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29 नवम्बर/प्रेरक-प्रसंग
एकात्मता रथों का त्रिवेणी महासंगम
विश्व हिन्दू परिषद के नाम और काम को फैलाने में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन का बहुत बड़ी भूमिका है; पर इससे पूर्व संगठन का विस्तार भी जरूरी था। अतः 1983 में ‘एकात्मता यज्ञ’ यात्रा का आयोजन किया गया। इस अद्भुत योजना के रचनाकार थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले, जिन्होंने स्वयं नेपथ्य में रहकर पूरे कार्यक्रम को दिशा दी।
1981 में हुए मीनाक्षीपुरम् धर्मान्तरण कांड से संघ परिवार में चिन्ता व्याप्त थी। अतः कुछ ऐसा आयोजन करने का विचार हुआ, जिससे हिन्दुओं के सभी मत, पंथ, संप्रदाय एक साथ आ सकें। इसके लिए तीन ट्रकों पर गंगा माता और भारत माता की विशाल मूर्तियों वाले तीन रथ बनवाए गये। तांबे के बड़े कुंभ में गंगोत्री का पावन जल था। पहला ‘पशुपति रथ’ 28 अक्तूबर को काठमांडु से चलकर 16 दिसम्बर को रामेश्वर पहुंचा। दूसरा ‘महादेव रथ’ 16 नवंबर को हरिद्वार से चलकर 20 दिसम्बर को कन्याकुमारी पहुंचा। तीसरा ‘कपिल रथ’ 15 नवंबर को गंगासागर से चलकर सोमनाथ तक गया।
इन तीन प्रमुख यात्राओं के साथ 312 उपयात्राएं भी थीं। इनमें उस क्षेत्र की पवित्र नदी और तीर्थों का जल लिया गया। इस प्रकार 38,526 स्थानों से 77,440 पवित्र कलश आये। उपयात्रा का कार्यक्रम ऐसे बनाया गया जिससे देश के सभी विकास खंडों तक ये पहुंच सकें। इसके बाद वे किसी एक प्रमुख यात्रा के साथ मिल जाते थे। हर जगह आठ-दस लोगों की स्वागत एवं संचालन समिति बनाई गयी। 974 स्थानों पर यात्राओं का रात्रि विश्राम हुआ। इस दौरान 4,323 धर्मसभाएं हुईं, जिसमें कुल मिलाकर 7.28 करोड़ लोग सहभागी हुए। इन रथों ने 50,000 कि.मी से अधिक की दूरी तय की।
यात्रा से पहले इसका पूरा विवरण वि.हि.प महासचिव हरमोहन लाल जी, संयुक्त महासचिव अशोक सिंहल, कार्यालय मंत्री जसवंत राय तथा स्वागत समिति के अध्यक्ष स्वामी विजयानंद ने राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह को दिया। वे यह योजना सुनकर तथा इसका नक्शा देखकर हैरान रह गये। उन्होंने इसके लिए शुभकामनाएं दीं। पूरी यात्रा में हिन्दुओं का उत्साह अवर्णनीय रहा। सभी दलों के राजनेता अपने मतभेद भूलकर दर्शन को आये। पुरुषों से अधिक उत्साह महिलाओं में था। हरिद्वार से कई लाख प्लास्टिक की छोटी बोतलों में गंगाजल भरा गया, जो यात्रा के दौरान प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को दिया गया।
एकात्मता यज्ञ यात्रा की सफलता में वि.हि.प अध्यक्ष महाराणा भगवत सिंह मेवाड़, जगद्गुरु शंकराचार्य शांतानंद जी, स्वामी चिन्मयानंद जी, कांची के शंकराचार्य, जैन मुनि, बौद्ध भिक्खु, सिख संत, कबीरपंथी महंतों आदि ने पूर्ण सहयोग दिया। एक ओर इसमें निर्धन वर्ग उमड़ रहा था, तो दूसरी ओर उद्योगपति भी सहयोग कर रहे थे। कुछ जगह विघ्नसंतोषियों ने बाधा डाली; पर दो महीने तक पूरा देश भारत माता और गंगा माता की जयकारों से गूंजता रहा। मीडिया ने भी बहुत सहयोग दिया। यात्रा की योजना इतनी परिपूर्ण थी कि कोई कार्यक्रम निरस्त या देरी से नहीं हुआ। हर दिन औसत तीन धर्मसभा हुईं।
इस यात्रा में 29 नवंबर, 1983 का दिन बहुत विशेष है। इस दिन तीनों प्रमुख रथों का संगम तथा विराट धर्मसभा नागपुर के रेशीम बाग में हुई। यहीं संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार की समाधि तथा दूसरे सरसंघचालक श्री गुरुजी का स्मृति चिन्ह बना है। संघ के बड़े शिविर आदि इसी परिसर में होते हैं। मैदान तथा आसपास की सड़कें खचाखच भरी थीं। सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस पूरे कार्यक्रम में उपस्थित रहे। एक दिन पूर्व उन्होंने भारत माता की मूर्तियों के निर्माता दम्पति तथा जगाधरी में बने बड़े कुंभ/कलश के निर्माता भाइयों का सम्मान किया। यात्रा के स्वागत आदि लिए बनी समितियां बाद में वि.हि.प में समाहित हो गयीं। इस संगठन के बल पर ही फिर राममंदिर आंदोलन हुआ।





















