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ऐसी मुस्लिम भीड़ हिन्दुओं को डराती है —      आचार्य श्रीहरि

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भारत आजादी के पूर्व की मुस्लिम हिंसक राजनीति की पुनरावृति फिर से होने लगी है। इसकी एक झांकी दिल्ली के जंतर-मंतर पर देखने को मिल रही है जहां पर मजहबी मुस्लिम भीड अपना संहारक रूप दिखा रही है। ऐसी भीड़ और भाषा आजादी के पूर्व विखंडन का डर दिखाती थी। ऐसी भीड और भाषा इसके पूर्व चार बार देखी गयी है। सबसे पहले ऐसी भीड 1906 में ढाका में जमा हुई थी जहां पर भारज विभाजन की कसमें खायी गयी थी। 1985 में शाहबानों मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ देश के विभिन्न शहरों में ऐसी भीड़ और भाषा का प्रदर्शन हुआ था। राममंदिर का ताला खोलने के खिलाफ मुस्लिम आबादी 1987 में अपनी हिंसक भीड की शक्ति का प्रदर्शन किया था। 2019 में सीएए कानून के खिलाफ ऐसी भीड और भाषा का प्रयोग शाहीनबाग सहित देश भर के जगहों-जगहों पर हुआ था। इसके अलावा दंगों और विभिन्न घटनाओं में मुस्लिम गिरोह अपनी हिंसक भीड की शक्ति का प्रदर्शन करता रहा है। इनमें एक नमाजी हिंसा है। जूमे की नमाज के बाद किसी भी प्रश्न पर होने वाली बर्बर हिंसा और प्रदर्शन को नमाजी हिंसा के नाम से जाना जाता है।

दिल्ली के जंतर-मंतर पर वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के खिलाफ जमा हुई भीड़ और उसकी चेतावनी, आक्रमकता और संहार करने जैसी भाषा को लेकर हिन्दुओं के अंदर बहुत बडी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है, हिन्दुओं के मन में डर घर कर गया। सोशल मीडिया पर इसकी बहुत बडी प्रतिक्रिया देखी जा रही हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया यह है कि यह मुस्लिम भीड शाहीनबाग की ही टूकॉपी है। कहने का अर्थ यह है कि शाहीनबाग मानसिकता में शामिल मुस्लिम संगठन और गिरोह ही ऐसी संहार करने वाली धमकियां सरेआम दे रही है। शाहीनबाग पर नरेन्द्र मोदी ने बहुत बडी कृपा की थी, उनकी कृपा क्या थी? उनकी कृपा उदासीनता थी, शाहीनबाग की हिंसा और प्रदर्शन के आड में राष्टविरोधी गतिविधियों पर आंख मुंद कर रख देना, पुलिस के हाथ बांध देना और अराजक स्थिति उत्पन्न करने की छूट देना। शाहीनबाग की मानसिकता की खुशफहमी अभी तक गयी नहीं है, इनकी हिंसक मानसिकता गयी नहीं है, विरोध को हिंसक बना देना, विरोध को राष्टविरोधी बना देना, विरोध को मूल निवासी हिन्दुओं के अस्तित्व संहार का संकल्प प्रदर्शित करना। यह सब अभी तक जारी है।

वक्फ बोर्ड संशोधन कानून अभी प्रस्तावित है, संसदीय विचार-विमर्श में शामिल है, बृहद चर्चा की प्रक्रिया पूरी की जा रही है, सभी पक्षों को अपने विचार रखने की स्वतंत्रता दी गयी है, सभी पक्षों ने अपने विचार भी रेखें हैं फिर भी विरोध को धमकी और संहार करने की भाषा में बदल देना कहीं से भी न्यायप्रिय नहीं है, यह अराजकता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घोर उल्लंधन है, दुरूपयोग है। अगर संसद ने वक्फ कानून बनाया है तो फिर वक्फ कानून को समाप्त करने का अधिकार भी संसद को है। इस संसदीय अधिकार का अतिक्रमण मुस्लिम भीड अपनी हिंसा की प्रक्रिया से अतिक्रमण नही ंकर सकती है।

इस्लामिक विद्वान नदीम शेख ने बहुत ही प्रमाणिक तर्क दिया है। उनका तर्क क्या है? यह भी देख लीजिये। उनका तर्क यह है कि वक्फ बोर्ड जैसी कोई व्यवस्था इस्लाम के अंदर ही नहीं है। उन्होंने प्रमाण भी दिया है। उनका कहना है कि कुरान या हदीश में कहीं भी वक्फ जैसी कोई व्यवस्था का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। जब कुरान या हदीश मे कोई उल्लेख नहीं है तो फिर उस व्यवस्था को लेकर इतनी हिंसक भाषा का प्रयोग क्यों होना चाहिए, इतनी हिंसक भीड का प्रदर्शन क्यों होना चाहिए,? देश की शांति को छिन्न-भिन्न करने का संकल्प क्यों लेना चाहिए? नदीम शेख इसके लिए राजनीति को ही दोष देते हैं। मूल संविधान के किसी भी अध्याय में वक्फ बोर्ड जैसी कोई व्यवस्था भी नहीं है। कांग्रेस की यह सब कारस्तानी है। विखंडन के लिए जिम्मेदार कांग्रेस ने भारत की सनातन संस्कृति के खिलाफ वक्फ बोर्ड की व्यवस्था लागू की थी। 1954 में जवाहरलाल नेहरू ने इसकी नींव डाली थी। फिर 1964 में इसको शक्तिशाली बनाया गया था। विभिन्न कांग्रेसी सरकारों के दौरान वक्फ अधिनियम को मजबूत करने का काम किया गया है। कांग्रेस अपने स्थापना काल से ही मुस्लिम नीतियों का समर्थक रही है। अभी भी कांग्रेस मंुस्लिम जिहाद के रास्ते पर चलती है। वक्फ प्रदर्शनों में कांग्रेस का अप्रत्यक्ष समर्थन है। इसके अलावा मुस्लिम राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियों और कम्युनिस्टो का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन सहयोग मिला हुआ है।

