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मंगलवार को भारतीय संविधान दिवस के दिन कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में संविधान रक्षा दिवस मनाया। इस मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि देश में न्याय यात्रा और जनजागरण यात्रा की तरह ईवीएम भगाओ, देश बचाओ यात्रा शुरू करने की जरूरत है। हम इस तरह के अभियान के लिए तैयार हैं। इसके लिए कांग्रेस विपक्षी दलों से बात करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि देश में ईवीएम की बजाय मतपत्रों से मतदान कराया जाएगा तो भाजपा का सफाया हो जाएगा। खड़गे ने देश में जातीय जनगणना कराने की भी कांग्रेस की पुरानी मांग को दोहराया। लेकिन यहां हम ईवीएम को लेकर ही बात करेंगे।
दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में अपने अब तक के सबसे शर्मनाक पराजय के बाद कांग्रेस बौखला गई है। उसी बौखलाहट में ही वह अनाप- शनाप और बेतुकी मांग कर रही है। ऐसा करके वह कान की बीमारी में जोड़ों के दर्द की दवा से इलाज कराना चाहती है। बीते दिनों हरियाणा की हार के बाद भी कांग्रेस ने कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया दी थी। मुझे कहने दीजिए कि ऐसा कहकर कांग्रेस कहीं ‘नाच न जाने ऑंगन टेढ़ा’ की बहुचर्चित पुरानी लोकोक्ति को चरितार्थ तो नहीं कर रही है।
ईवीएम फूलप्रूफ निष्पक्ष और सुरक्षित है या नहीं, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन चुनाव आयोग ने जब भी ईवीएम की निष्पक्षता और इसके फूलप्रूफ होने का डेमो दिया तब सभी राजनीतिक दलों के नेता चुनाव आयोग की बैठक में पहुंचे और संतुष्ट होकर चाय पीकर चले आए। होना यह चाहिए था कि आयोग के बुलावे पर राजनीतिक दल नेताओं को न भेजकर आईटी एक्सपर्ट को भेजते, ताकि देश को भी ईवीएम के निष्पक्ष होने का सबूत मिल जाता। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। ईवीएम को लेकर जब भी विवाद उछला, चुनाव आयोग ने वही पुरानी प्रक्रिया अपनाई और बात आई- गई हो गई। इसलिए आज तक देश का जनमानस ईवीएम को लेकर कभी संतुष्ट नहीं हो पाया।
अब बड़ा सवाल यह कि जिस ईवीएम को दुनिया के अधिकांश बड़े देशों ने नकार दिया उसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत ने क्यों और कैसे अपना लिया। इसकी अलग कहानी है।
पीछे मुड़कर देखें तो देश के अलग- अलग हिस्सों में बूथ कैप्चरिंग की वारदतें इतनी बढ़ गई कि 1989 में सरकार ने सभी दलों की आमराय से निष्पक्ष और विवाद रहित मतदान के लिए ईवीएम को विकल्प बनाया। बताना जरूरी है कि अपने देश में बूथ कैप्चरिंग की पहली वारदात 1957 के चुनाव झूठे में मुंगेर (अब बेगूसराय) जिले के मटिहानी विधानसभा क्षेत्र में हुई थी, जब दबंगों ने बलपूर्वक अपने पक्ष में मतदान करा लिया। बाद के दिनों में बूथ कैप्चरिंग की वारदतें लगातार बढ़ती गई। राजनीति ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ सरीखी हो गई। राजनीति में अपराधियों के पदार्पण की मूल वजह भी यही है। वरना आजादी के बाद की राजनीति इतनी खराब नहीं थी। सियासत में अच्छे लोग सक्रिय थे जो समाज का भला- बुरा सोचते थे। इस संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को याद करना बेमानी नहीं होगा। चौधरी साहब अक्सर कहा करते थे कि बेटी की शादी अगर गलत घर में हो जाए तो परिवार खराब हो जाता है लेकिन वोट यदि गलत व्यक्ति को मिल जाए तो पूरा समाज खराब हो जाता है।
मुझे कहने दीजिए कि देश में बूथ कैप्चरिंग से लेकर राजनीति के अपराधीकरण और अपराधियों को सांसद विधायक बनाने की सिरमौर कांग्रेस ही रही है। इसके अलावा जिस ईवीएम को लेकर कांग्रेसी अब हाय- तौबा मचा रहे हैं, उसे उपयोग में लाने वाली भी कांग्रेस ही रही है। भले ही उसमें सभी सियासी दलों की सहमति रही हो। अब कांग्रेस कहती है कि ईवीएम में हेराफेरी संभव है। तो क्या कांग्रेस से यह क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि यदि ईवीएम से मतदान में गड़बड़ी कराई जा सकती है तो उसने क्या सोचकर देश में ईवीएम से मतदान की व्यवस्था लागू कराई थी। कांग्रेस पार्टी को यह भी बताना चाहिए कि क्या हिमाचल, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, दिल्ली, तमिलनाडु और केरल की सरकारें ईवीएम की गड़बड़ी से ही बनी हैं? यदि नहीं तो फिर महाराष्ट्र पर हो हल्ला मचाने का तुक क्या है? तुर्रा यह कि संसद में मल्लिकार्जुन खड़गे सीना ठोंक कर कहते हैं कि संविधान की गरिमा बनाने में उनका भी 54 साल का योगदान रहा है।
दरअसल, यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि देश की अधिकांश समस्याओं की जड़ कांग्रेस ही रही है। मन मुताबिक नियम बनाने, कानून से खिलवाड़ करने और भ्रष्टाचार की सड़क बनाने में कांग्रेस का कोई सानी नहीं है। भले ही कांग्रेस की भ्रष्टाचार की सड़क पर अब नरेंद्र मोदी अपना रथ दौड़ा रहे हैं।
इस बीच, ईवीएम की बजाय बैलट पेपर से चुनाव कराने संबंधी एक याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को खूब खरी- खरी सुनाई है। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि जब नेताओं को दिक्कत नहीं है तो आपको क्या कष्ट है। याचिकाकर्ता द्वारा यह कहने पर कि चंद्रबाबू नायडू और जगन मोहन रेड्डी भी ईवीएम में गड़बड़ी की बात करते हैं। सुप्रीम अदालत ने कहा कि नेताओं के साथ यही दिक्कत है। जब चुनाव जीत जाते हैं तब उन्हें ईवीएम अच्छा लगता है और हार जाते हैं तब अपने अंदर झांकने की बजाय दोषी ईवीएम को बताने लगते हैं।