यपद्धति स्थापना के 14 वर्षों बाद निश्चित हुई। संघ को समझने के लिए शाखा में जाना आवश्यक है। आरएसएस का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज, यहाँ तक कि जो विरोध करते हैं, को संगठित करना है, न कि समाज में कोई अलग शक्ति-केंद्र खड़ा करना।”
उन्होंने बताया कि संघ के विरुद्ध दुष्प्रचार 1932–33 के आसपास ही प्रारंभ हो गया था, विशेषकर उन बाहरी स्रोतों से, जो भारत और उसकी सभ्यतागत आत्मा को समझने में असमर्थ थे। उन्होंने आग्रह किया कि संघ को धारणा नहीं, तथ्य के आधार पर समझा जाना चाहिए।
संघ संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार के जीवन को स्मरण करते हुए उन्होंने उनके शैक्षणिक कौशल, जन्मजात देशभक्ति तथा स्वतंत्रता आंदोलन के सभी प्रमुख प्रवाहों में उनकी सक्रिय भूमिका का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार के मन में एक एकता और गुणात्मक रूप से सक्षम समाज की आवश्यकता का बोध ही संघ के निर्माण का आधार बना। “संघ एक मनुष्य-निर्माण की पद्धति है,” उन्होंने कहा और आग्रह किया कि संघ को जानना हो तो भूमि स्तर पर चलने वाली शाखा को देखना चाहिए।
उन्होंने स्पष्ट किया कि “हिंदू” शब्द किसी धार्मिक पहचान का नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और सभ्यतागत विशेषण का द्योतक है। एक सबल राष्ट्र के लिए गुणवत्ता और एकता अनिवार्य हैं। राष्ट्र की प्रगति केवल नेताओं पर नहीं, बल्कि संगठित समाज पर निर्भर करती है।
हिंदू चिंतन की समावेशी दृष्टि का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति।” सत्य, करुणा, पवित्रता और तप – ये धर्म के मूल तत्व हैं, और यही हमारी हिंदू सभ्यता के प्राण हैं।
उन्होंने कहा, “विविधता मिथक नहीं है। विविधता समाज की अंतर्निहित एकता की अभिव्यक्ति है।”
भारत की प्राचीन राष्ट्रभावना पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्र पाश्चात्य राज्य व्यवस्था से नहीं, बल्कि ऋषियों की तपस्या, त्याग और विश्वकल्याण की दृष्टि से उदित हुआ है। वसुधैव कुटुंबकम जैसे सिद्धांत हिंदुत्व की वैश्विक दृष्टि को प्रतिबिंबित करते हैं।
अपनत्व का विस्तार करने पर बल देते हुए डॉ. भागवत ने कहा, “समाज की शक्ति बढ़ती है तो दुनिया सुनती है। दुर्बल की बात कोई नहीं सुनता। संघ का उद्देश्य सक्षम, सजग और संगठित हिंदू समाज का निर्माण है।”
उन्होंने कहा कि संघ अपने यश या महिमा के लिए कार्य नहीं करता। “तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।” ऐसे समर्पित कार्यकर्ता ही हमारे गुरुओं द्वारा कल्पित “नायक” हैं।
अपने संबोधन में उन्होंने संघ के शताब्दी वर्ष में चल रहे पंच परिवर्तन उपक्रमों का उल्लेख किया – सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वबोध (स्वदेशी विचार, उत्पाद और अपनी पहचान का बोध), तथा नागरिक कर्तव्य।
उन्होंने मणिपुर की सांस्कृतिक परंपराओं, विशेष अवसरों पर पारंपरिक वेशभूषा और स्थानीय भाषाओं के प्रयोग की सराहना की और इन्हें और सुदृढ़ करने का आह्वान किया।
मणिपुर की वर्तमान परिस्थितियों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि स्थिरता बहाल करने के लिए समाज और समुदाय स्तर पर प्रयास जारी हैं। “विनाश में मिनट लगते हैं, लेकिन रचना में वर्षों; विशेषकर तब जब उसे समावेशी ढंग से और बिना किसी को हानि पहुँचाए करना हो। शांति-स्थापना में धैर्य, सामूहिक प्रयास और सामाजिक अनुशासन की आवश्यकता होती है।”
उन्होंने कहा कि जनता की जागरूकता सबसे महत्वपूर्ण कारक है। “सब कुछ सरकार से अपेक्षित नहीं किया जा सकता। समाज की जिम्मेदारी अनिवार्य है। स्वावलंबी भारत के लिए हमें समाज रूप में भी आत्मनिर्भर होना होगा। संघ सदैव मजबूत सामाजिक पूंजी (सोशल कैपिटल) पर जोर देता है।”
उन्होंने आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कौशल विकास की आवश्यकता पर भी बल दिया।
अपने उद्बोधन का समापन करते हुए उन्होंने संघ के आदर्श को दोहराया:
“संपूर्ण समाज का संगठन – सज्जन शक्ति के द्वारा।”
कार्यक्रम के अंत में सरसंघचालक ने प्रतिभागियों से कौशल विकास से जुड़े विभिन्न विषयों पर संवाद भी किया।

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