वर्तमान में बिहार के राज्यपाल और मुस्लिम मामालों के जानकर आरिफ मोहम्मद खान भी इस तरह की मुस्लिम हिंसक राजनीति के विरोधी हैं। आरिफ मोहम्मद खान वही व्यक्ति हैं जिन्होंने राजीव गांधी को चुनौती दी थी और शाहबानों मुकदमें को लेकर आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था और राजीव गांधी मंत्रिमंडल से खुद बाहर आ गये थे। सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानों के पक्ष में फैसला सुनाया था और शौहर के अराजक अधिकारों पर कैची चलायी थी। राजीव गांधी ने शाहबानों प्रकरण पर मुसलमानों के हिंसक प्रदर्शन से डर गये थे और काला कानून लागू कर दिया था। संसद में काननू लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संहार कर दिया था। आरिफ मोहम्मद खान अपने विभिन्न भाषणों में कहते रहे हैं कि मुसलमानों ने शाहबानों प्रकरण पर सकरात्मक पहल की होती और सुप्रीम र्कोर्ट के फैसले को स्वीकर कर लिया होता तो फिर आज की तरह सांप्रदायिकता का वातावरण होता ही नहीं। हिन्दू-मुसलमान का कोई प्रश्न ही नहीं होता। मुसलमानों ने अपने हिंसक गतिविधियों और संहारक तथा विखंडन की भाषा बोलकर हिन्दुओं के मन में डर पैदा किया है, मुसलमानों ने अपने खिलाफ खुद घृणा का राजनीतिक वातावरण बनाया है। शाहबानों प्रकरण में जो गलतियां मुसलमानों ने की थी वहीं गलतियां मुसलमानों ने सीएए कानून के खिलाफ किया। जबकि सीएए कानून नागरिकता देने का कानून था, नागरिकता छीनने का कानून नहीं था। वक्फ बोर्ड पर संशोधन कानून अभी संसद में पास भी नहीं हुआ है। इसलिए संयमित भाषा का प्रयोग और विरोध का लोकतांत्रित तरीको को खारिज करना आत्मघाती कदम होगा।
वक्फ बोर्ड का वर्तमान अधिकार अराजक है और विभिन्न संहिताओं को सीधे चुनौती देता है। कई न्यायिक फैसलों में इसका उल्लेख है। कई बार न्यायिक प्रश्न भी उठे हैं कि ऐसे अधिकार अराजक हैं और विभिन्न प्रकार के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं। अगर वक्फ बोर्ड कह दिया कि इस चल और अचल संपत्ति का उसने पंजीकरण कर लिया है, इसलिए उस पर उसका निर्विवाद अधिकार है और उस पर कोई फैसला न्यायप्रिय नहीं होगा। कई प्रावधान ऐसे हैं जो न्यायिक अधिकारियों के हाथ भी बांध देते हैं। वक्फ बोर्ड के पास आज अथाह जमीन है, अथाह धन है। पैसे की कमाई भी खूब होती है। अपनी चल और अचल संपत्तियों का किराया भी खूब वसूलता है। वक्फ बोर्ड को व्चापार करने का भी छूट है। वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर अब दंगा और संघर्ष जैसी घटना भी होती रही है। कई मामले ऐसे हैं जिसमें दूसरे धर्म के लोग जिस जमीन पर वर्षो से रह रहे हैं और खेती कर रहे हैं उस जमीन और घर पर वक्फ बोर्ड दावा करता है। केरल का एक प्रकरण तो बहुत ही अराजक और जंगल कानून का प्रमाण दे रहा है। हिन्दुओं और ईसाइयों के पुरातन संपत्ति, घर और जमीन पर वक्फ बोर्ड ने दावा कर दिया। वक्फ बोर्ड के दावे से संकट और हिंसक टकराव की स्थिति उत्पन्न होना भी स्वाभाविक है।

मुस्लिम आबादी को संविधान और कानून से उपर होने की गलतफहमी छोड देनी चाहिए। संविधान का जन्मदाता संसद है, हर कानून का जन्मदाता संसद है। संसद किसी कानून या फिर संविधान के किसी प्रावधान को समाप्त कर सकता है और संशोधित कर सकता है। इसलिए संसद के पास वक्फ बोर्ड को लेकर अधिकार है। अब तक संसद ने संविधान में लगभग डेढ सौ संशोधन किये हैं, इस सच्चाई को जानने की जरूरत है।  सबसे बडी बात यह है कि मुसलमानों की हिंसक भाषा ने हिन्दुओं को न केवल जगाया है बल्कि हिन्दू अब मुसलमानों को अपना भाई नहीं, अपितु दुश्मन के तौर पर देखने के लिए बाध्य हैं। इसका राजनीतिक लाभ सीधे तौर पर नरेन्द्र मोदी और भाजपा को मिलेगा।

संपर्क:
आचार्य श्रीहरि
नई दिल्ली
मोबाइल … 9315206123

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