काछार जिला कृषि विभाग ने हाल ही में पंजाब नेशनल बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (पीएनबी आरएसईटीआई), सिलचर में एक महत्वपूर्ण कृषि सहायता वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य पशुपालन और वर्मी कम्पोस्टिंग पर उद्यमिता विकास कार्यक्रम (ईडीपी) के तहत प्रशिक्षित प्रगतिशील डेयरी किसानों को सहायता प्रदान करना था, जिससे वे जैविक और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित हो सकें।
जैविक कृषि को बढ़ावा देने की पहल
यह आयोजन पुराने डीआरडीए भवन में संपन्न हुआ, जहां काछार जिला कृषि अधिकारी डॉ. ए.आर. अहमद ने जैविक कृषि पद्धतियों पर विस्तृत प्रशिक्षण दिया। उन्होंने किसानों को वर्मी कम्पोस्टिंग की वैज्ञानिक विधियों, इसके लाभ और उपयोग पर विशेष रूप से जानकारी दी। इस पहल के तहत किसानों को वर्मी कम्पोस्ट बिस्तर, केंचुए और अन्य आधुनिक कृषि उपकरण निःशुल्क वितरित किए गए, ताकि वे टिकाऊ कृषि तकनीकों को अपनाकर अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि कर सकें।
विशेषज्ञों और अधिकारियों की भागीदारी
इस अवसर पर पशुपालन एवं चिकित्सालय विभाग के अधिकारी डॉ. रुबेल दास, पीएनबी आरएसईटीआई काछार के वरिष्ठ प्रशिक्षक और प्रशिक्षण समन्वयक शाहिद चौधुरी, कृषि विभाग के अधिकारी शाहानूर आलम लस्कर (एएआई) और एस.ए. स्वप्निल भी उपस्थित रहे। डॉ. अहमद ने अपने संबोधन में किसानों को सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं और अनुदान सहायता के बारे में जानकारी दी, जिससे वे अपनी कृषि गतिविधियों को और अधिक प्रभावी बना सकें।
किसानों की सफलता की कहानियां
कार्यक्रम के दौरान प्रगतिशील किसान राजू मजुमदार ने अपनी सफलता की कहानी साझा की, जिसमें उन्होंने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट और जैविक कृषि अपनाने से उनकी उत्पादन क्षमता में कैसे सुधार हुआ। उनकी प्रेरणादायक यात्रा अन्य किसानों के लिए एक मिसाल बनी, जिससे वे भी इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रोत्साहित हुए।
आगे की दिशा और निष्कर्ष
पीएनबी आरएसईटीआई के वरिष्ठ प्रशिक्षक शाहिद चौधुरी ने कृषि विभाग की इस पहल की सराहना की और किसानों को सतत कृषि पद्धतियों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम के अंत में कृषि विभाग ने आश्वासन दिया कि ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम और आवश्यक संसाधनों का वितरण भविष्य में भी जारी रहेगा, जिससे क्षेत्र में आधुनिक और टिकाऊ कृषि तकनीकों को बढ़ावा दिया जा सके।
यह कार्यक्रम न केवल किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि जैविक खेती और सतत कृषि को बढ़ावा देकर पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देगा।






















