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करवा चौथ, भारतीय समाज में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व के रूप में जाना जाता है। यह पर्व विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पतियों की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और जीवन में खुशहाली के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं, फिर रात को चांद को देखकर और पति के दर्शन कर, व्रत का पारण करती हैं। वर्षों से यह परंपरा हमारे समाज में चलती आ रही है, और यह पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है।वर्तमान समय में, सोशल मीडिया के व्यापक प्रसार ने इस पर्व को एक नई दिशा दी है। आजकल, करवा चौथ का व्रत केवल पति-पत्नी के प्रेम और एक-दूसरे के लिए समर्पण तक सीमित नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया पर अपने रिश्तों का दिखावा करने का एक माध्यम भी बन गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप पर इस व्रत से जुड़ी तस्वीरों की बाढ़ सी आ जाती है। सजी-धजी महिलाएं, पारंपरिक परिधानों में सजकर, अपने पति के साथ फोटो खिंचवाकर उन्हें सोशल मीडिया पर साझा करती हैं। यह दृश्य देखने में भले ही सुंदर और मनमोहक लगे, परंतु इसमें कितनी सच्ची भावनाएं होती हैं, यह एक सोचनीय प्रश्न है।कल करवा चौथ था, और मैंने देखा कि फेसबुक पर हर ओर से सजी-धजी महिलाओं की तस्वीरें छाई हुई थीं। सभी अपने पति के साथ व्रत का पालन करते हुए, चलनी से चाँद और फिर अपने पति का चेहरा देखते हुए फोटो खिंचवा रही थीं। ये फोटो फेसबुक पर पोस्ट की जा रही थीं, और मैं भी खुशी से उन पर लाइक और शुभकामनाएं दे रहा था। यह सब देखकर मन में एक अलग ही उत्साह और सकारात्मकता का अनुभव हो रहा था।इसी दौरान, अचानक मेरे पड़ोसी के घर से जोर-जोर से झगड़ने की आवाजें आने लगीं। कुछ पल के लिए समझ नहीं आया कि करवा चौथ जैसे शुभ दिन पर कोई झगड़ा क्यों कर रहा होगा। बाहर जाकर जब ध्यान से सुना, तो पता चला कि पत्नी अपने पति से झगड़ रही थी क्योंकि वह सुबह उसके कहने पर मेकअप का सामान लाना भूल गया था। यह बात सुनकर मन में एक अजीब सी हलचल मची। मैंने सोचा कि एक ओर जहां स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रख रही हैं, वहीं दूसरी ओर यहां एक महिला अपने पति से छोटी सी बात पर लड़ाई कर रही है। क्या यही करवा चौथ का असली मतलब है?
जब मैंने इस घटना का जिक्र अपनी पत्नी से किया, तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, “आजकल करवा चौथ का व्रत सिर्फ सोशल मीडिया पर फोटो पोस्ट करने के लिए ही रखा जाता है। असली भावनाएं तो कहीं खो गई हैं।” यह सुनकर मुझे और भी गहराई से सोचने का मौका मिला कि कहीं न कहीं हम अपनी परंपराओं के मूल भाव से भटकते जा रहे हैं।सोशल मीडिया ने हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है, और त्योहार भी इससे अछूते नहीं रहे। आजकल त्योहार केवल रीति-रिवाजों के पालन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनका उद्देश्य दूसरों को दिखाना भी हो गया है। खासकर करवा चौथ जैसे त्योहार, जो कि पति-पत्नी के बीच के प्रेम, विश्वास और समर्पण को दर्शाने वाले होते हैं, अब कई लोगों के लिए केवल सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा करने का जरिया बन गए हैं।पारंपरिक रूप से करवा चौथ का व्रत यह सिखाता है कि पति-पत्नी का संबंध प्यार, त्याग और विश्वास पर आधारित होता है। इस दिन पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति अपने समर्पण और स्नेह को प्रदर्शित करते हैं। लेकिन आधुनिक समय में इस पर्व का अर्थ बदलता जा रहा है। सोशल मीडिया पर एक-दूसरे से अधिक सुंदर दिखने और अपने रिश्तों का दिखावा करने की होड़ में लोग असली भावनाओं को भूलते जा रहे हैं।
रिश्तों की जटिलता और बदलते समाज के प्रभाव ने हमारे संबंधों को भी प्रभावित किया है। आजकल छोटी-छोटी बातों पर बड़े विवाद हो जाते हैं। जैसे, पड़ोस में झगड़े की जो वजह थी, वह सिर्फ मेकअप का सामान न लाना थी, जबकि करवा चौथ का असली उद्देश्य तो एक-दूसरे के लिए त्याग और समर्पण है।सोशल मीडिया ने रिश्तों में दिखावे का एक नया आयाम जोड़ा है। त्योहारों और व्रतों का महत्व अब केवल रीति-रिवाजों के पालन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह एक प्रकार की ‘प्रदर्शनकारी संस्कृति’ में बदल गया है, जहां हम अपने निजी पलों को भी सार्वजनिक करने से नहीं चूकते। चाहे वह करवा चौथ हो या कोई अन्य पर्व, आजकल लोग इन मौकों को सोशल मीडिया पर साझा करने में अधिक रुचि रखते हैं, बजाय उन पलों का वास्तविक रूप से अनुभव करने के।करवा चौथ का असली महत्व यह है कि यह पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि संबंधों में समझदारी, त्याग और एक-दूसरे के प्रति समर्पण होना चाहिए। पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास पर आधारित होता है, और इस व्रत का उद्देश्य भी उसी विश्वास को और गहरा करना है।लेकिन अगर हम छोटी-छोटी बातों पर विवाद करने लगेंगे, तो इस व्रत की पवित्रता कहां रह जाएगी? करवा चौथ हमें सिखाता है कि पति-पत्नी के बीच प्रेम का होना कितना महत्वपूर्ण है। छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज कर, एक-दूसरे के प्रति सम्मान और समझदारी का भाव रखना चाहिए। त्योहारों का असली उद्देश्य यही है कि हम अपने रिश्तों को और भी मजबूत और सशक्त बनाएं, न कि उन्हें दिखावे और प्रदर्शन का साधन बना लें।
करवा चौथ सिर्फ एक व्रत नहीं है, बल्कि यह एक भावना है, एक विश्वास है। यह हमें सिखाता है कि रिश्तों में त्याग, प्रेम और समर्पण का कितना महत्व है। आधुनिक समय में, सोशल मीडिया ने इस व्रत को एक नए रूप में प्रस्तुत किया है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसका असली मकसद क्या है। त्योहारों और व्रतों का पालन सिर्फ रीति-रिवाजों के लिए नहीं, बल्कि अपने रिश्तों को और भी गहरा और मजबूत बनाने के लिए किया जाना चाहिए।तो अगली बार जब हम करवा चौथ या किसी अन्य त्योहार को मनाएं, तो उसे दिल से मनाएं, न कि सिर्फ सोशल मीडिया पर दिखाने के लिए।
शिव कुमार