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एयर स्ट्राइक

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दिनांक -०७/०५/२०२५
रण में सिंदूर बोल उठा!”
रण में सिंदूर बोल उठा — ललकार बनी हुंकार बनी,
भारत माँ की माँग सजी — हथियार बनी, शंखधार बनी।
यह रेखा अब रुकने वाली नहीं — यह आँधी है, आग बनी!
रण में सिंदूर उबाल उठा — जय-जय भारत राग बनी!
सिंदूर नहीं अब शृंगार रहा — यह वीरों का जयध्वज है रे!
हर बूँद शहादत की बोले — “भारत का यह व्रत न भज है रे!
जिसने माँ को आँख दिखाई — उसका धूल में मिलना लाज़िम है,
शस्त्र हमारे दहाड़ उठे — कोई हिमाक़त होगी तो नहीं रहना क़ाज़िम है ।
जो आँख उठाया भारत पर — वह आँख न रहने दी जाएगी !
सिंदूर की यह अग्नि-रेखा — हद की हद दिखलाने भी जायेगी ।
वीर सपूतों ने है ठान लिया — अब मुँह तोड़ के ही रख देना है ,
जहाँ से जो संकट आए वहाँ — नाम ओ निशान मिटा रख देना है ।
चेतावनी है अब स्पष्ट यही — “ अब शांति की शर्ते मेरी हैं !
अगर युद्ध में हम आ ही गए — फिर निश्चय ही पराभव तेरी है ।
प्रेम हमारी नीति सही — पर प्रतिकार भी धर्म बने – ये कृष्ण कहें !
यह सिंदूर अब चेतन शक्ति — अब राष्ट्र-पुरुष का कर्म बने- मन मर्म कहें ।
है जिसने माँ की गोदी देखी — दुश्मन को अपना ग्रास बनाएगा !
है जिसने उसकी मिट्टी चूमी — वह काल स्वयं बन जाएगा ।
बच्चा-बच्चा भारत का — अब अंगार बन गया – समझो तुम ।
भारत माता से अब जो छेड़ करे — भस्म हो गया -समझो तुम ।
सिंदूर नहीं बस प्रतीक मात्र — यह माँ की आँच कराल है रे,
यह तो शौर्य का यज्ञ-ज्वाल — हर बूँद में बाँध विशाल है रे!
रण में सिंदूर बोल उठा — ललकार बनी हुंकार बनी,
भारत माँ की माँग सजी — हथियार  बनी, शंखधार बनी।
यह रेखा अब रुकने वाली नहीं — यह आँधी है, आग बनी!
रण में सिंदूर बोल उठा — जय-जय भारत राग बनी!
हमदम दिलदारनगरी
क़ाज़िम- सहिष्णुता , क्षमा के गुणों वाला नाम
हिमाक़त – शत्रुता पूर्ण कार्यवाही

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