हमास का दमन जरूरी है। हमास जैसे हिंसक आतंकवादी संगठन को दुनिया के लिए त्रासदी नहीं बनने देना चाहिए। हमास को शांति के पाठ पढाने के लिए दुनिया के नियामकों की संहिताएं सक्रिय होनी चाहिए। हिंसा कर मुस्लिम आबादी के बीच छिप जाने की मानसिकता पर भी चोट होनी चाहिए। आतंकवादियों को संरक्षण देने वाली और अपने घरों में आतंकवादियों को पनाह देने वाली मुस्लिम आबादी प्रतिहिंसा के शिकार होने से कैसे बच सकती है? फिलस्तीन को सिर्फ मुस्लिम आबादी के देश के रूप में देखने की आतंकवादी नीति छोड़नी ही होगी। इजरायल के अस्तित्व को अस्वीकार फिलिस्तीन समस्या का समाधन संभव नहीं है।
इजरायल के उपर हमास के हमले, हिंसा और अमानवीय करतूतों के साथ ही साथ आंतकवादी-मजहबी गतिविधियों के लिए दोषी कौन-कौन हैं? निश्चित तौर पर फिलिस्तीन को मजहबी तौर पर देखने और मजहबी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हिंसा और आतंकवाद के माध्यम से दहशत फैलाने के लिए हमास दोषी जरूर है। पर हमास के साथ कई अन्य पक्ष भी दोषी हैं। अमेरिका भी दोषी है, यूरोप भी दोषी है, मुस्लिम देश भी दोषी हैं, इस्लाम के नाम पर कुकुरमुत्ते की तरह खडे दुनिया भर के इस्लामिक आतंकवाद भी दोषी हैं, अल जजीरा जैसे मीडिया संस्थान भी दोषी है जो हमास ही नहीं बल्कि दुनिया भर के आतंकवादी संगठनों का हितपोषक हैं, संरक्षणकर्ता है और मुस्लिम आतंकवादियों के पक्ष में जनमत तैयार करता है।
अब आप यहां कहेंगे कि अमेरिका और यूरोप कैसे दोषी है? अमेरिका और यूरोप इसलिए दोषी हैं कि ये इजरायल की प्रतिहिंसा और आत्मरक्षा के अधिकार का दमन करते हैं, इजरायल की अस्मिता को कमजोर करते हैं, इजरायल को संयम रखने का पाठ पढाते हैं, बर्बर और अमानवनीय हिंसा के बाद भी प्रतिहिंसा की कार्रवाई को मानवता विरोधी करार देते हैं। संयुक्त राष्टसंघ अपनी विभिन्न संहिताओं के माध्यम से इजरायल की घेराबंदी करता है।
अंतर्राष्टीय मजबूरी और दबाव के कारण इजरायल हमास जैसे मुस्लिम आतंकवादियों और संगठन को संयम और शांति का पाठ पढाने में असफल होता है। जहां तक मुस्लिम देशों की बात है तो मुस्लिम देश हमास जैेसे आतंकवादी संगठनों को हथियार ही उपलब्ध नहीं कराते हैं बल्कि उनका वित पोषण भी करते हैं। हमास जैसे आतंकवादी संगठनो को मानवाविधकार के नाम पर मिलने वाले फायदे और सुविधाओं का दुष्परिणाम सिर्फ इजरायल ही नहीं झेलता है बल्कि भारत जैसे लोकतांत्रित देश भी झेलता है, भारत भी मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की हिंसा और उनकी मजहबी सोच की चुनौती से जूझ रहा है।
हमास की वर्तमान हिंसा बहुत ही घिनौनी है, जहरीली है, खतरनाक है और मुस्लिम यूनियबाजी को बढावा देने वाली है। आतंकवादी संगठनों के लिए युद्ध की परमपरा और संहिताएं कोई अर्थ नहीं रखती हैं। युद्ध की एक समृद्ध परमपरा और सिद्धांत है। युद्ध की स्वयं मान्य संहिताएं भी हैं और अंतर्राष्टीय संहिताएं भी हैं। युद्ध की संहिताएं आम नागरिकों को निशाना बनाने से रोकती हैं, भीड और सार्वजनिक स्थलों पर हमले करने से परहेज करने की सीख देती हैं। युद्ध