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ऐसा बाग लगाओ माली, खुशबू बहे जमाने में।
लूट सके सो जी भर लूटे कमी न पड़े खजाने में।।
रंग बिरंगी उड़ें तितलियाँ,
चिड़े-चिड़ी डालों पर खेलें।
कलियों पर भँवरे मण्डराएँ,
पेड़ों से लिपटीं हों बेलें।।
मद्धिम-मद्धिम चलें बयारें,
मस्ती की झर उठें फुहारें,
कोई कसर न रहे प्रीति की, परिभाषा बतलाने में।।
ऐसा बाग————।।1।।
थके पखेरू भली नींद लें,
सुबह मिले कलरव सुनने को।
थिरक उठे संगीत गीत का,
कविता का मौसम चुनने को।।
महक उठे धरती का कण-कण,
बीते मधुर राग में क्षण-क्षण,
पत्ती-पत्ती खुली हवा में, लग जाए लहराने में।।
ऐसा बाग————।।2।।
कलियों को खिल जाने देना,
फूलों को मुस्काने देना।
जो भी आना चाहे साथी,
खोलो फाटक आने देना।।
चौकीदारों से कह देना,
सबके कोप तलक सह लेना,
कोई रोक-टोक मत करना, मालिन लगे रिझाने में।।
ऐसा बाग————।।3।।
लिए हवा सन्देशा आई,
कोयल ने तब पाती खोली।
रसमय वाणी में आमन्त्रण,
देकर फूलों की रति बोली।।
तन के साथ “प्राण”अभ्यागत,
करते हुए मिलेंगे स्वागत,
मन से भेजे नेह निमन्त्रण, अपने लगे बुलाने में।।
ऐसा बाग————।।4।।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
“वृत्तायन” 957 स्कीम नं. 51 इन्दौर – 6 म.प्र.
9424044284
6265196070