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पारंपरिक परीक्षा प्रणाली प्रायः रटने और याद करने पर आधारित रही है। इसमें विद्यार्थी अक्सर विषय की गहराई को समझने के बजाय केवल तथ्यों को याद करने में समय व्यतीत करते हैं। इसके विपरीत, ओपन-बुक परीक्षा एक ऐसी पद्धति है जिसमें विद्यार्थी किताब, नोट्स या संदर्भ सामग्री का प्रयोग कर सकते हैं। यह परीक्षा केवल स्मरणशक्ति पर नहीं, बल्कि समझ, विश्लेषण और अनुप्रयोग की क्षमता पर आधारित होती है। “किताब साथी” → यह संकेत देता है कि परीक्षा में किताब दुश्मन नहीं, बल्कि मददगार है। “बुद्धि हथियार” → यहाँ दिमाग को असली ताक़त के रूप में दर्शाया गया है, क्योंकि ओपन-बुक एग्ज़ाम में केवल किताबें होने से कुछ नहीं होता, असली हथियार है सोचने और लागू करने की क्षमता। सीबीएसई 2026-27 से कक्षा 9 में ओपन-बुक असेसमेंट शुरू करने जा रहा है , क्योंकि एक पायलट अध्ययन में इस विचार के लिए मजबूत “शिक्षक समर्थन” दिखाया गया है। ओपन-बुक परीक्षाएं दशकों से अस्तित्व में हैं, हांगकांग ने इन्हें 1953 में शुरू किया था। 1951 और 1978 के बीच अमेरिका और ब्रिटेन में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि ओपन-बुक परीक्षाओं ने छात्रों को केवल याद करने के बजाय ज्ञान को आत्मसात करने में मदद की, जिससे कमजोर छात्रों को लाभ हुआ और विभिन्न कौशलों का आकलन हुआ। कोविड-19 महामारी के कारण परीक्षाएं ऑनलाइन होने के कारण ओपन-बुक प्रारूप का व्यापक उपयोग हुआ, हालांकि कई छात्रों को शुरुआत में इस अपरिचित प्रारूप से जूझना पड़ा। 2014 में सीबीएसई ने विद्यार्थियों को रटने की आदत से दूर रखने के लिए ओपन टेक्स्ट-बेस्ड असेसमेंट (ओटीबीए) की शुरुआत की थी। यह कक्षा 9 की हिंदी, अंग्रेज़ी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की परीक्षाओं के लिए, और कक्षा 11 की अर्थशास्त्र, जीव विज्ञान और भूगोल जैसे विषयों की अंतिम परीक्षाओं के लिए लागू था। छात्रों को संदर्भ सामग्री चार महीने पहले ही दे दी जाती थी। ओपन-बुक परीक्षा शिक्षा प्रणाली में एक ऐसा नवाचार है जो विद्यार्थियों को रटंत से मुक्त कर वास्तविक ज्ञान, विश्लेषण और रचनात्मकता की ओर ले जाता है। यह परीक्षा इस तथ्य को स्थापित करती है कि किताबें केवल मार्गदर्शक हैं, किन्तु सफलता का मूल आधार बुद्धि, समझ और तर्कशक्ति ही है।
— रवि रंजन , 8700146743 , नई दिल्ली
स्वतंत्र लेखक एवं युवा साहित्यकार





















