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कविता: स्त्री तू खुद की ताकत बन अब

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स्त्री तू खुद की ताकत बन अब

उठ, जाग, सजग हो नारी तू
रणचंडी का अब रूप धर,
हे स्त्री अब कमर कसकर
हिंसा का प्रतिकार कर।
सृष्टि की जननी है तू ही
धरा पर जीवन – धात्री तू,
मां, पत्नी, बहन, बेटी बन
हर रिश्ते को संभालती तू।
माना कि सादगी तेरा गहना है
सबने कमजोरी समझा है उसको,
नहीं एहसास उन्हें तेरी शक्ति का
चुप बैठ मत, सबक सीखा उनको।
आधुनिक नारी का स्वरूप है तू
अबला नहीं, अब सबला है तू,
तुझसे ही है संचालित प्रकृति
स्वर्णिम भविष्य की चिंगारी है तू।
दया की पात्र तू है नहीं अब
देवी बन तुझे सजना नहीं अब,
बदल दे हौसलों से तकदीर अपनी
दूसरों से पहले, खुद की ताकत बन अब।
                                                -(नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

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