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कभी हफ्ते में मिलती थी प्रेरणा भारती…….

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किसी भी कार्यक्रम के संबंधित विषय को जन जन तक पहुंचाने के लिए प्रचार-प्रसार का बड़ा महत्व होता है, इस हिन्दी माह के कार्यक्रमों का महीनों प्रचार प्रसार में सर्वश्री दिलीप कुमार जी, दैनिक पूर्वोदय से योगेश दूबे, युगशंख से रंजन सिंह, प्रेरणा भारती और ईशान बांग्ला व वीडियों एडिटिंग यशवंत पाण्डेय, रितेश नुनीया, गति से किशन माला, सामयिंक प्रसंग से मैं स्वयं कार्य किया, इसमें से जितने भी लोग इस हिन्दी कार्यक्रम में जुड़े हैं या प्रचार प्रसार में जुड़े हैं, यह भी एक प्रकार से दिलीप कुमार का ही मार्गदर्शन रहा है। आज प्रेरणा भारती के चलते ही इतने पत्रकार पैदा भी हुए, प्रेरणा भारती में लिखने वाले बहुत से पत्रकार बराकवैली में पैदा हुए है, जिसमें दिलीप कुमार जी का ही भारी अवदान है।
हिन्दी के एक माध्यम से कितने लोग बड़े बड़े प्रतिष्ठानों में पत्रकार के रूप में अपना परिचय बना पाये, सब में एक ही व्यक्ति का अवदान है, भले ही कोई माने या न माने। मैं और योगेश जी प्रेरणा भारती के प्रारंभ से जुड़े रहे, कुछ दिनों बाद योगेशजी दैनिक पूर्वोदय से जुड़ गये और मैं 2003 से लगातार 2018 के अप्रैल महीने के तक प्रेरणा भारती में काम किया, ऐसा भी दिन था, पाठकों के पास जाने पर ताने भी सूनना पड़ता था, बासी पेपर है। आज वह दिन है कि प्रतिदिन का खबर इस अखबार में छप रहा है। प्रेरणा भारती के बाद फिर मैं एक साल तक पूर्वोंचल प्रहरी में काम करने बाद बांग्ला पेपर सामयिंक प्रसंग में जुड़ गया। इसी प्रकार शिवकुमारजी शुरु से अभी तक प्रेरणा भारती से जुड़े हुए है, लिखते हैं, समाचार देते हैं, आप सभी को सुनकर आश्चर्य होगा कि रितेश नुनीया को दिलीपजी के चलते ही असम सरकार के डीआईपीआर द्वारा प्रमाणित फोटोग्राफर का परिचय पत्र प्राप्त है, सेन्टीनेल के जयदा को भी प्रेरणा भारती के बदौलत सरकारी पत्रकार का दर्जा प्राप्त है, दिलीप जी अनगिनत बांग्लाभाषी युवकों को प्रेरणा भारती से पत्रकार  बनाए है जो आज काम कर रहे हैं। जिसमें संजीब भट्टाचार्य, मणिभुषण चौधुरी,
 रानु दत्त, दिल्ली, गुवाहाटी, मिजोरम, अगरतला आदि राज्यों से पत्रकार प्रेरणा भारती में काम कर रहे हैं। मशीन मैन, आफिस स्टाफ काम कर रहे हैं, अनगिनत लोगों को कम ज्यादा प्रेरणा भारती के चलते रोजगार चल रहा है। प्रेरणा भारती के चलते कितने हाकर, विज्ञापन एजेंसीया प्रेरणा भारती से रोजगार कर रही है। बस एक व्यक्ति के कड़ी परिश्रम से आज इतने लोगों का साधन बन गया, इसलिए बराकवैली में हिन्दी का अलख जगा है, इसका पूरा श्रेय दिलीपजी, संपादक श्रीमती सीमा कुमार और उनके पाठकों और चाहनेवाले को जाता है, यह सब हिन्दी प्रेमियों के चलते संभव हो पाया है, बहुत बड़ी कहानी है दो चार पंक्तियों में लिखने से कुछ नही होगा…..कभी डाक से पेपर जाता  था अब हाकर पहुंचाता है बड़ी बात है,..
जवाहरलाल पांडेय (पत्रकार)
शिलकुड़ी चाय बागान काछाड़, असम

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