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उम्र तेरी बिती जाती है तुने ना लिया प्रभू का नाम ( लेख)

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एक बहुत ही पुराना भजन है कि ,उम्र तेरी बिति जाती है तुने ना लिया प्रभू का नाम,,  वास्तव में पुराने गायक लेखक संदेश दिया करते थे कि अमूल्य जीवन का बचपन जवानी एवं बुढापे में अपनी पढाई ग्रहस्थ जीवन जीने के बाद दायित्व से मुक्त होकर ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए लेकिन सच में देखा जाए तो आज कोई भी दायित्व मुक्त होना ही नहीं चाहता.
    जीवन का सबसे कठिन समय यदि मृदुभाषी व्यावहारिक समरस व्यक्ति हो तो परिवार का हर छोटा बङा सदस्य सम्मान एवं सेवा अवश्य करता है लेकिन उसके योग्य बनना होता है सिर्फ दकियानूसी कुचरनी अपने आपको सबकुछ समझने वाला इससे वंचित रह जाता है क्योंकि उसमें इतनी कमियाँ होती है वो सबसे दूरियाँ बना लेता है.इससे वो सिर्फ पारावारिक सदस्यों के साथ समाज से भी कट जाता है.
    जो व्यक्ति सिर्फ अपने आप को बुधिमान तथा दुसरे को हेय दृष्टि से देखता है, अपने खाली खजाने के बावजूद दुसरों में मीनमेख निकालना, उटपटांग टीप्पणी करना बिना लियाक़त मसखरी करना आपस में भङकाते रहना वो सबकी नजर में गिर जाता है.
   ऐसे लोग सिजनी मेंढक तथा गिरगिट की तरह होते हैं जो चापलूसी की हद्द पार करके मसखरी करते हैं. लोग तो हट जाते हैं लेकिन अपनी आदतों से मजबूर ऐसा व्यक्ति अकेला ही नहीं बल्कि अछुत बन जाता है.
    जीवन एक कला है तथा जीना भी एक कला है इसलिए अपने जीवन में इतने अच्छे काम कर जाने चाहिए कि आने वाली पिढियां भी याद करें.
 मदन सिंघल पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम मोबाइल नंबर 9435073653

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