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उमेश भैया जी,
आपका इस लेख के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और इसके साथ मैं ये भी कहूंगा जो डेलीगेट सरकार से बातें करने जा रहे हैं, वह सरकार से यह भी कहे की हिंदी उठाने से पहले जो हिंदी में अनुवाद किया गया हमारे शास्त्र हैं जैसे कि तुलसीकृत रामायण, महाभारत, गीता के शास्त्रीय संस्कृत श्लोक हैं, पहले इनका भाषा को परिवर्तन कर दिया जाए। इसके बाद में हिंदी को बारे में सोचा जाए क्योंकि अगर हम हिंदी नहीं पढ़ेंगे और हिंदी का हमारा ज्ञान ही नहीं रहेगा, इन धर्म ग्रंथों को कौन पढगा। यह रामायण, गीता इन सबको पढ़ने वाला कौन होगा? यह सब तो बर्बाद हो जाएंगे। इसलिए मैं चाहता हूं पहले इन सबको अनुवाद करके असमिया, बांग्ला, अंग्रेजी में कर दिया जाए ताकि हम अंग्रेजी पढ़ कर अपना ग्रन्थ भी पढ़ सके।
परमेश्वर गोस्वामी फनाई, करीमगंज