काबूगंज जनता महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग और मौलाना अबुल कलाम आजाद एशियाई अध्ययन संस्थान, कोलकाता के संयुक्त तत्वावधान में 19 और 20 मार्च को “पंडित दीनदयाल उपाध्याय के परिप्रेक्ष्य की खोज: 21वीं सदी में एकात्म मानववाद के विकास की दिशा में एक प्रयास” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी विचारों के आदान-प्रदान और दीनदयाल जी के दार्शनिक दृष्टिकोण को समकालीन संदर्भों में समझने का एक महत्वपूर्ण मंच साबित हुई।
प्रमुख वक्ता और विषय-वस्तु
इस संगोष्ठी में दीनदयाल विश्वविद्यालय, गोरखपुर के प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी ने मुख्य भाषण दिया। प्रमुख वक्ताओं में सिक्किम केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. भीनू पंत, त्रिपुरा विश्वविद्यालय के प्रो. आशीष गुप्ता, असम रॉयल ग्लोबल विश्वविद्यालय, गुवाहाटी के प्रो. तुष्टि शर्मा, असम विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रो. सौगत कुमार नाथ, प्रो. अनूप कुमार डे (अंग्रेजी विभाग एवं छात्र कल्याण विभाग के डीन), और राजनीति विज्ञान विभाग के प्रो. देवतोष चक्रवर्ती शामिल थे। वक्ताओं ने एकात्म मानववाद के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की और इसे समकालीन समय में प्रासंगिक बताया।
देशभर के शोधार्थियों की भागीदारी
हाइब्रिड प्रारूप में आयोजित इस संगोष्ठी में देशभर से तीस से अधिक प्रस्तुतकर्ताओं ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के शिक्षाविद, शोधकर्ता, छात्र और शिक्षक शामिल थे। बराक घाटी के अलावा, भारत के अन्य हिस्सों से भी प्रतिभागियों ने इस शैक्षिक समागम में भाग लिया।
विशिष्ट अतिथि और समापन समारोह
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि मैकाएस, कोलकाता के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सुजीत घोष थे, जबकि समापन सत्र के मुख्य अतिथि असम विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ. सुप्रबीर दत्ता रॉय थे। अपने संबोधन में उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय की एकात्म मानववाद अवधारणा की समसामयिकता पर प्रकाश डाला और इसे वर्तमान सामाजिक संरचना के लिए एक आवश्यक विचारधारा बताया।
सेमिनार समन्वयक और आयोजन समिति का योगदान
सेमिनार समन्वयक एवं काबूगंज जनता कॉलेज के अंग्रेजी विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. मुन्नी देब मजूमदार ने समकालीन समाज में दीनदयाल उपाध्याय के विचारों की प्रासंगिकता पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने इस संगोष्ठी के आयोजन में महाविद्यालय के प्राचार्य के मार्गदर्शन और योगदान की सराहना की। आयोजन को सफल बनाने में गायत्री सिंह, डॉ. किंग्शुक चक्रवर्ती और अन्य सहयोगियों का विशेष योगदान रहा।
पिछली संगोष्ठी से विचारों का विस्तार
इससे पहले, 24-25 जनवरी को काबूगंज जनता महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग और आईसीएसएसआर के तत्वावधान में “पश्चिमी दृष्टिकोण को उलटना: भारत के विचार की पुनर्खोज और पुनरुत्थान” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई थी। इस संगोष्ठी में भारत की पारंपरिक अवधारणाओं और दीनदयाल जी के विचारों के बीच संबंधों पर चर्चा हुई थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर केंद्रित वर्तमान संगोष्ठी उसी वैचारिक प्रवाह का एक स्वाभाविक विस्तार थी।
एकात्म मानववाद: समय की मांग
संगोष्ठी में प्रस्तुत शोध-पत्रों और विचार-विमर्श से यह स्पष्ट हुआ कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना अपने समय में था। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इसकी अवधारणा समाज के सर्वांगीण विकास के लिए एक सशक्त मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है।
यह संगोष्ठी न केवल एक शैक्षणिक आयोजन थी, बल्कि भारत के बौद्धिक और दार्शनिक परंपराओं के पुनरावलोकन का भी एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हुई।