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मंजरियां खिल रही हैं
आम्र टहनियां हैं झूम रहीं
भ्रमरों और मधुमक्खियों का गुंजन है
तितलियां फूलों के रसास्वादन में मशगूल हैं।
ऋतुओं का राजाधिराज वसंत है आया…!
मृदु कोमल कच्चे वृंत इठलाये
बावली, मस्तमौला हवाएं
झूम रहीं हैं आज फिजाएं
धूप बिछ रही है मैदानों, पठारों और पहाड़ों में।
ऋतुओं का राजाधिराज वसंत है आया…!
गेहूं,चना और सरसों के खेत
महके आज हर आंगन की रेत
यौवन झड़ रहा चहुंओर
हे सखी ! मन हो रहे हैं आज मयूर ।
ऋतुओं का राजाधिराज वसंत है आया…!
बगिया स्वर्ण-रजत सी महक रही
सुरभि पवन आज घोल रही
खुश हैं तारें, खुश है सूरज-चंद्रमा, खुश हैं धरती आसमां
पीली पीली चुनर लहरायें
धरती आज नगमे गायें।
ऋतुओं का राजाधिराज वसंत है आया…!
हंस रही है सारी सृष्टि
हंस रही आज दशों दिशाएं
हंस रही कचनार कली
मलयज झोंकें बुला रहे हैं
प्रज्जवलित हो उठे आज मन के दीप।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
मोबाइल 9828108858