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एक से अधिक संस्था का मुखिया बनना स्वयं के साथ समाज के साथ धोखा– मदन सुमित्रा सिंघल

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परिश्रम करना तो आजकल किसी भी संस्था में नहीं रहा सब काम पैसे से होते हैं लेकिन निरिक्षण एवं निगाह रखनी पड़ती है तथा अपना अमूल्य समय भी देना पङता है आजकल आनेजाने एवं फुटकर खर्च भी सभी छोटे बङे पदाधिकारी एवं कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाता है। लेकिन आवश्यकता से अधिक धन संग्रह करना फिर बहाना बनाकर बैंक में ना डालना। बार बार यानि एतबार एक ही दानदाता के उपर बोझ डालना उचित नहीं है। जब कोई भी कार्यक्रम बनाते हैं उसी समय ऐसे दानदाता तय करें जो पहले कभी नहीं दिया हो। धार्मिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी अपने शहर दर्शकों श्रोताओं एवं भक्तों की उपस्थिति के अनुसार ही कम से कम करें लेकिन यादगार एवं एतिहासिक कार्यक्रम करने से लोग धन समय देंगे तथा समर्थन के साथ प्रशंसा भी करेंगे। जो व्यक्ति हरपद पाने के लिए हमेशा लालायित रहें तथा एक से अधिक संस्था का  मुख्य पदाधिकारी बने वो अपने आप को तथा समाज को धोखा देता है। उनकी शाख तो गिरती ही है लेकिन संस्था का बंटाधार हो जाता है। अनेक नियम एवं सिद्धांत पर चलने वाली संस्था है जो निश्चित अवधि में ही अगला अध्यक्ष एवं सचिव बनाकर सम्मान पाते हैं लेकिन ऐसे भी है जो एक बार बन गए तो हटते ही नहीं उसके कारण अनेक होते हैं लेकिन सबकुछ जानते हुए भी कोई आवाज़ तक नहीं उठाता वो उससे भी अधिक दोषी होते हैं।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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