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हम कौन हैं ? कहां से हैं?
हमारा परिचय हमारी रस्में स्वयं करा देंगी……
बहुत कुछ है यानि कुछ तो है जो सबके बस का नहीं पर हां उनके बस का तो है जो बारात के आने पर हर बाराती को पहनाते हैं रंग बिरंगी नकली मोतीयों की या किसी और प्रकार की माला.अगर हम इसमें परिवर्तन कर हर बाराती का स्वागत माला के स्थान पर फूलाम गमछा से करें तो स्थानीयता भी रहेगी और बुनकरों के व्यवसाय में एक श्री बृद्धि भी.सोचता हूं ये तो कन्या पक्ष के लिये आचरण योग्य है.
इसी प्रकार अगर सूक्ष्म रुप से कर सकें तो कन्या पक्ष वाले मिलनी के वक्त मिलनी के साथ फूलाम गमछा भी पहना सकते हैं तभी तो हम लोगों की एक प्रकार की चेष्टा होगी स्थानीयता को अपनाने की. हम कहते तो हैं कि हमारे बुजुर्ग इतने सौ वर्ष पहले असम में आये थे तो हमें सहर्ष स्वीकार करनी चाहिए उक्त प्रथा भी.इतना ही नहीं अगर विवाह करने के लिए असम से बाहर भी जाना पड़े और हम इस प्रथा का पालन करें तो वहां आगन्तुक मेहमान स्वत: जान जायेंगे कि हम किस प्रदेश के हैं,लोग कहेंगे मारवाड़ी असमिया या असमिया मारवाड़ी परिवार है और इस सांकेतिक परिचय से हमें अपना कोई और परिचय देने की आवश्यकता कम ही होगी.
हमारे असम का और हमारा परिचय हमारी रस्में स्वयं करा देंगी.
मुरारी केडिया ९४३५०३३०६०





















