हाइलाकांदी (दक्षिण) — आज़ादी के 77 साल बाद भी असम-मिजोरम सीमा से सटे दक्षिण हैलाकांदी ज़िले के जमिरा चतुर्थ खंड अंतर्गत बैदरटुक (पाँच पीरों का मोकाम बस्ती) गांव में विकास की किरण अब तक नहीं पहुँच सकी है। सरकारी दस्तावेज़ों में इस क्षेत्र में 126 नंबर और 193 नंबर के दो आंगनवाड़ी केंद्र दर्शाए गए हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इनका कोई अस्तित्व नहीं है।

शनिवार को इन “केंद्रों” के बच्चों के लिए स्कूल बैग, यूनिफॉर्म और टिफिन बॉक्स सहित अन्य शैक्षणिक सामग्री तो आई, लेकिन जब ये पाया गया कि असल में यहां कोई केंद्र मौजूद ही नहीं है, तो वह सामग्री पास के घारमुरा (6–7 किमी दूर) इलाके में वितरित कर दी गई।
इस घटना की जानकारी मिलते ही झालनाछड़ा आंचलिक छात्र संगठन ‘आसू’ के पदाधिकारी मौके पर पहुंचे। वहां मौजूद आंगनवाड़ी वर्कर रेज़िया बेगम और सहायक से जब सवाल पूछा गया, तो उन्होंने स्वीकार किया कि “सेंटर सिर्फ कागज़ों पर है। जब कोई भवन ही नहीं है, तो सामग्री कहाँ रखी जाए? इसलिए प्रबंधन समिति की सहमति से पास के क्षेत्र में सामग्री बांट दी गई।”
आसू के झालनाछड़ा क्षेत्रीय अध्यक्ष फारुक अहमद बड़भुइयां ने इस गंभीर लापरवाही के लिए सीधे साउथ हाइलाकांदी चाइल्ड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट अधिकारी को ज़िम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि यह शर्मनाक है कि इतने वर्षों के बाद भी इस पिछड़े इलाके में बच्चों को शिक्षा की मूलभूत सुविधा तक नहीं मिल पाई है। उन्होंने सरकार और प्रशासन से मांग की कि जल्द से जल्द यहां वास्तविक आंगनवाड़ी केंद्रों की स्थापना की जाए और दोषियों पर कार्रवाई हो।
इस मौके पर संगठन के महासचिव जाकिर हुसैन मजूमदार, सह-सचिव जुबैर अहमद मजूमदार, उपाध्यक्ष कुतुबुद्दीन चौधरी, सलाहकार सईद अहमद लश्कर तथा बड़ी संख्या में स्थानीय अभिभावक उपस्थित थे।





