के दौरान सामरिक जगहों पर ही हमले होते हैं। युद्ध की संहिता को तोडने वालों को युद्ध अपराधी कहा जाता है और युद्ध अपराध के लिए सजा भी अंतर्राष्टीय स्तर पर तय है। हमास ने इस बार के युद्ध में युद्ध संहिताओं की धज्जियां उठा कर रख दी है। उसने इजरायल के सामरिक जगहों पर कम ही हमले किये। उसने नागरिक ठिकानों और घने आबादी के बीच हमले किये हैं। सिर्फ हमले ही नहीं किये हैं बल्कि उनकी कई गतिविधियां ऐसी हैं जो बर्बर हैं और अमानवीय है। हमास के हमले को देख कर ऐसा लगता है कि वह इजरायल सरकार और इजरायल की सेना से नहीं लड रही है, इजरायल की सेना को निशाना नहीं बना रही है बल्कि इजरायल की जनता को निशाना बना रही है। सड़कों से आम नागरिकों को उठा लिया गया, उन्हें मौत का घाट उतार दिया गया, बहुतों को बंधक भी बना लिया। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हमास ने महिलाओं को भी बंधक बनाने का काम किया है, महिलाओं की इज्जत को सरेआम अपमानित करने वाले वीडीओ फूटेज आये हैं। एक दिन में हमास ने इजरायल पर पांच सौ से अधिक रॉकेट दागे हैं और उसके सैकडों दहशतगर्दो ने इजरायल की सीमा में घुसकर हिंसा को अंजाम दिया है। इजरायल के सौ से अधिक नागरिक हमास के हमले में जान गंवा चुके हैं।
हमास के इस भीषण हमले का प्रतिकार करने का अधिकार इजरायल के पास है या नहीं? इजरायल को प्रतिहिंसा करने का अधिकार है या नहीं? इजरायल की प्रतिहिंसा के अधिकार को कब तक रोक कर रखा जायेगा? निश्चित तौर पर इजरायल को प्रतिहिंसा का अधिकार है। युद्ध छेडने वाले और भीषण हमले करने वाले हमास को शांति का पाठ पढाने का अधिकार इजरायल को है। हमास ही नहीं दुनिया में जितने भी मुस्लिम आतंकवादी संगठन हैं उनका एक मात्र. नीति और हथकंडा है हिंसा करो फिर मानवाधिकार का पाठ पढाओं। आंतंकवादी हिंसा कर मुस्लिम आतंकवादी अपनी संरक्षणकर्ता मुस्लिम आबादी के बीच संरक्षण ले लेते हैं, छिप जाते हैं। फिर प्रतिहिंसा होती है तो मजहबी मुस्लिम आतंकवादी संगठन के लोग मानवाधिकार हनन का हल्ला मचाने लगते हैं। प्रोपगंडा यह फैला दिया जाता है कि मानवाधिकार की कब्र खोदी जा रही है। प्रतिहिंसा में निर्दोष लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, निर्दोष लोगों की जानें ली जा रही है। हमास आमने-सामने की लडाई नहीं लडता है। हमास ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी मुस्लिम आतंकवादी संगठन आमने-सामने की लडाई नहीं लडते हैं, हिंसा और आतंकवाद की घटनाओं को अंजाम देकर आबादी वाले क्षेत्रों में पनाह ले लेते हैं। दुनिया भर में मुस्लिम आतंकवादियों के संरक्षणकर्ता और पैरबीकार विभिन्न प्रकार के लोग होते हैं जो विभिन्न तरह से चेहरे घारण किये होते हैं। कुछ एनजीओ तो कुछ कलाकार कुछ राजनीतिज्ञ, कुछ मानवाधिकर संरक्षक आदि के चेहरे वाले होते हैं।
