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किसी को सम्मानित भले ही ना करें लेकिन अपमानित ना करें–मदन सुमित्रा सिंघल

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किसी को मन क्रम वचन से कभी भी ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए भले ही वो कुछ भी ना कहें लेकिन उसकी आह निकली हुई आपको प्रत्यक्ष रूप से ना सही अप्रत्यक्ष रूप से जरूर नुक्सान पहुँचा सकती है। जन्मजात कुसंस्कारों से ग्रसित व्यक्ति अनावश्यक भब्बती कसना मसकरी करना डेढी बात कहकर दिल दुखाते है फिर भी शिक्षित संस्कारी एवं उच्च कोटि के व्यक्ति इसलिए चुपचाप रह जाते हैं कि गंदगी में पत्थर मारने से नाले पर कोई प्रभाव इसलिए नही पङता क्योंकि वो गंदगी से भरा पङा है लेकिन छिटक कर एक छिंटा आपके दामन पर लग सकता है‌। अच्छे नपतले बोल खानदानी लोगों के पास ही मिलते हैं वो अपनी गरीमा मर्यादा एवं शदियौं से संग्रहित तपस्या छुटभैये के मुंह लगकर खत्म नही करता। आजकल संस्थानों में बिना नापतोल अलग व्यावसायिक दृष्टिकोण से कुछेक लोगों को सम्मानित किया जाता है लेकिन उनको वो अधिकार नहीं दिए जाते हैं जिसके वो हकदार हैं। दरबारी पृवृति के लोग परंपरागत जी हजुरी करने अनावश्यक गुणगान करने में ही अपना शौभाग्य समझते हैं जबकि वो अधिक गुणवान शिक्षित एवं योग्य जरूर होते हैं लेकिन उसके पास साहस नहीं होता ना ही नेतृत्व करने की क्षमता इसलिए दशकों तक मन मारकर दरबारी बने रहने में ही अपने आप को खपाते है।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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