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आख़िर में, हर औरत ऐसे पुरुष की चाहत रखती है, जिसके कंधे पर सिर रखकर वह कुछ पल रो सके, जिसके साथ निश्चिंत होकर दिल खोलकर हंस सके। या फिर ऐसे पुरुष के साथ रह सके, जिसकी मौजूदगी में उसे कभी अकेले चाँदनी की ठंडक में डूबने का पछतावा न हो।
रिश्ते कभी शारीरिक होते हैं, कभी भावनात्मक, कभी व्यक्तिगत और कभी व्यावसायिक भी।
कोई भी औरत अपने अस्तित्व से समझौता नहीं करना चाहती, न ही अपने जज़्बातों को बेपर्दा करके हारना चाहती है।
कोई औरत यह भी बर्दाश्त नहीं कर सकती कि उसके अपने पुरुष के सीने में किसी और औरत की ख़ुशबू बसी हो। और सबसे बड़ी बात, औरत हार मानने वालों में से नहीं होती।
हर औरत अपने प्रिय पुरुष को पूरी श्रद्धा से चाहती है। लेकिन अगर इस श्रद्धा के बदले उसे विश्वासघात मिलता है, तो वह उग्र हो जाती है। कोई-कोई अनजान राहों में खुद को खो देती है, बस इसलिए कि वह हार नहीं मानना चाहती। यह आत्मसमर्पण कभी पछतावे में बदल जाता है, कभी किसी नए रास्ते पर ले जाता है, तो कभी उसे एक अनजानी पहचान दे देता है।
एक औरत को समझना आसान नहीं।
लेकिन उससे भी कठिन है किसी एक पुरुष का जीवनभर उसकी पूजा के योग्य बने रहना। क्योंकि कुछ पुरुष यह नहीं समझते कि जैसे प्लास्टिक की छतरी बारिश से पूरी तरह नहीं बचा सकती, वैसे ही औरत की इच्छाएँ केवल शारीरिक नहीं होतीं—उनके लिए हमेशा विकल्प मौजूद होते हैं।
फिर भी, औरत किसी पुरुष से प्रेम क्यों करती है?
उसके दिल के लिए?
उसके शरीर के लिए?
उसके मन के लिए?
या फिर खुद को पूरी तरह समर्पित करने के लिए?
औरत की भावनाएँ रहस्यों से भरी होती हैं, जैसे किसी काले गड्ढे (ब्लैक होल) की गहराइयाँ… हैं ना?
बबिता बोरा
पेशे से लेखिका, शिलचर में असम पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के रूप में काम करती हैं।