इजरायल के हाथ बांध कर हमास जैसे मुस्लिम आतंकवाद का पोषण किया जाता है। वैसे देश प्रतिबंध लगाते हैं, रोक लगाते हैं जो खुद प्रतिहिंसा का बदबूदार उदाहरण होते हैं। जिन्हांेने प्रतिकार के नाम पर मानवाधिकार का खूब खून बहाया है। उदाहण के लिए अमेरिका को ही ले लीजिये। अमेरिका के चर्ल्ड टेड सेंटर पर हमला हुआ। हजारों लोग मारे गये। अमेरिका ने प्रतिहिंसा में अफगानिस्तान को कब्र बना दिया। तालिबान और अकलायदा के विनाश के नाम पर लाखों लोगों को मार डाला। चीन अपने यहां मुस्लिम आतंकवाद के दमन के लिए मुस्लिम आबादी के संहार के लिए सैनिक अभियान चलाता है। वीगर मुसलमानों का चीन संहार कर रहा है। पाकिस्तान आजादी की माग करने वाले बलूचों पर सैनिक अभियान चलाता है। लेकिन जब इजरायल प्रतिहिंसा पर उतरता है तो अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे देश लठैत बन जाते हैं, इजरायल को शांति का पाठ पढाने लगते हैं। इजरायल के पास इतनी सामरिक शक्ति है कि वह फिलिस्तीन आतंकवादी संगठनों को ही नहीं बल्कि पूरी मुसिलम दुनिया को स्वयं के बल पर पराजित कर सकता है। पूरी मुस्लिम दुनिया को वह पराजित करने का प्रदर्शन भी कर चुका है।
फिलिस्तीन को लेकर मुस्लिम यूनियनबाजी हिंसक होती है, आतंकवादी होती है और मानवता विरोधी होती है। फिलिस्तीन के समर्थक मुस्लिम देश और मुस्लिम आबादी इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार करते ही नहीं है। फिलिस्तीन सिर्फ मुस्लिम आबादी का देश नहीं है। फिलिस्तीन में मुस्लिम आबादी के साथ ही साथ ईसाई भी है और यहूदी भी हैं। पर हमास ही नहीं बल्कि सभी मुस्लिम आतंकवादी संगठनों को यह स्वीकार नहीं है कि फिलिस्तीन में ईसाई और यहूदी आबादी का भी अस्तित्व होनी चाहिए। मुस्लिम देश एक बार महायुद्ध करके भी देख लिया है। मुस्लिम देशों को इजरायल ने पराजित कर दिया था। वर्तमान में कई मुस्लिम देश के शासक इजरायल का दुनिया के नक्शे से संहार करने की घोधणा भी करते हैं। मलेशिया के पूर्व शासन ने ऐसी ही घोषणा की थी जिस पर मुस्लिम देश बहुत ही खुश थे।
फिलिस्तीन के पास कोई अपनी अर्थव्यवस्था नहीं है। अमेरिका और यूरोप की सहायता पर फिलिस्तीन के चुल्हा जलता है। अमेरिका और यूरोप आर्थिक सहायता न करे तो फिलिस्तीन की आबादी भूखे मरेगी। मुस्लिम देश हमास जैसे आतंकवादी संगठन का वित पोषण करते हैं। मुस्लिम देशों से मिलने वाली सहायता से ही हमास हथियार खरीदता है। ईरान और तुर्की से हमास को बहुत बडी सहायता मिलती है। तुर्की के एक समुद्री जहाज को इजरायल ने मार कर डूबो दिया था। तुर्की का वह जहाज हमास के लिए हथियार लेकर जा रहा था। फिर अफवाह फैलाया गया कि जहाज में सिर्फ राहत सामग्री थी जो गरीब नागरिकों के लिए भेजी जा रही थी। तुर्की के जहाज को समुद्र मे दफन करने के खिलाफ बहुत बडी प्रतिक्रिया हुई थी और यूरोप-अमेरिका ने इजरायल की घेराबंदी भी की थी। लेकिन इजरायल ने अपनी आत्मरक्षा की शक्ति और अधिकार पर अडिग था।
फिलिस्तीन समस्या का समाधान हर कोई चाहेगा। पर फिलिस्तीन को सिर्फ मुस्लिम आबादी के देश के तौर पर देखना बंद करना होगा, इजरायल के अस्तित्व को अस्वीकार करने की हिंसक मानसिकता को छोडनी होगी।
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आचार्य विष्णु हरि
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