नई दिल्ली. केन्द्र की मोदी सरकार ने वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त किया था तो नेशनल कांफ्रेंस ने विरोध किया था. यहां तक कि फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली पार्टी केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में भी गई थी. लेकिन अब खुलासा हुआ है कि फारूक अब्दुल्ला ने निजी तौर पर केंद्र सरकार के इस कदम का समर्थन किया था. इस खुलासे के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीति में भूचाल आ गया है. गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने से कुछ दिन पहले ही फारूक अब्दुल्ला ने अपने बेटे उमर अब्दुल्ला के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिल्ली में मुलाकात की थी.
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख एएस दुलत ने अपनी नई किताब द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई में जो खुलासे किये हैं. फारूक अब्दुल्ला ने सार्वजनिक रूप से उसकी निंदा करते हुए इसे विश्वासघात बताया है. फारुक अब्दुल्ला ने दुलत के इस दावे पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और आरोप लगाया कि दुलत अपनी आगामी किताब के प्रचार के लिए इस तरह की सस्ती लोकप्रियता का सहारा ले रहे हैं. अब्दुल्ला ने दुलत के इस दावे को खारिज कर दिया कि यदि नेकां को विश्वास में लिया गया होता तो वह पूर्ववर्ती राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त करने के प्रस्ताव को पारित कराने में मदद करती. नेकां अध्यक्ष अब्दुल्ला ने इस पर कहा कि यह लेखक की महज एक कल्पना है.
दुलत की किताब द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई का 18 अप्रैल को विमोचन होने वाला है. जगरनॉट द्वारा प्रकाशित किताब के अनुसारए अनुच्छेद 370 पर फारूक अब्दुल्ला ने दुलत से पूछा था कि हम प्रस्ताव पारित करने में मदद करते. हमें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया दुलत लिखते हैं कि अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण से कुछ दिन पहले अब्दुल्ला व उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. निरस्तीकरण के बाद फारूक अब्दुल्ला को सात महीने तक हिरासत में रखा गया था. इस अवधि के दौरान दिल्ली ने उनके रुख की सावधानीपूर्वक जांच की. दुलत कहते हैं वे चाहते थे कि वह नई वास्तविकता को स्वीकार करें. उन्होंने लिखा कि 2020 की शुरुआत में अपनी रिहाई के बाद फारूक अब्दुल्ला ने दिल्ली के कदम का सार्वजनिक रूप से समर्थन करने से इंकार कर दिया.
उन्होंने दुलत से कहा किमैं जो भी कहूंगा संसद में कहूंगा. फिर भी उन्होंने चुपचाप गुपकार घोषणा पत्र के लिए पीपुल्स अलायंस बनाया. जिसमें क्षेत्र की स्वायत्तता और राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग करने के लिए पीडीपी की महबूबा मुफ़्ती जैसे प्रतिद्वंद्वियों को एकजुट किया. यह एक ऐसी मांग है जो अभी भी जारी है. श्री दुलत ने पुस्तक में यह भी लिखा है कि इंदिरा गांधी द्वारा 1984 में अब्दुल्ला की सरकार को बर्खास्त करना, एक विश्वासघात था जिसे वह (अब्दुल्ला) हमेशा अपने दिल में रखेंगे. दुलत लिखते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान वाजपेयी उमर के लिए अपने पिता से भी अधिक सम्मानित बन गये थे.
उस दौरान उमर को प्रमुखता दी गई जैसे कि विदेश में वाजपेयी के साथ जानाए जूनियर विदेश मंत्री नियुक्त किया जाना और उन्हें कश्मीर का नया चेहरा बनाना. इस बीच अब्दुल्ला को उपराष्ट्रपति पद के लिए मनोनीत करने का वादा करके बहलाया गया था. दुलत स्वीकार करते हैं यह एक प्रलोभन था. दूसरी ओर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) विधायक वहीद उर रहमान पर्रा ने रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत की नवीनतम पुस्तक में किए गए उस खुलासे को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस पर निशाना साधा जिसमें उन्होंने कहा है कि फारूक अब्दुल्ला ने संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने का निजी तौर पर समर्थन किया था.





















